श्रीप्रकाश दीक्षित की विशेष रिपोर्ट
बालीबुड मे फ्लाप होने के बाद राजनीति मे चाचा पशुपति पारस से मात खा रहे स्वर्गीय रामविलास पासवान के पुत्र चिराग की बंगलाखोरी पर फजीहत हो रही है.चिराग वह बंगला खाली नहीं कर रहे जो केंद्रीय मंत्री के नाते पिता को मिला था जबकि यह नए रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव को आवंटित हो चुका है.बंगले पर कब्जा बरकरार रखने के लिए चिराग ने वहाँ पिता की मूर्ति स्थापित कर दी है.अब चिराग भले मूर्ति को पिता के प्रति प्रेम बता लीपापोती करें,पर है यह बंगले पर कब्जे की कवायद ही.उनकी तरफ से पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी बंगले को पासवान स्मारक बनाने की मांग कर चुके हैं.
सरकारी बंगले पर हमेशा के लिए कब्जा जमाने के हथकंडे चौधरी चरणसिंह के पुत्र स्वर्गीय अजीतसिंह और चन्द्रशेखर के पुत्र नीरजशेखर भी अपना चुके हैं, जिन्हें बेआबरू होकर रुखसत होना पड़ा था.अजीतसिंह केंद्रीय मंत्री के नाते उसी बंगले मे डटे रहे जो कभी केंद्रीय गृहमंत्री के नाते चरण सिंह का निवास था.मंत्री रहते उन्हे बंगले को चरणसिंह का स्मारक बनाने का कभी खयाल नहीं आया.जैसे ही लोकसभा का चुनाव हारे और बंगला खाली करने का नोटिस मिला उन्हें तुरंत स्मारक की याद आई और उनके समर्थकों ने धरना प्रदर्शन भी किया था.वैसे नेताओं और अन्य रसूखदारों की बंगलाखोरी क्या दिल्ली और क्या भोपाल सब जगह नए कीर्तिमान स्थापित कर रही है.
हालात की गंभीरता का अंदाजा सुप्रीमकोर्ट की कुछ साल पहले की तल्ख टिप्पणी से लगाया जा सकता है की भगवान भी इस देश को नहीं बचा सकते. तब उसने केंद्र को आदेश दिया था की अवैध कब्जा वालों को दंडित करने इसे गैरजमानती अपराध बनाए.मनमोहन सरकार के इंकार करने पर उसे यह कहना पड़ा था.उसने समर्थन के एवज मे मायावती के बहुजन प्रेरणा ट्रस्ट को बंगलों के मामले मे उपकृत किया था.स्वर्गीय जगजीवनराम के बंगले मे पहले पत्नी और फिर पुत्री मीरा कुमार स्पीकर ने नाते रहीं.बाद मे यह जगजीवनराम फाउंडेशन को एलाट कर दिया गया.शुरुआत पंडित नेहरू के निधन पर उनके बंगले तीन मूर्ति भवन को स्मारक मे बदलने से हुई थी.इस मामले मे तब के वित्तमंत्री मोरारजी देसाई की अध्यक्षता मे बनी कमेटी ने प्रधानमंत्री निवास को स्मारक बनाने के खिलाफ राय दी थी.