Tiger Boy of undivided Madhya Pradesh–Chendru Mandavi: अविभाजित मध्य प्रदेश का टाइगर बॉय–चेंदरू मंडावी

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Tiger Boy of undivided Madhya Pradesh–Chendru Mandavi: अविभाजित मध्य प्रदेश का टाइगर बॉय–चेंदरू मंडावी

अनिल तंवर की ख़ास रिपोर्ट

बस्तर के प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो. ओम प्रकाश सोनी बताते है कि– शकुंतला दुष्यंत के पुत्र भरत बाल्यकाल में शेरों के साथ खेला करते थे, वैसे ही बस्तर का यह लड़का बाघ के साथ खेलता था. इस लड़के का नाम था चेंदरू. “चेंदरू द टायगर बाय” के नाम से मशहूर, चेंदरू पूरी दुनिया के लिये किसी अजूबे से कम नहीं था. बस्तर मोगली नाम से चर्चित चेंदरू पूरी दुनिया में 60 के दशक में बेहद ही मशहूर था.

मोगली के बारे में कहा जाता है कि उसे उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में अंग्रेज शिकारियों ने वर्ष 1867 में पकड़ा था. उन्हें जंगल में एक लड़का दिखा जो भेड़ियों के साथ जंगल के चक्कर लगा रहा था. हैरानी की बात ये थी कि वो अपने दोनों हाथ और पैर के सहारे चल रहा था. उन्होंने बच्चे का पीछा किया तो वो और एक भेड़िया गुफा में घुस गए. शिकारियों ने गुफा में आग लगा दी जिसकी वजह से उन्हें बाहर निकलना पड़ा. बाहर आते ही भेड़िये को गोली मार दी गई और बच्चे को पकड़ लिया गया. उसे इंसानों के बीच ले जाने की योजना शिकारियों ने बनाई लेकिन सफल नहीं हुए.

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श्री सोनी बताते है कि–चेंदरू मंडावी, नारायणपुर के गढ़ बेंगाल का रहने वाला था. मुरिया जनजाति का यह लड़का बड़ा ही बहादुर था. एकं दिन जंगल से उसके पिता और दादा जो कि कुशल शिकारी थे, उसके लिए एक तोहफा लाए. बांस की टोकरी में छिपे तोहफे को देखने में चेंदरू बड़ा ही उत्साहित था. तोहफा एक दोस्ती का था जिसने चेंदरू का जीवन बदल दिया चेंदरू के सामने जब टोकरी खुली उसने अपनी सोच से परे कुछ और पाया, टोकरी में था एक बाघ (Tiger) का बच्चा, जिसे देख चेंदरू ने उसे अपने गले से लगा लिया और इस मुलाकात से टायगर और चेंदरू की अच्छी दोस्ती की शुरूआत हो गई. चेंदरू ने उस बाघ के बच्चे का नाम टेम्बू Tembu रखा.

चेंदरू हमेशा टेम्बू के साथ गांव के जंगल में घूमता व नदी में मछलियां पकड़ता. जंगल मे कभी तेंदुए मिल जाते तो वह इनके साथ भी खेलने लगता. जब चेंदरू और टेम्बू रात को घर आते तो चेंदरू की माँ उनके लिये चावल और मछली बना कर रखती थी.

इन दोनों की पक्की दोस्ती थी. दोनों साथ में ही खाते, घूमते और खेलते थे. इन दोनों की दोस्ती की जानकारी धीरे धीरे पूरी दुनिया में फैल गयी. स्वीडन के ऑस्कर विनर फिल्म डायरेक्टर आर्ने सक्सडॉर्फ ने चेंदरू पर फिल्म बनाने की सोची और पूरी तैयारी के साथ बस्तर पहुंच गए. उन्होंने चेंदरू को ही फिल्म के हीरो का रोल दिया और यहां रहकर दो साल में शूटिंग पूरी की. 1957 में यह फिल्म रिलीज हुई. “एन द जंगल सागा” जिसे इंग्लिश में “दी फ्यूल्ट एंड दी एरो” के नाम से भी जारी किया गया, जिसे यू ट्यूब पर देखा जा सकता है.

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फिल्म के रिलीज होने के बाद चेंदरू को भी स्वीडन और बाकी देशों में ले जाया गया. उस दौरान वह महीनों विदेश में रहा. चेंदरू को आर्ने सक्सडॉर्फ गोद लेना चाहते थे लेकिन उनकी पत्नी एस्ट्रीड से उनका तलाक हो जाने के कारण ऐसा हो नहीं पाया. एस्ट्रीड एक सफल फोटोग्राफर थी फ़िल्म शूटिंग के समय उन्होंने चेंदरू की कई तस्वीरें खींची और एक किताब भी प्रकाशित की “चेंदरू द बॉय एंड द टाइगर”.

आर्ने भी चाहते थे कि चेंदरू वो जगह देखे जहाँ से वह आए है, तो उन्होंने चेंदरू को स्वीडन ले जाने का सोचा और वो उसे स्वीडन ले गए. चेंदरू के लिये स्वीडन एक अलग ही दुनिया थी, आर्ने ने उसे एक परिवार का माहौल दिया, उन्होंने उसे अपने घर पर ही रखा और आर्ने की पत्नी एस्त्रिड सक्सडोर्फ Astrid Saxdorf ने चेंदरू की अपने बेटे की तरह देखरेख भी की.

एक साल बाद चेंदरू स्वदेश वापस लौटा. मुम्बई पहुँच कर उसकी मुलाकात तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से हुई, उन्होंने चेंदरू को पढ़ने के लिये कहा, पर चेंदरू के पिता ने उसे वापस बुला लिया, अब चेंदरू बस्तर के अपने गांव वापस आ गया, पर वापस आने के कुछ दिनों बाद उसका प्रिय बाघ टेम्बू चल बसा.

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टेम्बू के जाने के बाद चेंदरू उदास रहने लगा और वह धीरे धीरे अपनी पुरानी ज़िन्दगी में लौटा और फिर गुमनाम हो गया. गुमनामी की ज़िंदगी जीते जीते उसने वर्ष 2013 में दुनिया को अलविदा कहा. चेंदरू के चले जाने के बाद रायपुर में निर्मित जंगल सफारी में टेम्बू और चेंदरू की एक मूर्ति स्थापित की गई.

छत्तीसगढ़ पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए टाइगर ब्वाय चेंदरू की मूर्ति का मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अनावरण किया. स्मृति चिन्ह के रूप में पर्यटन मंडल चेंदरू और टेंबू टाइगर का उपयोग कर रहा है.

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एक समय ऐसा आया कि गुमनामी के दुनिया में पूरी तरह से चेंदरू खो गया था जिसे कुछ पत्रकारों ने पुन: 90 के दशक में खोज निकाला. फिल्म में काम करने के बदले उसे केवल दो रूपये की रोजी ही मिलती थी. 18 सितम्बर 2013 में लम्बी बीमारी से जूझते हुए, इस गुमनाम हीरो की मौत हो गयी. चेंदरू के इस रोमांचक जीवन पर अनेक पुस्तकें और लेख लिखे गए किन्तु उसका शेष जीवन अभावों में ही बीता जबकि उसके जीवन पर रचनात्मक कार्य करने वाले समृद्ध हुए.