झूठ बोले कौआ काटे! घोसी में अवसरवाद ढेर, मोदी अभी भी सवा सेर

झूठ बोले कौआ काटे! घोसी में अवसरवाद ढेर, मोदी अभी भी सवा सेर

झूठ बोले कौआ काटे! घोसी में अवसरवाद ढेर, मोदी अभी भी सवा सेर

अवसरवादिता और आयाराम गयाराम की राजनीति को उत्तर प्रदेश के घोसी विधानसभा के उपचुनाव में तगड़ा तमाचा लगा। सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह ने भाजपा के अवसरवादी प्रत्याशी दारा सिंह चौहान को सीधे मुकाबले में 42,759 मतों से पटकनी दे दी। ऐसे में, सपा और ‘इंडिया’ गठबंधन की बांछे खिलना स्वाभाविक है परंतु इसे लोकसभा चुनाव 2024 की दिशा-दशा का संकेत बताना दूर की कौड़ी है। इतिहास गवाह है। चुनाव के दौरान घोसी में गूंजे नारे को कोई ना समझे तो अनाड़ी है- ‘योगी-मोदी से बैर नहीं, दारा तेरी खैर नहीं’।

भारत निर्वाचन आयोग के अनुसार, सपा उम्मीदवार सुधाकर सिंह को 33 चरणों की गिनती में कुल 1,24,427 मत मिले, वहीं भाजपा के दारा सिंह चौहान 81,668 मत हासिल कर सके। तीसरे चरण से ही सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह ने बढ़त बना ली थी और हर चरण की गिनती के साथ अंतर बढ़ता गया। घोसी उपचुनाव में करीब 50.03 प्रतिशत मतदान ही इस बार हुआ था। जबकि, 2022 में यहां 58 प्रतिशत और 2017 में 57 प्रतिशत वोट पड़े थे। कुल 10 उम्मीदवार मैदान में थे, लेकिन मुख्य मुकाबला भाजपा और सपा के बीच ही था।

दारा सिंह चौहान तीन दशक के अपने राजनीतिक करियर में ज्यादातर समय सत्ता के करीब रहे हैं। सबसे पहले बसपा ने 1996 में उन्हें राज्यसभा भेजा। चार साल का कार्यकाल पूरा होते-होते वह सपा में शामिल हो गए। 2000 में सपा से राज्यसभा सदस्य बने। 2007 के विधानसभा चुनाव से पहले बसपा में शामिल हो गए और पार्टी की प्रदेश में पूर्ण बहुमत से सरकार बनी। 2009 का लोकसभा चुनाव बसपा से जीता और पार्टी के संसदीय दल के नेता बने।

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2014 में केंद्र में भाजपा सरकार बनी तो उसके नजदीक आ गए। 12 फरवरी 2015 को भाजपा में शामिल हुए और उन्हें पिछड़ी जाति प्रकोष्ठ का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया। 2017 के विधानसभा चुनाव में मधुबन से जीते और योगी आदित्यनाथ की पहली कैबिनेट में वन एवं पर्यावरण मंत्री बने। पांच वर्ष सत्ता सुख भोगने के बाद 2022 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा पर उपेक्षा का आरोप लगाते हुए इस्तीफा दे दिया और फिर सपा के हो गए। उन्होंने अपनी घोसी सीट भी वापस जीत ली। इसके बाद उन्होंने इस साल जुलाई में सपा छोड़ दी और उपचुनाव में अपनी सीट वापस जीतने के प्रति आश्वस्त होकर फिर से भाजपा में शामिल हो गए।

भाजपा स्पष्ट रूप से चौहान की जीत को लेकर अति आश्‍वस्त थी। भाजपा की सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के नेता ओम प्रकाश राजभर ने तो दावा किया था कि वह इस उपचुनाव के बाद यादव परिवार को वापस इटावा भेज देंगे।

घोसी उपचुनाव में जीत के बाद सपा सुप्रीमो ने कहा कि इंडिया टीम और पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) की रणनीति जीत का सफल फॉर्मूला साबित हुआ है। अखिलेश के मुताबिक भाजपा शासन में इन तीनों वर्गों का दोहन हो रहा है, इसलिए सपा इन्हें साथ लेकर चुनाव लड़ेगी। सपा ने इसके बाद ‘एनडीए को हराएगा पीडीए’ का नारा भी दिया था।

जानकारों का कहना है कि पीडीए मुलायम के माय (मुस्लिम+यादव) समीकरण का ही एक विस्तार है। अखिलेश की नजर मायावती के उन वोटरों पर हैं, जो अभी तक बीजेपी में शिफ़्ट नहीं हुआ है, या बसपा की राजनीति को लेकर दिग्भ्रमित है।

झूठ बोले कौआ काटेः

दारा सिंह चौहान ने मौके देख कर बार-बार पार्टी बदली और सपा के सुधाकर सिंह हमेशा पार्टी के प्रति वफ़ादार रहे, फ़र्क़ सिर्फ़ इतना ही है। फर्क ये भी है कि चुनाव में उतरे दो मुस्लिम चेहरे कुल मिलाकर 4500 वोट ही पा सके। वहीं, सपा को गैर-यादव ओबीसी और सवर्णों के भी खूब वोट मिले।

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सुधाकर सिंह को उत्तर प्रदेश के बड़े बाहुबली नेताओं में गिना जाता है। उन्होंने 1996 में मऊ की नत्थूपुर विधानसभा सीट से पहली बार चुनाव जीता था। 2002 में वो चुनाव हारे थे। उसके बाद साल 2012 में वो सपा से ही दूसरी बार विधायक बने। 2007 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने सुधाकर सिंह को टिकट नहीं दिया। 2017 के विधानसभा चुनाव में सुधाकर का सामना भाजपा नेता फागू चौहान से हुआ। तब सुधाकर सिंह को हार का सामना करना पड़ा था। जुलाई 2019 में फागू चौहान को बिहार का गवर्नर बनाया गया। इस कारण घोसी विधानसभा सीट खाली हो गई। उपचुनाव में सुधाकर सिंह निर्दलीय कैंडिडेट के तौर पर चुनाव लड़े. लेकिन वो भाजपा के विजय राजभर से हार गए।

2022 के विधानसभा चुनाव में सपा ने फिर सुधाकर सिंह को टिकट दिया, लेकिन आखिरी वक्त पर उनसे टिकट वापस ले लिया। सपा ने टिकट दारा सिंह चौहान को दिया। दारा सिंह चुनाव जीत गए, लेकिन एक साल बाद वह फिर भाजपा में चले गए। लेकिन, सुधाकर सिंह ने सपा का दामन नहीं छोड़ा। दलबदल और बार-बार उपचुनाव लोगों की नाराज़गी की वजह बन गई। सुधाकर सिंह को सहानुभूति का लाभ मिला और सवर्ण वोटरों में भी हिस्सेदारी बढ़ी। ‘स्थानीय बनाम बाहरी’ का मुद्दा भी रंग लाया।

घोसी उपचुनाव से ठीक पहले I.N.D.I.A. गठबंधन बना जिसके कारण सपा को कांग्रेस का साथ मिला। एक और कारण, बसपा का चुनाव न लड़ना भी रहा। बसपा का वोटर जो भाजपा को वोट नहीं करना चाहता था, उसके पास मज़बूत विकल्प के तौर पर सपा ही थी। ऐसे में कुछ पिछड़ी जाति, कुछ दलित वोट, मुस्लिम और सुधाकर सिंह की अपनी जाति राजपूत बिरादरी के वोटर सपा के पक्ष में आ गए। यही नहीं, दारा सिंह चौहान और ओम प्रकाश राजभर की पार्टी में रंगदारी कम करने के लिए स्थानीय नेताओं की बेरुख़ी का भी चुनाव पर असर हुआ।

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घोसी सीट पर मिली जीत के बाद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का रुतबा I.N.D.I.A. गठबंधन में बढ़ना तय है। इसके बाद विपक्ष भले ही बल्ले-बल्ले करे लेकिन असल चुनौती तो लोकसभा चुनाव के समय टिकट बंटवारे की होगी। घोसी के गली-मोहल्लों में चुनाव प्रचार के दौरान ये नारा गूंज रहा था कि ‘योगी-मोदी से बैर नहीं, दारा तेरी खैर नहीं’। इस नारे के एक हिस्से को जनता ने अमलीजामा पहना कर स्पष्ट संदेश दे दिया है कि अवसरवादिता की राजनीति के दिन लद गए। दूसरे हिस्से के मायने 2024 के लिए भी बिल्कुल स्पष्ट हैं। इतिहास गवाह है कि राज्यों के विधानसभा चुनाव न तो अतीत में लोकसभा चुनावों को प्रभावित कर सके और न भविष्य में भी प्रभावित कर सकेंगे। पीएम नरेंद्र मोदी की दिन प्रति दिन बढ़ती वैश्विक साख अभी भी उन्हें विपक्ष के आगे सवा सेर बनाती है। और उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की लोकप्रिय डबल इंजन की सरकार इस बार नया इतिहास रच दे तो कोई आश्चर्य नहीं!