Demand for Ayurvedic Medicines Increased : कोरोना के बाद आयुर्वेदिक दवाओं की मांग 20% बढ़ी!

इंदौर से आयुर्वेदिक दवाओं का एक हजार करोड़ का कारोबार!

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Demand for Ayurvedic Medicines Increased : कोरोना के बाद आयुर्वेदिक दवाओं की मांग 20% बढ़ी!

Indore : कोरोना काल में गिलोय और काढ़ा के रूप में विश्वभर में अपनी पहचान बनाने वाली आयुर्वेदिक दवाइयों की मांग अब तेजी से बढ़ने लगी है। हमारी प्राचीन आयुर्वेदिक पद्धति पर अब लोगों का फिर से भरोसा जागने लगा है। कोरोना के बाद से मध्य प्रदेश में आयुर्वेदिक दवाओं के बिक्री में 20 प्रतिशत उछाल आया है। सबसे ज्यादा आयुर्वेद की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की मांग बाजारों में देखने को मिल रही है।

इंदौर में करीब 200 आयुर्वेदिक निर्माण इकाइयां है, जिनका एक हजार करोड़ से अधिक का सालाना कारोबार है। संभाग में पतंजलि, डाबर सहित कई बड़ी निर्माण इकाइयां भी है। जो विदेशों तक दवाओं सहित अन्य आयुर्वेदिक सामानों को निर्यात करती है। खास बात है कि अब अधिकांश बीमारियों से बचाव के लिए आयुर्वेदिक दवाओं का इस्तेमाल किया जाने लगा है। आयुष चिकित्सालयों में भी मरीजों की संख्या में इजाफा होने लगा है।

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कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का भी इलाज अब आयुर्वेदिक पद्धति से सफल इलाज हो रहा है। कोरोना काल में इंटरनेट मीडिया पर आयुर्वेदिक दवाओं का प्रचार तेजी से हुआ था। इस दौरान रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में आयुर्वेदिक दवाओं का भी विशेष योगदान रहा था।

कोरोना के बाद भी लोग बीमारियों से बचाव के लिए आयुर्वेदिक दवाओं का ही सेवन करते हैं। घरों में टूथपेस्ट, क्रीम, तेल आदि नियमित रूप से आयुर्वेदिक ही इस्तेमाल करने लगे हैं। मध्य प्रदेश आयुष निर्माता संघ के अध्यक्ष राजेश सेठिया ने बताया कि प्रदेशभर में करीब एक हजार आयुर्वेदिक दवा निर्माण इकाइयां है। कोरोना के बाद से बाजार में आयुर्वेदिक दवाओं की मांग बढ़ने लगी है। केंद्र व राज्य सरकार की ओर से आयुर्वेद को प्रोत्साहन देने अनेक योजनाएं चलाई जा रही, ताकि लोगों को कम कीमत में गुणवत्तापूर्ण दवा मिल सकें।

पारंपरिक चिकित्सा को समर्थन

हाल ही में गुजरात में आयोजित एक कार्यक्रम में डब्ल्यूएचओ ने पारंपरिक चिकित्सा का समर्थन किया है। साथ ही पूरी दुनिया को इससे सीखने की बात कहीं है। डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक डॉ टेड्रोस अदनाम गेब्रेयसस ने कहा था कि पारंपरिक चिकित्सा का इतिहास बहुत प्राचीन है। भारत इसका केंद्र रहा है। करीब 3500 साल से इस चिकित्सा का लाभ लिया जा रहा है। अन्य देशों को भी इससे प्रेरणा लेनी चाहिए।