कविता
# आस्तीन के सांप !
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दूध पीकर डस रहे
खुले आम घूम रहे
आस्तीन के सांप …..
सीमा पर प्रहरी
बाधा रोके खड़े
चोकस जाग रहे.
घुसपैठिये दुश्मन
चोरी छिपे फिर भी
गोलियां दाग रहे.
देश प्रेम देखकर
लेखनी को लेखकर
विद्रोही रहे कांप….
केंचुली छुपाए बैठे
घात भी लगाए घुमें
अवसरवादी नाग.
मेल मिलाप करके
नौटंकी रूप धरके
खेलने लगे फाग.
केंचुली ओढ़कर
भाईचारा जोड़कर
विषधर करे मिलाप ….
बारिश में रेंगकर
फन अपने फेंककर
ओढ़ रहे घाम.
खून पूरा चूसकर
घर पूरा भेदकर
मांग रहे दाम.
सुख चैन छिनकर
चंद नगदी गिनकर
कर रहे विलाप….
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# रमेश चंद्र शर्मा
इंदौर