सर्पदंश पीड़ित व्यक्तियों के लिए झाड फूंक, बडवे (आदिवासी पुजारा) का सहारा नहीं निकटतम चिकित्सा सुविधा लेना चाहिए

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सर्पदंश पीड़ित व्यक्तियों के लिए झाड फूंक, बडवे (आदिवासी पुजारा) का सहारा नहीं निकटतम चिकित्सा सुविधा लेना चाहिए

आलीराजपुर में भी है एक सर्प विशेषज्ञ नीलेश परमार-शैलेन्द्र शेरा 

अनिल तंवर की खास रिपोर्ट

आलीराजपुर. आज नाग पंचमी है और हिन्दू धर्म की मान्यता और विश्वास सभी जीव जंतुओं की रक्षा के लिए धार्मिक प्रतिबद्धता के सिद्धांतों का अनुसरण करता है. लोगों में जब तक धार्मिक सिद्धांतों के अनुपालन के लिए नियमों के अंतर्गत पूजा – अनुष्ठान का प्रावधान नहीं किया जाए तब तक आस्था की हिलोरें उठती नहीं है. हमारे प्राचीन वेद , पुराण और धार्मिक ग्रंथों ने इसे स्पष्ट किया है कि मानव को किस राह पर चलना चाहिए ताकि प्रकृति में भी संतुलन बना रहे.
यही आधार है कि प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने के लिए जहाँ धार्मिक अनुष्ठान के निमित्त नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा की जाती है वहीं 4 दिन बाद नवमी तिथि को नेवला नवमी भी मनाई जाती है.
आलीराजपुर में भी एक सर्प विशेषज्ञ नीलेश परमार है जिन्होंने हजारों सर्प यथा नाग , करैत वाइपर , अजगर , घोड़ा पछाड़ आदि विशालकाय जंतुओं को पकड़कर जंगल में छोड़ा है , अब वे सप्ताह में 5 दिन झाबुआ में रहते है तथा 2 दिन आलीराजपुर.
उनका संपर्क नंबर – 97541 85539 है .
उनके साथ रहकर यह कला शैलेन्द्र शेरा ने सीख ली है और वह भी बड़े बड़े कोबरा , वाइपर , अजगर आदि पकड़ने में निपुण हो गए.
शेरा का नंबर 99936 45321 है.
अब तक वह 400 से अधिक सर्प प्रजाति जंतुओं को पकड़कर जंगल में छोड़ चुके है. वैसे तो शैलेन्द्र शेरा पेशे से एक सिद्धहस्त फोटोग्राफर है किन्तु वह सर्प प्रजाति के रेस्क्यू में भी माहिर हो गए.
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अब हर गाँव , नगर और शहर में सर्पों, नागों को नहीं मारा जाता है बल्कि निपुण व्यक्ति को बुलाकर इन्हें पकड़वाकर रेस्क्यू किया जा रहा है. पहले जब भी किसी के घर सांप , नाग या अजगर निकलता था तब उसे मार दिया जाता था किन्तु अब प्राय: यह नहीं होता है. सम्बंधित परिवार सबसे पहले किसी ऐसे व्यक्ति को ढूँढते है जो इसे पकड़कर दूर जंगल में छोड़ सके. यह कार्य प्रकृति संतुलन के लिए जरूरी भी है. आदिवासी समुदाय में आज भी अजगर को देवता मानते है और वे इसे मारते नहीं है. पकड़कर दूर जंगल में छोड़ आते है किन्तु सांप प्रजाति के अन्य सभी जंतुओं को भय के कारण मार भी देते है तथा सर्पदंश पीड़ित व्यक्तियों के लिए झाड फूंक, बडवे (आदिवासी पुजारा) का सहारा लेते है जबकि इन्हें निकटतम चिकित्सा सुविधा लेना चाहिए .