नेहरू, इंदिरा, राजीव सबको खुश कर दिया मोदी ने…

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नेहरू, इंदिरा, राजीव सबको खुश कर दिया मोदी ने…

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसद के पुराने भवन में 75 वर्षों की संसदीय यात्रा को पुनः स्मरण कर पुराने प्रेरक पलों का दलों से परे हो जिक्र करना मन को छू गया है। वह पल मोदी के इस उदार अवतार के कायल हो गए होंगे जो पुराने संसद भवन में प्रधानमंत्री मोदी के अंतिम भाषण के साक्षी बन रहे थे। मंगलवार यानि 19 सितंबर 2023 को नए संसद भवन में प्रवेश का दिन है। और मोदी के अंतिम भाषण की खास बात यही है कि उन्होंने दलगत भावना से ऊपर उठकर जिस तरह भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, देश की पहली और इकलौती महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और सबसे कम उम्र में प्रधानमंत्री बने राजीव गांधी  के योगदान को जिस तरह रेखांकित किया, उससे मोदी की अलग छवि देश की 140 करोड़ आबादी, कांग्रेस पार्टी और नेहरू-गांधी परिवार का मन मोहने वाली है। बीसवीं सदी में सर्वाधिक सालों तक पुराने संसद भवन में प्रधानमंत्री के रूप में अपना सर्वस्व समर्पित करने वाले तीन प्रधानमंत्रियों नेहरू, इंदिरा और राजीव की आत्मा इक्कीसवीं सदी में भाजपानीत सरकार के सबसे तेजतर्रार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुंह से 18 सितंबर 2023 को राष्ट्रनिर्माण में उनके योगदान का जिक्र सुनकर धन्य-धन्य हो गई होंगी। ऐसी उम्मीद गांधी-नेहरू परिवार का कोई व्यक्ति तो दूर, कांग्रेस पार्टी के किसी नेता ने भी सपने में भी नहीं की होगी। खासतौर से इस वर्तमान राजनैतिक माहौल में जब से देश की बागडोर मोदी के हाथ में आई है, तब से कोई गैर राजनैतिक सामान्य व्यक्ति भी मोदी के इस ऐतिहासिक भाषण से भौंचक्का अनुभव ही कर रहा होगा। निश्चित तौर पर दलों की सीमा से दूर जाकर पुराने संसद भवन में आखिरी दिन प्रधानमंत्री के रूप में दिया गया मोदी का यह भाषण इतिहास में एक सर्वप्रिय भाषण के रूप में दर्ज हो गया है।

मोदी ने कहा कि इस 75 वर्ष की हमारी यात्रा ने अनेक लोकतांत्रिक परम्पराओं और प्रक्रियाओं का उत्तम से उत्तम सृजन किया है। और इस सदन में रहते हुए ‘सबने’ उसमें सक्रियता से योगदान भी दिया है। अमृतकाल की प्रथम प्रभा का प्रकाश, राष्‍ट्र में एक नया विश्‍वास, नया आत्‍मविश्‍वास, नई उमंग, नए सपने, नए संकल्‍प, और राष्‍ट्र का नया सामर्थ्‍य उसे भर रहा है। चारों तरफ आज भारतवासियों की उपलब्धि की चर्चा हो रही है और गौरव के साथ हो रही है। ये हमारे 75 साल के संसदीय इतिहास का एक ‘सामूहिक प्रयास’ का ‘परिणाम’ है। जिसके कारण विश्‍व में आज वो गूंज सुनाई दे रही है। तो मोदी ने माना कि जी-20 की सफलता 140 करोड़ देशवासियों की है। ये भारत की सफलता है, किसी व्‍यक्ति की सफलता नहीं है, किसी ‘दल की सफलता नहीं’ है।

मोदी ने कहा कि ‘पंडित नेहरू जी’, शास्त्री जी वहां से लेकर के अटल जी, मनमोहन जी तक एक बहुत बड़ी श्रृंखला जिसने इस सदन का नेतृत्व किया है और सदन के माध्यम से देश को दिशा दी है। देश को नए रूप रंग में ढालने के लिए उन्होंने परिश्रम किया है, पुरुषार्थ किया है। आज ‘उन सबका’ गौरवगान करने का भी अवसर है।

और मोदी के मुंह से यह सुनना शायद उन दिलों को खुशी से भर गया होगा, जिन्होंने किसी भी स्थिति में मोदी के मुंह से ऐसी बातें सुनने की कल्पना नहीं की होगी।मोदी ने जिक्र किया कि उमंग उत्साह के पल के बीच में कभी सदन की आंख से आंसू भी बहे हैं। ये सदन दर्द से भर गया जब देश को तीन अपने प्रधानमंत्री उनको अपने कार्यकाल में ही खोने की नौबत आई। ‘नेहरू जी’, शास्त्री जी, ‘इंदिरा जी’, तब ये सदन आश्रम भीनी आंखों से उन्हें विदाई दे रहा था।

यह भी खास कि इसी सदन में ‘पंडित नेहरू’ की ‘एट द स्ट्रोक ऑफ मिडनाइट’ की गूंज हम सबको प्रेरित करती रहेगी। और इसी सदन में अटल जी ने कहा था, शब्द आज भी गूंज रहे हैं इस सदन में। सरकारें आएंगी, जाएंगी, पार्टियां बनेंगी, बिगड़ेंगी, लेकिन ये देश रहना चाहिए।

फिर जिक्र किया कि बांग्लादेश की मुक्ति का आंदोलन और उसका समर्थन भी इसी सदन ने ‘इंदिरा गांधी’ के नेतृत्‍व में किया था। तो यह भी बताया कि इसी सदन ने इमरजेंसी में लोकतंत्र पर होता हुआ हमला भी देखा था और इसी सदन ने भारत के लोगों की ताकत का एहसास कराते हुए मजबूत लोकतंत्र की वापसी भी इसी सदन ने देखी थी। वो राष्‍ट्रीय संकट को भी देखा था, ये सामर्थ्‍य भी देखा था।

बिना नाम लिए ही सही पर मोदी ने प्रधानमंत्री राजीव गांधी का देश के प्रति महत्वपूर्ण योगदान का जिक्र करते हुए कहा कि इसी सदन में मतदान की उम्र 21 से 18 करने का निर्णय हुआ था और देश की युवा पीढ़ी को उसका योगदान देने के लिए प्रेरित किया गया, उत्‍साहित किया गया था।

खास बात यही है कि आजादी के अमृतकाल में राष्ट्र निर्माण में सभी के योगदान को दलीय भावना से परे हटकर पूरे शिद्दत से याद किया जाना चाहिए। और जब किसी के योगदान को मुक्तकंठ से सराहा जाता है तो उसकी कमियों को गिनाए जाने का हक स्वयमेव मिल जाता है और किसी को चुभता नहीं है। जिस तरह इंदिरा के योगदान का जिक्र किया तो आपातकाल की चर्चा भी की। फिलहाल मोदी के पुराने संसद भवन के इस आखिरी भाषण को भारत के प्रधानमंत्री बतौर उनके सर्वश्रेष्ठ भाषणों में शामिल किया जाएगा। जिसमें ‘सबने’, ‘सामूहिक प्रयासों का परिणाम’, ‘सबका गौरवगान’ करने का अवसर, ‘किसी दल की नहीं’ भारत की सफलता आदि शब्द निश्चित तौर से एक परिपक्व लोकतंत्र के परिपक्व जनप्रतिनिधि का चेहरा पूरे विश्व के सामने लाते हैं। और चुनावी आरोप-प्रत्यारोप के बादल मौसमी बन भले ही अपनी जगह गरजते-बरसते रहें, लेकिन सदन के भीतर सत्तारूढ़ दल के नेता से यही अपेक्षा का भाव परिपक्व लोकतांत्रिक राष्ट्र की मांग भी है, जिसके लिए भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी को हमेशा याद किया जाता है…।

हालांकि यह भी सब समझते हैं और खास तौर से विपक्षी दल कि मोदी का यह रूप केवल पुरानी संसद में आखिरी दिन के भाषण तक ही संभव है। भले ही उन्होंने भाषण में कहा हो कि परिवार की भावना सदन का प्रमुख गुण है क्योंकि कड़वाहट कभी नहीं टिकती। पर आने वाले दिनों में कड़वाहट स्थायी तौर पर देखने को मिलने वाली है। क्योंकि मोदी ने साफ भी कर दिया था कि आज का दिवस सिर्फ और सिर्फ इस सदन के सभी साढ़े सात हजार जनप्रतिनिधि रह चुके है, उनके गौरवगान का पन्ना है। और इसीलिए मोदी ने इस दिन नेहरू, इंदिरा, राजीव सबको खुश कर दिया। और अब यह सुनहरा पन्ना पुराने संसद भवन में आखिरी भाषण के बाद पलट गया है। ऐसे सुनहरे पन्ने और स्वर्णिम दिन रोज-रोज नजर नहीं आते साहब…।