Glory of Ganeshji: पारिजात पुष्प,फलों में केला, अमरूद और सीताफल पसंद हैं गणेश जी को
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गणेश जी के जन्म की कथा इस तरह है कि एक दिन पार्वती जी ने स्नान से पहले अपने उबटन से एक पुतला बनाया और उसमें प्राण डाल दिए । फिर कहा कि मैं स्नान करने जा रही हूं और दरवाजे पर खड़े हो जाओ । यदि कोई आए तो अंदर मत आने देना । पार्वती जी स्नान करने चलीं गईं तभी शंकर जी आ गए और अंदर जाने लगे तब बालक ने रोका कि आप नहीं आ सकते । शंकर जी बोले यह मेरा घर है तो बालक ने कहा कि मां पार्वती ने मना किया है । बालक की जिद देख कर शंकर जी ने उनका सिर काट दिया । इतने में पार्वती जी स्नान कर के आईं तो बोली कि ये बालक मेरी आज्ञा का पालन कर रहा था । जल्दी से किसी का सिर लाकर जो़ड़़ दो तुरन्त । शंकर जी बाहर निकले तो सर्वप्रथम गजराज दिखे तो उनका सिर काट कर लाए और लगा दिया । इस कथा के पीछे कारण यह है कि कश्यप ऋषि ने शंकर जी को श्राप दिया था कि जिस प्रकार मेरे पुत्र का वक्षस्थल विदीर्ण हुआ है उसी प्रकार आपके पुत्र का सिर विदीर्ण होगा तो शंकर जी ने स्वयं सिर काट दिया ।
श्रीगणेश का जन्म भादों की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को हुआ था और इन दस दिनों में गणेश जी पृथ्वी पर कृपा करते हैं तथा भक्तों को सुख व ज्ञान देते हैं जो उनकी स्थापना करते हैं ।ये बाधाओं को दूर करते हैं और विसर्जन के समय घर की बाधाएं भी साथ ले जाते हैं ।गणेश जी प्रथम पूज्य हैं क्योंकि पार्वती जी और शिव जी की परिक्रमा कर सिद्ध कर दिया कि वे ही प्रथम पूजा के योग्य हैं । शिव जी ने पुत्र कार्तिकेय और गणेश जी की परीक्षा ली कि जो पहले पृथ्वी की परिक्रमा कर के आएगा वही पहले पूज्य होगा । गणेश जी ने बुद्धि लगाकर माता-पिता क परिक्रमा कर ली और कहा कि मेरा सर्वस्व आप ही हैं । तब से वे प्रथम पूज्य हुए ।उनका बड़ा सिर समझ और विवेकपूर्ण बुद्धि का परिचायक है ।
श्रीगणेश जी का बीजमंत्र ‘गं है और मूलमंत्र ओम गं गणपतये नम: है। इन्हें पारिजात पुष्प पसंद है । गणेश जी को लाल ,पीला और हरा रंग प्रिय है । फलों में केला अमरूद और सीताफल पसंद है ।
इनकी तीन बहनें और दो पुत्र सिद्धि से क्षेम और रिद्धि से लाभ नाम के हैं । इनका पहला नाम विनायक था परन्तु ,मस्तक कटने के बाद गजानन हुआ । इनकेे तीन अवतार हो चुके हैं और चौथा कलियुग में घोड़े पर वार आएंगे ,जो शूर्पकर्ण व धूम्रवर्ण नामक होंगे । ये अवतार पापियों का नाश करेगा ।
कलाकृति मानुषी भार्गव-पारिजात से बने गणेश
पहला सतयुग मेें सिंह पर सवार प्रकट हुए कश्यप और अदिति के यहां । यहं विनायक नाम से देवतान्तक व नरान्तक राक्षसो का वध किया । त्रेतायुग में मयूर रपर सवार होकर उमा के गर्भ से भाद्रपद शुक्ल की चतुर्थी को परकट हुए ,जिन्हें गणेश नाम दिया । सिंधु दैत्य का संहार किया और ब्रम्हदेव की कन्याएं रिद्धि व सिद्धि से विवाह किया । द्वापर युग में मूषक पर सवार होकर पुन;पार्वती के गर्भ से जन्म लेकर गणेश कहाए जिनको किसी कारण से जंगल मे छोड़ दिया और पाराशर ऋषि ने पालन -पोषण किया।
गणेशजी को पौराणिक पत्रकारव लेखक कहा जाता है ;क्योंकि उन्होंने महाभारत का लेखन किया था ,जिसके रचयिता वेदव्यास जी थे । लिखने का दायित्व गणेश जी को मिला इस शर्त के साथ कि बीच में ना रूकें ।हर श्लोक का अर्थ समझ कर लिखें । ।अर्थ समझने में लगता था और इस बीच वेदव्यास जी अपने अन्य कार्य क लेते थे । गणेश जी को मोदक व लड्डू प्रिय हैं । जय गजानन ।
नीति अग्निहोत्री ,इंदौर (म.प्र.)