विशेष टिप्पणी: अशोक गहलोत का अपने विरोधियों से भी निपटने का अपना अलग ही निराला तरीका
गोपेंद्र नाथ भट्ट की खास रिपोर्ट
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का अपने विरोधियों से भी निपटने और व्यक्तिगत सम्बन्ध बनाने का अपना एक अलग ही और निराला तरीका है जो उनके विरोधियों को भी अपना मुरीद बना देता है।
गहलोत ने गुरुवार को अपने कोटा दौरा में नाराज़ चल रहें पूर्व मंत्री और विधायक भरत सिंह कुंदनपुर के निवास पहुँच कर हर किसी को चौंका दिया । गहलोत ने कुंदनपुर से यह मुलाकात कर यह दर्शाने का प्रयास किया कि वे अपने विरोधियों को भी महत्व देते हैं और उनकी बात सुन सम्मानजनक हल निकालने का प्रयास करते हैं।
राजघराने से सम्बन्ध रखने वाले भरत सिंह गहलोत के पिछलें मंत्री परिषद में मंत्री थे लेकिन इस बार वे मंत्री नही बने और एक विधायक के रूप में उन्होंने कई बार अपनी ही पार्टी की सरकार और नेतृत्व के प्रति नाराजगी प्रकट की।उन्होंने मुख्यमंत्री गहलोत को उनके खान मंत्री प्रमोद जैन भाया की कार्यशैली और खान प्रकरणों का खुलासा करने के साथ ही प्रदेश के अन्य कई मामलों में नाराज़गी भरें पत्र लिखे थे। उनके इन मामलों की राज्य सरकार के स्तर पर समुचित सुनवाई नहीं होने पर हाल ही उन्होंने अपना गहरा विरोध प्रकट करने के लिए अपने सिर का मुंडन करा लिया और एक कड़ा पत्र लिख सीएम को अपने सिर के कटे बाल भेज दिए ।
चुनावी वर्ष में भरत सिंह के मुंडन कराने और देश प्रदेश में इस पर हुई प्रतिक्रिया के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सक्रिय हुए और भरत सिंह के कोटा स्थित घर पहुँच गए और उनकी नाराजगी दूर करने तथा उन्हें मनाने का गम्भीर प्रयास किया।
गहलोत गुरुवार को जब भरत सिंह के कोटा में गुमानपुरा स्थित निवास पर पहुंचें तब उनके साथ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और राज्य के नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल भी थे।
भरत सिंह ने भी मुख्यमंत्री गहलोत की इस सदाश्यता से प्रसन्न होंकर अपने घर के बाहर न केवल उनकी अगवानी की वरन उन्हें अपने निवास के अंदर भी ले गए । साथ ही उनके साथ लम्बी मंत्रणा भी की। गहलोत ने उनकी सारी बातें सुनी और उन्हें अपना पार्टी का एवं सरकारी पक्ष भी समझाया। साथ ही मुलाकात के बाद सीएम गहलोत ने कहा कि भरत सिंह जी हमारी पार्टी के वरिष्ठ नेता है । यह सही है कि उनकी नाराजगी कुछ लोगों से हो सकती है लेकिन अब जब मैरी उनसे अच्छे माहौल में मुलाकात हुई है तों पहले जैसी कोई बात और वातावरण नहीं रहा है । साथ ही उनकी सौच में भी कुछ बदलाव आया है। मैंने उनसे कुछ बातें कही है जिसका निश्चित तौर पर अच्छा असर दिखाई देगा ।
मुलाक़ात के बाद में सीएम गहलोत विधायक भरत सिंह को कोटा में बनने वाले ग्रीन फील्ड एयरपोर्ट स्थल का निरीक्षण करने भीअपने साथ ले गए और उनके समक्ष सम्बन्धित अधिकारियों से एयरपोर्ट की भावी योजना के बारे में जानकारी प्राप्त की। साथ ही उन्होंने एयरपोर्ट को लेकर भरत सिंह द्वारा रखी गई बातों से भी अधिकारियों को अवगत कराया तथा तद् अनुरूप कार्यवाही की सम्भावनाओं को भी टटोलने के निर्देश दिए। इस तरह मुख्यमंत्री गहलोत ने यह संदेश देने का प्रयास किया कि संवाद स्थापित कर कई गलतफहमियों को दूर किया जा सकता हैं।
उल्लेखनीय है कि गहलोत के इस कदम से उनके एक स्टेटमेन तथा सहृदय नेता होने की छवि उभरी है । वे इसके पहले भी कई बार ऐसा कर चुके है। दिवंगत भैरोंसिंह शेखावत के देश के उप राष्ट्रपति बनने के समय गहलोत द्वारा उन्हें बधाई देने के मामले में भी मीडिया में विवाद पैदा हो गया था लेकिन गहलोत ने नई दिल्ली स्थित राजस्थान हाऊस में न केवल शेखावत साहब के रहने के सभी माकूल प्रबन्ध किए वरन बाद में हैदराबाद हाउस पहुँच कर उन्हें गर्मजोशी से बाँहों में भर उन्हें हार्दिक बधाई दी जिसके फोटो देश भर के अख़बारों और टीवी चेनल्स पर सुर्खियाँ बनें।गहलोत के शेखावत के साथ यह मधुर सम्बन्ध उनके अंतिम समय तक बने रहें तथा उन्होंने जयपुर में शेखावत की समाधि स्थल को विकसित करने के लिए तन मन धन से मदद की। गहलोत के ऐसे कई संस्मरण हैं जिनका उल्लेख करना समयोचित है। वैसे भी राजस्थान की राजनीति में शुरू से ही पक्ष विपक्ष के नेताओं के मध्य मर्यादित आचरण व्यवहार कुशलता और स्वस्थ परम्पराओं का प्रचलन रहा है । मोहन लाल सुखाडिया, हरिदेव जोशी,भैरोंसिंह शेखावत और वसुन्धरा राजे आदि मुख्यमंत्री भी प्रतिपक्ष के नेताओं और पार्टी में अपने विरोधियों से व्यक्तिगत सम्बन्धों को राजनीति से अलग ही रखते थे। भैरोंसिंह शेखावत तों नाराज़ नेताओं के घरों में पहुँच कर उनके परिवार के सदस्यों के साथ खाना खाकर सम्बन्धों को सामान्य बनाते थे।
ज़मीन से जुड़े होने की अपनी साख के अनुरूप मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की शिक्षा की काशी माने जाने वाले कोटा नगर में भरत सिंह कुन्दनपुर से हुई मुलाकात के बाद अब यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रदेश की राजनीति विशेष कर कांग्रेस के पक्ष में इसका कितना असर रहेगा?
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