Silver Screen: याददाश्त खोने और लौटने की कहानियों में उलझी फ़िल्में!  

916

Silver Screen: याददाश्त खोने और लौटने की कहानियों में उलझी फ़िल्में!   

याददाश्त जाना किसी हादसे का प्रभाव होता है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति अपनी पुरानी यादें भुला देता है और उसके सामने वही सब कुछ सच्चाई होती है, जो वह सामने देखता है। उसके दिमाग से पुराने दिन, पुरानी बातें, पुराने रिश्ते सब धूमिल हो जाते हैं। चिकित्सा विज्ञान के मुताबिक, कई बार याददाश्त  स्थाई होती है, यानी व्यक्ति कभी अपनी पुरानी जिंदगी में नहीं लौटता। लेकिन, कई बार पुरानी बातों, पुराने स्थानों या किसी व्यक्ति को देखकर प्रभावित व्यक्ति की याददाश्त लौट भी आती है। लेकिन, फिल्मों में याददाश्त का जाना एक अलग ही फार्मूला है। हीरो या हीरोइन याददाश्त जाती ही वापस आने के लिए है। अभी तक ऐसी कोई फिल्म नहीं बनी, जिसमें याददाश्त वापस न आई हो। फिल्म का एंड होने से पहले खोई याददाश्त वाले को पहले की तरह सब याद आ जाता है। फिल्मों में याददाश्त खोने वाला फंडा हमेशा पसंद किया गया। ऐसी बहुत सी फ़िल्में जिनमें हीरो या हीरोइन की याददाश्त गई, वे फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर हिट हुई!    जब भी कथाकार को कहानी आगे बढ़ानी हो या क्लाइमेक्स से दर्शकों को चौंकाना हो, ये फार्मूला सबसे ज्यादा सफल रहा। क्योंकि, ये शानदार, मज़ेदार और असरदार तरीका बनकर सामने आता है। इस फार्मूले का तड़का कितना पुराना है, इसका तो कोई प्रमाण नहीं, पर ये दर्शकों की पसंद में अव्वल रहा। क्योंकि, इसमें उत्सुकता कूट कूटकर भरी होती है। कुछ फिल्मकारों ने अपनी फिल्मों में सदमे और खासकर प्यार में असफल होने, हीरोइन के दूसरे विवाह से लगी दिल पर चोट का असर दिमाग पर होना बताया। जबकि, दिल और दिमाग दो अलग चीजें है। लेकिन, फिल्मकार इतने चतुर हैं कि वे पागलपन के दृश्यों में भी याददाश्त जाने का प्रसंग जोड़ने का मौका नहीं छोड़ते। सिनेमा ऐसा माध्यम है, जिसे इंसानी स्वभाव और इस तरह के हादसों पर फिल्म को आगे बढ़ाने का फार्मूला मिला। इसके चलते फिल्मों में याददाश्त आने-जाने की लुका-छुपी चलती रहती है। दिलीप कुमार ने भले ही परदे पर याददाश्त खोने का ड्रामा न किया हो, पर असल जिंदगी में वे अपने जीवन के संध्याकाल में अपनी याददाश्त धुंधला चुके थे।

WhatsApp Image 2023 08 25 at 10.43.15 PM

  फिल्म इतिहास में किस फिल्मकार ने याददाश्त जाने के कथानक को पहली बार परदे पर उतारा, इसका पता तो नहीं चला। लेकिन, पांचवें दशक से पहले महबूब खान के निर्देशन में 1948 में बनी फिल्म ‘अनोखी अदा’ में इसे संभवतः पहली बार आजमाया गया था। इस रोमांटिक फिल्म की कहानी में एक लव ट्राएंगल था। इसमें एक महिला एक ट्रेन हादसे में अपनी याददाश्त खो देती है। बाद में नाटकीय परिस्थितियों में उसकी यादें वापस लौटती है। फिल्म में मुख्य भूमिका नसीम बसु, सुरेंद्र और प्रेम अदीब की थी। उसके बाद छठे दशक से कथानकों में यह फार्मूला जमकर आजमाया जाने लगा। फिल्म में याददाश्त जाने का प्रयोग शिवाजी प्रोडक्शन की तमिल में बनी फिल्म ‘अमरदीपम’ में भी आजमाया गया। बाद में इसी कथानक पर 1958 में बनी हिन्दी ‘अमरदीप’ में देव आनंद पर यह फार्मूला आजमाया गया था। जब तक नायक की याद बनी रहती है, वो नायिका वैजयंती माला के साथ ‘देख हमें आवाज़ न देना’ की धुन पर इश्क़ लड़ाते है। लेकिन, खलनायक प्राण के गुंडों से लगी सिर पर चोट से वह अपनी याददाश्त खो बैठता है। तब, उसे पद्मिनी और रागिनी का प्यार मिलता है। जब यह प्यार परवान चढ़ने वाला होता है, तभी एक बार फिर सिर पर लगी चोट से उसकी याददाश्त लौट आती है और पद्मिनी के बलिदान के बाद उसे फिर वैजयंती माला का प्यार नसीब होता है।

Read More… Silver Screen: परदे पर दूज से लगाकर पूनम तक का चांद उतरा! 

WhatsApp Image 2023 08 25 at 10.43.13 PM 2

फिल्मालय की फिल्म ‘एक मुसाफिर एक हसीना’ का नायक भी कुछ ऐसा ही था। वह फौजी होता है, जो कश्मीर में कबाइलियों के हमले में घायल होकर अपनी याददाश्त खो बैठता है। तब उसके जीवन में नायिका साधना आती है और यह भूला बिसरा गायक जो सब कुछ भूल चूका है। ‘बहुत शुक्रिया बड़ी मेहरबानी’ गाते हुए साधना से प्यार करने लगता है। लेकिन, याददाश्त लौटने पर वह साधना को पहचानता तक नहीं। फिल्म  नाटकीय पक्ष था ओपी नैयर की धुन में गीत गाकर नायिका का याददाश्त लौटा देना। गाने के बहाने याददाश्त लौटाने का खेल ‘प्यार का मौसम’ में ‘तुम बिन जाऊं कहां’ और ‘मेरी जंग’ में ‘जिंदगी एक नई जंग है’ के जरिए भी दिखाई दिया। याददाश्त खोए नायक वाली फिल्मों में राज कपूर की ‘हिना’ भी उल्लेखनीय है। इसमें नायक ऋषि कपूर दुर्घटना के बाद पहाड़ी से लुढ़ककर बहते हुए पाकिस्तान की सीमा में पहुंच जाता है। हादसे में वो अपनी याददाश्त खो बैठता है। जब याददाश्त लौटती है, तो हीरोइन भी लौट आती है।

WhatsApp Image 2023 08 25 at 10.43.13 PM 1

अपने समय की संजीव कुमार की हिट फिल्म ‘खिलौना’ में नायक अपनी प्रेमिका की शादी के दिन की गई आत्महत्या से पागल होकर याददाश्त खो देता है और ‘खिलौना जानकर’ नायिका मुमताज की इज्जत पर हाथ डाल देता है। याददाश्त लौटने पर सब कुछ भूल जाता है। लेकिन, अंत में किसी तरह उसे अपनाकर दर्शकों को फिल्म का सुखांत देता है। ‘पगला कहीं का’ फिल्म का नायक शम्मी कपूर अपनी प्रेमिका हेलन की बेवफाई से पागल होकर याददाश्त खो बैठता है। ‘तेरे नाम’ फिल्म का नायक सलमान खान यानी राधे भी इसी तरह पागल होकर याददाश्त खोता है। अधिकांश फिल्मों में जब नायक या नायिका की याददाश्त जाती है, तो अस्पताल के बिस्तर से उसकी पहली प्रतिक्रिया यही होती है मैं कौन हूं, मैं कहां हूं! याददाश्त जाने को केमिकल लोचा बताने की एक कोशिश आमिर खान की सुपरहिट फिल्म ‘गजनी’ में की गई। एम्नेसिया से पीड़ित यह नायक इतना शातिर है, कि वह याददाश्त भूलने की आशंका में अपने पूरे शरीर को टेलीफोन डायरेक्टरी बना देता है। जबकि, सिर पर चोट की वजह से वो शॉर्ट टर्म मेमोरी लॉस का मरीज रहता है। फिल्म में चीज़ों को भूलने वाला आमिर (संजय) का अपनी गलफ्रेंड की मौत का बदला लेना वास्तव में दिलचस्प था।

Read More… Silver Screen: हिंदी फिल्मों का नया जमाना, धुन नई और गाना पुराना! 

 

WhatsApp Image 2023 08 25 at 10.43.14 PM 1

इस तरह की यादों को झिलमिलाने वाली फिल्मों में शशि कपूर, राखी और रेखा की बसेरा, रणवीर शोरी की मिथ्या, अजय देवगन और काजोल की यू मी और हम, सलमान खान और नीलिमा की एक लड़का एक लड़की, अमिताभ की याराना, सलमान और करिश्मा की क्योंकि, अमिताभ रानी मुखर्जी की ब्लैक, विवेक ओबेराय की प्रिंस, प्रियंका चोपड़ा की ‘यकीन’ भी शामिल है। ऐसा नहीं कि सारी फिल्मों में याददाश्त आने और जाने को एक उपकथा के रूप में ही इस्तेमाल किया गया हो। ‘खामोशी’ और ‘सदमा’ जैसी कुछ सार्थक फिल्में ऐसी हैं, जिनमें इस विषय को गंभीरता से सेल्यूलाइड पर उतारकर दर्शकों की आंखें भी नम कर दी गई। इस विषय पर बनी फिल्मों में ‘सदमा’ सबसे अच्छी थी। इस फिल्म में सड़क हादसे में शहर की रहने वाली नेहालता (श्री देवी) अपनी याददाश्त खोकर बच्चों जैसा व्यवहार करने लगती है। यह देखकर एक टीचर सोमू  (कमल हासन) लड़की की मदद करने के लिए उसे अपने साथ ले जाता है। दोनों के बीच एक खास रिश्ता बनने के कुछ समय बाद लड़की की याददाश्त लौट आती है और वह अपने घर जाने लगती है। पर जब सोमू उसे रोकने की कोशिश करता है, तो उसे कुछ भी याद नहीं रहता। यह फिल्म टीचर सोमू को मिले सदमे के साथ खत्म हो जाती है।    अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘याराना’ में किशन और बिशन बचपन के दोस्त हैं। किशन अनाथ है, जबकि बिशन अमीर घराने से। बिशन के मां प्रॉपर्टी के लिए उस पर खूब अत्याचार करता है और बिशन इस अत्याचार से याददाश्त खो बैठता है। पर, जैसे ही किशन-बिशन से मिलता है उसकी याददाश्त लौट आती है। अमिताभ की ही सुपरहिट फिल्म ‘कुली’ में वहीदा रहमान को कुछ भी याद नहीं होता। पर, जैसे ही उनके परिवार का फोटो सामने आता है, उसकी आंखों के सामने सबकुछ तैरने लगता है। ‘सैलाब’ में एक डॉक्टर को मारने निकला दुश्मन रास्ते में अपनी याददाश्त खो देता है और उसका मरीज़ बन जाता है। जब दोनों एक-दूसरे के प्यार में पड़कर शादी कर लेते हैं, तो एक दिन उसकी याददाश्त लौट आती है और वह फिर डॉक्टर को मारने की कोशिश में जुट जाता है।

WhatsApp Image 2023 08 25 at 10.43.14 PM

‘अंदाज़ अपना-अपना’ में रवीना पैसे वाली लड़की होती है। शादी करने के लिए आमिर खान अपनी याददाश्त खोने का नाटक करता है और उसके घर और दिल दोनों में अपनी जगह बनाने में कामयाब हो जाता है। ‘एक लड़का एक लड़की’ भी ऐसी ही फिल्म थी, जिसमें अमीर घराने की अमेरिका से आई रेणु (नीलम) अपने चाचा की साजिश की वजह से नदी में बहकर याददाश्त खो बैठती है। वह राजा और तीन बच्चों को मिलती है, होश में आने पर राजा उसे ये विश्वास दिलाने में कामयाब हो जाता है ये बच्चे उसके हैं और उसे ये घर संभालना है। इसके बाद की कॉमेडी भी मज़ेदार है, पर अपने चाचा को देखते ही नीलम की याददाश्त वापस आ जाती है और सलमान खान का झूठ पकड़ा जाता है। ‘सलाम-ए-इश्क़’ में बताया गया कि पति-पत्नी के रिश्ते में वैसे तो बहुत पेशेंस की ज़रूरत होती है। उसमें भी अगर पत्नी को कुछ याद न रहे, तो ये कितना मुश्किल होगा सोचकर ही डर सा नहीं लगता। जॉन ने इस डर पर काबू पाया है और यह जता दिया है वो एक परफ्केट हस्बैंड मटेरियल हैं, ऐसे इश्क़ को वाकई में सलाम! ‘जब तक है जान’ में शाहरुख़ खान है, जो 40 की उम्र में याददाश्त खोकर खुद को 28 का मानने लगता है। ये ऐसा सौ टंच हिट फ़िल्मी फार्मूला है, जिसे कई तरह से इस्तेमाल किया गया और किया जाता रहेगा।