MP Election: दो नंबर से रमेश,तीन से आकाश,महू से उषाजी शायद ही हटें
जब 2003 तक मध्यप्रदेश में कांग्रेस सत्तारूढ़ थी, तब इंदौर के प्रत्याशियों की घोषणा करने में उसे खासी मशक्कत करना पड़ती थी। यही हाल अब भाजपा का है, क्योंकि सत्तारूढ़ दल के साथ एक अनार,सौ बीमार होते हैं।यूं कांग्रेस भी पीछे नहीं है। इस दौरान मतदाता और मीडिया दोनों बेचैन रहते हैं। मतदाता इसलिये कि आखिर किस पार्टी से किसे वोट देना है, समझ पड़े। मीडिया इसलिये कि नाम पता चले तो उसका काम खत्म हो और दूसरे काम पर लगे। इस बार कांग्रेस-भाजपा में द्वंद्व इसलिये ज्यादा है कि दोनों ही दलों को लग रहा है कि सरकार तो उसी की बन रही है। इसलिये अपने लोग फिट करने की कवायद में दुविधा बरकरार है।
विधानसभावार बात करते हैं। क्रमांक एक में कांग्रेस से संजय शुक्ला के नाम पर रत्ती भर दुविधा नहीं है, फिर भी रोक रखा है। यह कांग्रेसी स्टाइल है। भाजपा में पुराने विधायक सुदर्शन गुप्ता जबरदस्त रूप से काम पर लगे हैं, लेकिन भाजपा में ही उन्हें न चाहने वाले उनसे दुगने जोश के साथ गुप्ता के काम लगाने पर लगे हुए हैं। अभी तो सुदर्शन का न तो चक्र चल पा रहा है, न चकरी। कोई संजीवनी(नरेंद्र सिंह तोमर,शिवराज सिंह चौहान) ही उन्हें दोबारा प्रत्याशी बनवा सकती है। शेष नाम प्रभावहीन हैं। इसलिये, यहां सुदर्शन विरोध प्रबल रहा तो आयातित प्रत्याशी ही आयेगा। यह चौंकाने वाला नाम सुश्री उषा ठाकुर का हो सकता है, जो सुदर्शन से पहले यहां से विधायक थी। जो शेष नाम हैं, वे आये तो संजय भारी साबित हो सकते हैं।
दो नंबर को लेकर चर्चायें-अफवाहें तो गजब की चलती रहती हैं, लेकिन रमेश मेंदौला शहर भाजपा में अंगद का पैर हैं। कहने को उनका नाम एक नंबर से भी लिया जा रहा है, केवल इसलिये कि कांग्रेस के ब्राह्मण के सामने भाजपा का सवाया ब्राह्मण । तब दो नंबर से कौन ? बहुत आसानी से ऐसे में आकाश विजयवर्गीय का नाम चला दिया जाता है।लेकिन, ऐसा तो 2018 के चुनाव के समय भी हुआ था, जब आकाश नये-नवेले थे और तीन नंबर खतरे के निशान से ऊपर दिख रहा था। जब रमेश नहीं हिले, तो अब तो सोचना भी नहीं चाहिये, किंतु यही तो राजनीति की रीत है, जितनी शाब्दिक जुगाली की जा सके, कर लो। यहां से कांग्रेस का प्रत्याशी होना न होना एक समान है। वैसे कांग्रेस से चिंटू चौकसे का नाम है।
तीन नंबर को लेकर भी अफवाहें उफनती रहती हैं। आकाश को यहां से संशयात्मक स्थिति में बताकर कहीं भेजने का जिक्र होता है। पहला ख्याल दो नंबर ही आता है, क्योंकि वे उसी क्षेत्र के निवासी हैं और उनके पिता कैलाशजी विजयवर्गीय की सीट भी रही है। इसी नाते उनका नाम महू के लिये भी चला दिया जाता है, जो कि बेहद अप्रासंगिक है। आकाश,कैलाशजी और शहर भाजपा निश्चित ही आश्वस्त होगी कि आकाश को तीन नंबर से ही टिकट दिया जाये, क्योंकि उन्होंने इस क्षेत्र में विकास कार्यों की झड़ी लगाई है और आम तौर पर कांग्रेस प्रभावित मुस्लिम इलाकों में भी बिना भेदभाव के काम किये हैं,जो उनकी पीठ पर गिनाये जाते हैं। ऐसा माना जा रहा है कि इस बार आकाश को हराने जितने आक्रामक मुस्लिम मतदाता नहीं रहेंगे। देखा जाये तो यहां भाजपा की ओर से कोई मजबूत दावेदार भी आकाश के सामने नहीं है। तो आकाश बैठे-ठाले पंगा नहीं लेंगे, न पार्टी कोई जोखिम लेगी। कांग्रेस से संभावना पिंटू जोशी की है, लेकिन भाइयों के झगड़े में अरविंद बागड़ी की लॉटरी खुल सकती है।
चार नंबर में भाजपा में खदबद जरूर है, लेकिन वह श्रीमती मालिनी गौड़ के नाम पर नहीं है, बल्कि उनके बेटे एकलव्य को लेकर है। मालिनी भाभी संभवत इस खतरे को पहचान चुकी है। इसीलिये एक बार फिर वे मैदान में उतरने को तैयार हैं। भाजपा नेतृत्व को भी उनके नाम पर दिक्कत नहीं होगी। याने चार नंबर में भाजपा खेमे से जितने भी लोग खम ठोंक रहे हैं, उनकी मेहनत,मंसूबे फालतू जायेंगे। यहां से एक जबरदस्त अफवाह सांसद शंकर लालवानी के नाम को लेकर है। पता नहीं, क्यों और कैसे यह नाम हवा में तैर रहा है, जबकि भाजपा के प्रादेशिक और केंद्रीय नेतृत्व के स्तर पर इस नाम को लेकर कोई चर्चा ही नहीं है। यहां से कांग्रेस की ओर से राजा मंघवानी ,अक्षय बम और अभय वर्मा का नाम है।सुरजीत सिंह को शहर अध्यक्ष और गोलू अग्निहोत्री को कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर संभावित दावेदारों को बिना आवाज अलग कर दिया। यहां से कांग्रेस का प्रत्याशी हारने के लिये ही लड़ता है। मालिनी भाभी की जगह एकलव्य भी रहे तो मतों का अंतर हो सकता है, नतीजा नहीं बदलने वाला।
पांच नंबर से इतना तो तय है कि मौजूदा विधायक महेंद्र हार्डिया को प्रत्याशी नही बनाया जायेगा। उनका विकल्प कौन? इस पर अभी संशय है। चलने को तो शहर अध्यक्ष गौरव रणदिवे का भी नाम है, जो अलग-अलग तरीके से सक्रिय भी हैं और एफ एम रेडियो पर शहर में भाजपा द्वारा किये गये काम गिनाते हुए उनके बयान लगातार आ रहे हैं, लेकिन उनका रास्ता निरापद नहीं है। खजराना,आजाद नगर जैसे मुस्लिम बहुल इलाके वाले इस क्षेत्र में भाजपा किसी मुस्लिम प्रत्याशी को तो कतई प्रत्याशी नहीं बनाने जा रही, लेकिन सधे कदमों से चल जरूर रही है। कहने को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में जिम्मेदारी निभा रहे नानूराम कुमावत ने भी भाजपा से दावेदारी का दम दिखाया है। सामने कांग्रेस से पहला नाम सत्यनारायण पटेल का है, जो इस समय तक चप्पे-चप्पे की खाक छान चुके हैं और अभी-भी सांस लेने के लिये भी नहीं रुक रहे। वे धार्मिक,सामाजिक कार्यों के माध्यम से अपनी सक्रियता बनाये हुए हैं, जिसमें भोजन-भंडारे,कथा-भजन,रूद्राक्ष वितरण जैसे अनेक प्रकल्प लिये हाजिर रहते हैं। मीडिया को भी लंगर दे चुके हैं। उनकी चिंता भाजपा प्रत्याशी तो है भी नहीं। वे तो कांग्रेस से ही स्वप्निल कोठारी का रास्ता रोकने के जतन कर रहे हैं। शिक्षित,प्रबुद्ध,कारोबारी,कुशल वक्ता,संपर्कशील और जैन समाज से होने के नाते उनकी दावेदारी भी दमदार है। कोठारी और पटेल के हक में एक बात समान है कि दोनों ही गांधी परिवार के नजदीकी होने का दावा करते हैं और अलग-अलग कारणों से वैसा है भी। ऐसे में दोनों अपनी पूरी शक्ति संचय कर टिकट पाने में झोंक रहे हैं। जिसे भी टिकट मिलेगा, वो गांधी परिवार के वीटो से ही मिलेगा।
राऊ से भाजपा मधु वर्मा को प्रत्याशी बना ही चुकी है, जबकि कांग्रेस की ओर से मौजूदा विधायक जीतू पटवारी प्रतीक्षारत है, जबकि यहां से कांग्रेस का न तो कोई दावेदार है, न दुविधा। कांग्रेस की यही खासियत है कि किसी को मुगालता नहीं पालने देती। फिर प्रत्याशी कैबिनेट मंत्री रहा हो, राहुल गांधी का सहयोगी होने, नजदीकियां होने का दावा ही क्यों न करे। भाजपा ने यहां से पिछला चुनाव हारे जीतू जीराती को दरकिनार किया है। वे प्रबल प्रत्याशी थे, क्योंकि वे प्रदेश के उपाध्यक्ष हैं। उप चुनाव में हाट पिपल्या के प्रभारी थे, जहां से भाजपा प्रत्याशी विजयी भी हुआ था। वे प्रदेश के एकमात्र नेता थे, जिनके पास गुजरात विधानसभा में करीब 37 सीटों की जवाबदारी थी, ,जिनमें से ज्यादातर पर भाजपा विधायक विजयी भी हुए थे। भले ही उनके कारण नहीं, लेकिन सफलता का आकलन तो होता ही है। संगठन में भी उनकी सक्रियता जबरदस्त है। लग तो रहा है कि पार्टी उन्हें कहीं से प्रत्याशी अवश्य बनायेगी।
महू को लेकर भी अफवाहें,मशक्कत और दावेदारी कम नही। वजह बताई जा रही है,मौजूदा विधायक उषा ठाकुर का उस क्षेत्र में खास ध्यान नहीं देना। न विकास कार्यों की वहां भरमार रही, न कार्यकर्ताओं को संतुष्ट रखा जा सका। इसलिये खुले तौर पर वे प्रदेश नेतृत्व के सामने तो विरोध दर्शा चुके हैं। साथ ही वे इस बार स्थानीय व्यक्ति चाहते हैं। पिछले तीन चुनाव से इंदौर के नेता को ही मौका दिये जाने से वे नाराज हैं। दो बार कैलाशजी विजयवर्गीय और एक बार उषाजी विधायक रही हैं। यूं लगता नहीं कि भाजपा नेतृत्व उषाजी की सीट बदलेगा। पिछले दिनों प्रधानमंत्री से उनकी मुलाकात के भी अलग मायने निकाले जा रहे हैं। उनके पक्ष में अनेक बातें हैं। वे संघ,राष्ट्र सेविका समिति,भाजपा की निष्ठावान सिपाही हैं। संघ व पार्टी कार्य के लिये प्रचारक की तरह अविवाहित रही हैं। महिला होने के नाते भी उनके प्रतिनिधित्व को बरकरार रखने का ठोस कारण है। ऐसे में यदि आसमानी-सुल्तानी नहीं हुई तो उषाजी महू से ही प्रत्याशी होंगी। उन्हें एक ही सूरत में यहां से हटाकर क्षेत्र क्रमांक एक में भेजा जा सकता है कि वहां से सुदर्शन गुप्ता को टिकट नहीं दिया जाये और किसी अन्य को देने से असंतोष न पनपे तो सुश्री ठाकुर को प्रत्याशी बना दिया जाये।
देपालपुर में कांग्रेस विशाल पटेल को ही टिकट देगी और भाजपा मनोज पटेल की बजाय नया चेहरा ला सकती है। सांवेर में भाजपा से तुलसी सिलावट तो तय हैं, लेकिन कांग्रेस की सूई अभी अटकी है। यदि रीना बोरासी को प्रत्याशी बनाया तो इंदौर जिले से कांग्रेस की एकमात्र महिला प्रत्याशी होंगी।