वृद्धजन राष्ट्र निर्माण की बुनियाद – सुरक्षा – संरक्षण और सम्मान आवश्यक

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वृद्धजन राष्ट्र निर्माण की बुनियाद – सुरक्षा – संरक्षण और सम्मान आवश्यक

( डॉ. घनश्याम बटवाल , मंदसौर )

समय नहीं थमता , रुकती हैं बस सांसें , जीवन चलने का नाम , चलते रहो सुबह और शाम , यह क्रम है अविराम । देश हो या विदेश उसके विकास और निर्माण में अहम भूमिका रही है अनुभव सिद्ध परिपक्व पीढ़ी की । इसे कोई नकार नहीं सकता , यह एक यथार्थ है ।

आज विशेष प्रसंग है जब वृद्धजनों के योगदान , भूमिका और प्रभाव पर चर्चा करने का । यूं तो संयुक्त राष्ट्र संघ ने वरिष्ठ जनों की अहमियत स्वीकार करते हुए एक अक्टूबर दिन अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस के रूप में वैश्विक मान्यता प्रदान की है । 1990 से प्रभावी यह दिन 33 वें अवसर पर स्मरण किया जारहा है ।

आयु वह सत्य है जो प्रतिदिन – प्रतिक्षण बढ़ती जाती है , समाज में जन्मोत्सव मनाया जाने का प्रचलन है पर यह व्यक्ति की आयु का क्षय भी है । जिजीविषा के चलते व्यक्ति हो या समाज निरन्तरता से सक्रिय रहकर देश समाज और परिवार के प्रति जुटा रहता है । अगर आकलन करें तो पायेंगे कि भारत की आज़ादी के साथ जन्मी पीढ़ी वृद्ध हो चली है , जबकि बाद की पीढ़ी युवा होकर देश का परचम विश्व पटल पर फहरा रही है ।

अपने योगदान , भूमिका और सक्रियता से वृद्धजनों ने महती कार्य किया है , यह पीढ़ी राष्ट्र निर्माण की बुनियाद है वहीं यह पीढ़ी युवाओं की प्रेरणास्रोत भी । आज भारत प्रगतिशील और प्रतिभाशाली युवाओं का देश कहा जाता है तो इसके पीछे वृद्धजनों का मार्गदर्शन , जीवटता और बेहतर संकल्पना भी है ।

दृश्य बदलने का है , आनेवाले दशकों में भारत भी वृद्धजनों की बहुलता वाले देश मे शामिल होगा । ऐसे में वर्तमान और भविष्य पर विचार भी और चर्चा भी जरूरी है ।

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संयुक्त राष्ट्र संघ ने तय किया है कि वृद्धजनों ( वरिष्ठ नागरिकों ) की सुरक्षा , संरक्षण और सम्मान में किसी भी स्तर पर कमी नहीं रहे । भारत में 2001 की जनगणना में लगभग 8 प्रतिशत वृद्धजन थे जो प्रति वर्ष बढ़ते जारहे हैं । आनेवाले तीन दशकों में यह संख्या 11 करोड़ से बढ़कर 42 से 45 करोड़ होगी । निश्चित ही इस पीढ़ी ने अतुलनीय योगदान देश समाज और परिवार निर्माण में किया है । पर इस पीढ़ी के अधिकारों , सुविधाओं और उपयुक्त व्यवस्थाओं पर ध्यान होना चाहिए ।

बुजुर्गों के स्वास्थ्य , आर्थिक , सामाजिक , पारिवारिक सुरक्षा संबंधी प्रावधानों को देश और प्रदेश में लागू किया गया है । फिर भी प्रताड़ना , वित्तीय भरण पोषण , स्वास्थ्य , उपेक्षित व्यवहार आदि के मामले सामने आते रहते हैं । सरकारी स्तर पर सामाजिक सुरक्षा , सामुहिक बीमा , स्वास्थ्य देखभाल , आपराधिक मामले , प्रताड़ना आदि पर संज्ञान लेते हुए कई विषयों को राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत में जोड़ दिया गया है । विधिक सहायता भी उपलब्ध होरही है । मानव अधिकार आयोग भी सक्षम भूमिका में है जो मददगार है ।

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इन सबके बावजूद जीवन में चुनौती बनी रहती है , जीवन के पांच दशक के सेवा काल , सेवा कार्य उपरांत शरीर भी थकता है , जब शरीर साथ देने की स्थिति में रहा अविराम कार्य किया पर जब थकता है तब हर तरह की मदद की दरकार होती है उस समय सहयोग और समर्थन जरूरी होता है । विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का लाभ भी लिया जासकता है पर इससे अधिक महत्व रखता है समाज और परिवार का समर्थन । अवस्था के साथ रोग भी जकड़ लेते हैं । रक्तचाप , मधुमेह , हृदय रोग , किडनी रोग , केंसर , अल्जाइमर , डिमेंशिया आदि की जकड़न मुश्किलों में डाल देती है
ऐसे में परिवार , समाज और सरकार की जिम्मेवारी है कि विभिन्न क्षेत्रों की अग्रणी रही वरिष्ठ नागरिकों महिलाओं और पुरुषों की पीढ़ी के अनुभवों को सहेजते हुए उनके ज्ञान का लाभ युवा और समाज उठाये । यूऐनओ का एजेंडा भी यही है ।

अपने उद्देश्य में स्पष्ट कहा गया है कि वृद्धजनों के मानवाधिकार को मजबूत करना , प्रतिबद्धताके साथ हितधारकों को संबल देना , पीढ़ियों के बीच समन्वय और सामंजस्य के साथ जुड़ाव रखना , विभिन्न आयु समूह के बीच अनुभव और ज्ञान का आदान प्रदान करना आदि बिंदु हैं ।
भारत के संदर्भ में देखें तो बहुत कार्य किये जारहे हैं पर उससे अधिक कार्य इस क्षेत्र में किये जाने की जरूरत है ।