Vallabh Bhawan Corridors to Central Vista: शहडोल: अजीत जोगी और IAS राजीव शर्मा 

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Vallabh Bhawan Corridors to Central Vista: शहडोल: अजीत जोगी और IAS राजीव शर्मा 

आप इस बिंदु का शीर्षक देखकर जरूर सोच में पड़ गए होंगे लेकिन आगे पढ़िए तो आपको इस शीर्षक की हकीकत पता लग जाएगी।

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भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी शहडोल के तत्कालीन कमिश्नर राजीव शर्मा पहले ऐसे IAS अधिकारी नहीं रहे जिन्होंने इस्तीफा दिया हो। इससे पहले भी शहडोल में पदस्थ रहे IAS अधिकारी अपने पद से इस्तीफा देते रहे हैं।

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इनमें एक तो बाद में जाकर मुख्यमंत्री तक बने। हम यहां बात कर रहे हैं 1970 बैच के IAS अधिकारी स्वर्गीय अजीत जोगी की, जो 78-79 में शहडोल में कलेक्टर रहे। उन्होंने सुपर टाइम मिलने के बाद IAS से इस्तीफा दिया। और आप देखिए कि बाद में वे छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बने। तो कही राजीव शर्मा ने भी अजीत जोगी से प्रेरित होकर इस प्रतिष्ठित सेवा से इस्तीफा तो नही दिया? और क्या वे इस कहानी को दोहरा पाएंगे? यहां हम एक और आईएएस अधिकारी की बात करना चाहते हैं उनका नाम है अजय सिंह। वे भी किसी समय शहडोल के कलेक्टर रहे हैं और उन्होंने भी पद पर रहकर इस्तीफा दिया था। अजय सिंह ने बाद में IAS को लेकर एक किताब भी लिखी है।

*शिवराज के सवालों से असमंजस का बवंडर!* 

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इन दोनों बेहद असमंजस में दिखाई दे रहे। इसका कारण यह भी है कि भाजपा ने उम्मीदवारों की दो लिस्ट जारी कर दी, जिसमें उनका नाम नहीं है। अब तीसरी और चौथी लिस्ट में भी नाम होगा कि नहीं अभी इस बारे में अलग-अलग कयास लगाए जा रहे हैं। शायद यही कारण है की मुख्यमंत्री हर जगह जाकर जनता से हामी भरवा रहे हैं कि वे चुनाव लड़े या नहीं! जनता की ‘हां’ को वे अपनी जीत भी समझ रहे हैं।

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उन्होंने सीहोर में पूछा मैं चला जाऊंगा तो क्या बहुत याद आऊंगा। बुधनी में पूछा कि मैं चुनाव लड़ूं या नहीं, यहां से लड़ूं या नहीं! इसके बाद बुरहानपुर में पूछा कि मैं देखने में दुबला पतला हूं पर लड़ने में तेज हूं। डिंडोरी में उन्होंने फिर सवाल किया की मुझे मुख्यमंत्री बनना चाहिए कि नहीं! मोदी जी को प्रधानमंत्री बनना चाहिए कि नहीं! … और प्रदेश में भाजपा की सरकार आनी चाहिए कि नहीं!

प्रदेश के सियासी गलियारों में इन सवालों के कई मतलब निकाल जा रहे हैं। लेकिन, खुद शिवराज सिंह से मीडिया ने जब इस बारे में सवाल किया तो उनका जवाब था ‘इसे समझने के लिए गहरी दृष्टि चाहिए!’ लेकिन, वह गहरी दृष्टि क्या हो, यह सिर्फ मुख्यमंत्री ही समझ रहे हैं और कोई नहीं।

इस मुद्दे पर कांग्रेस ने भी मुख्यमंत्री को घेरा और कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर दबाव बनाने के लिए लोगों से ऐसे सवाल पूछना शुरू कर दिए है। इसलिए कि नरेंद्र मोदी ने अपने भाषणों में मुख्यमंत्री के नाम का उल्लेख करना बंद कर दिया है। कांग्रेस ने कहा कि उन्हें मुख्यमंत्री पद की दौड़ से बाहर कर दिया, इसलिए वे जनता से सवाल कर रहे हैं।

*भाजपा में मुख्यमंत्री पद के आखिर कितने दावेदार!*

भाजपा हाईकमान ने उम्मीदवारों की घोषणा करना तो शुरू कर दिया, पर किसी को मुख्यमंत्री फेस नहीं बनाया। यही कारण है कि इस पर अभी भी सस्पेंस बना हुआ है। शिवराज सिंह चौहान के अलावा भी पार्टी के कई चेहरे मुख्यमंत्री पद के दावेदार बन गए। भाजपा ने उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट में तीन केंद्रीय मंत्री समेत सात सांसदों और एक पार्टी महासचिव को उम्मीदवार बनाया है।

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केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल, नरेंद्र सिंह तोमर, फग्गन सिंह कुलस्ते और राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को विधानसभा चुनाव का टिकट दिया गया। ये सभी मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदार माने जाते रहे हैं। वरिष्ठ सांसद और प्रदेश बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष राकेश सिंह भी इस रेस में है।केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और वीरेंद्र कुमार को भी विधानसभा चुनाव का टिकट देने की चर्चा है। कैलाश विजयवर्गीय ने भी कहा कि वे केवल विधायक बनने के लिए चुनाव नहीं लड़ रहे, बल्कि पार्टी उन्हें कुछ बड़ी जिम्मेदारी देगी।

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अब शिवराज सरकार के मंत्री नेता गोपाल भार्गव ने भी दावा पेश कर दिया। उन्होंने मुख्यमंत्री बनने की इच्छा जताई है। गोपाल भार्गव ने मंच से बयान देते हुए कहा कि मेरे गुरु की इच्छा है कि मैं एक बार और चुनाव लड़ूं, तो हो सकता है कि यह ईश्वरीय संदेश हो। क्योंकि, पार्टी ने इस चुनाव में किसी को मुख्यमंत्री पद के लिए प्रोजेक्ट नहीं किया। यह तो केवल मोदी और शाह ही जानते है कि अगर बीजेपी सत्ता में आई तो सीएम कौन होगा? चाणक्य का कोई भरोसा नहीं, हो सकता है इनमें से कोई नहीं हो और कोई नया चौंकाने वाला नाम आ जाय?

*विधानसभा चुनाव से डरे क्यों हैं खटीक!*

केंद्रीय मंत्री और टीकमगढ़ के सांसद वीरेंद्र कुमार खटीक बहुत घबराए हुए हैं। उन्हें लग रहा है कि जैसे तीन केंद्रीय मंत्रियों को चुनाव के मैदान में उतार दिया गया। अगली लिस्ट में उनका नाम आना कही तय तो नही है? उन्हें टीकमगढ़ की किसी मुश्किल सीट से लड़वाया जा सकता है। यही कारण है कि वे बार-बार कह रहे हैं कि उनकी विधानसभा चुनाव लड़ने की कोई इच्छा नहीं है। जबकि, वे जानते हैं कि कोई भी केंद्रीय मंत्री अपनी इच्छा से चुनाव में नहीं उतरा!

क्या इसे एक तरह से उनका इनकार नहीं माना जा सकता! भले ही वे सीधे तौर पर घोषित नहीं कर रहे हो, लेकिन उनका यह कथन यह इशारा नहीं कर रहा है कि वे चुनाव लड़ने से मना कर रहे हैं! ऐसे में यह देखना होगा कि क्या पार्टी हाईकमान का फैसला क्या होता है। क्या पार्टी वीरेंद्र कुमार खटीक को हिदायत देकर उन्हें चुनाव लड़ने पर मजबूर करेगी।

माना जा रहा है कि खटीक को यह डर है कि कहीं वे चुनाव हार न जाएं। लोकसभा चुनाव में तो नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता से चुनाव जीत सकते है, ऐसा माना जा सकता हैं। लेकिन, क्या विधानसभा चुनाव उनके लिए टेढ़ी खीर साबित होगी!

*एक और ‘पोस्टर वार’ चर्चा में आया!* 

राजधानी में ‘पोस्टर वार’ नई बात नहीं है। पिछले पोस्टर की बात लोग भूले नहीं हैं। पर वो वार कांग्रेस और भाजपा के बीच था। अब फिर चुनाव से पहले एक नया पोस्टर वार शुरू हो गया। गोविंदपुरा विधानसभा क्षेत्र में पोस्टर वार का मामला सामने आया है। गोविंदपुरा विधानसभा क्षेत्र में ‘वंशवाद हटाओ’ के पोस्टर लगे दिखाई दिए। पोस्टर में निवेदक के रूप में आरटीआई एक्टिविस्ट अजय पाटीदार का नाम लिखा है।

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गोविंदपुरा विधानसभा क्षेत्र से फ़िलहाल कृष्णा गौर भाजपा विधायक हैं। इस इलाके में लगे पोस्टर में लिखे ‘वंशवाद’ शब्द को लोग ‘गौर परिवार’ से जोड़कर देखा रहे है। वे पूर्व मुख्यमंत्री स्व बाबूलाल गौर की बहू हैं। इसे भाजपा की परंपरागत सीट माना जाता है। अब चर्चा इस बात की है कि आखिर ये पोस्टर किसकी शह पर लगाया गया है।

 *तो क्या बीजेपी IAS राजीव शर्मा को टिकट दे रही है?* 

राजीव ने भले ही पत्ते न खोले हो, लेकिन, उनके साथ काम कर चुके भारतीय प्रशासनिक सेवा में उनसे 2 साल वरिष्ठ साथी राजेश बहुगुणा (IAS 2001) की फेसबुक वॉल को टटोला जाए, तो लगता है कि राजीव शर्मा चुनाव में अपनी किस्मत आजमा सकते हैं। क्योंकि, राजेश बहुगुणा ने अपनी फेसबुक वॉल पर जो कमेंट किया है वह इस बात की तरह इशारा करता है कि VRS का आवेदन स्वीकार होने के बाद वे भाजपा से भिंड का चुनाव लड़ने वाले हैं। बहुगुणा ने लिखा है ‘मुझे लग रहा है कि बीजेपी से भिंड विधानसभा का टिकट आने ही वाला है। सेवानिवृति आवेदन स्वीकृत होने के बाद उसकी शुभकामनाएं दी जा सकती है। अभी तो प्रतीक्षा है…..’

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खास बात यह की राजीव शर्मा ने भी चुनाव की संभावना से इंकार नहीं किया। लेकिन, अभी सच्चाई इस पिटारे में बंद है कि आगे क्या होता है!

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बता दे कि शहडोल के कमिश्नर रहे राजीव शर्मा का स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का आवेदन अभी स्वीकृत नहीं हुआ, पर राजीव शर्मा ने भविष्य की रणनीति के मुताबिक, अपनी तैयारी कर ली। इसी के तहत जब वे अपने गृहनगर भिंड पहुंचे तो उनका अभूतपूर्व स्वागत हुआ। वे 6 अक्टूबर को ग्वालियर से भिंड के लिए निकले, तो डेढ़ घंटे का रास्ता कई घंटों में पूरा हुआ। इसलिए कि राजीव शर्मा ने अपना बाकी समय अपने गृह नगर भिंड में बिताने और समाजसेवा का ऐलान किया। लेकिन, इस बात का खुलासा नहीं किया कि उनके भविष्य की जो योजना क्या है! उन्होंने राजनीति में उतरने के सवाल का भी स्पष्ट जवाब नहीं दिया। लेकिन जिस तरह लोग उनके स्वागत में उमड़े वह अलग ही संदेश दे रहा है?

*दिल्ली में दो नए कन्वेंशन सेंटर* 

दिल्ली में पिछले तीन महीने में अंतरराष्ट्रीय स्तर के दो कन्वेंशन सेंटर खुले हैं। भारत मंडपम के बाद 17 सितंबर में यशोभूमि का उद्घाटन हुआ। यशोभूमि के कार्यक्रम की बुकिंग अगले साल मार्च तक पूरी है। इस सेंटर को सिंगापुर की एक कंपनी को आउटसोर्स किया है। एक बात तो स्पष्ट है कि भारत में एक अंतरराष्ट्रीय स्तर ऐसे सेंटर की जरुरत थी।

 *मंत्रालय में नहीं है सचिव की पकड़* 

केंद्र सरकार में एक ऐसा मंत्रालय है जिसके सचिव के द्वारा किए गए आदेश को नीचे के अधिकारी लागू नही होने देते। हालांकि सचिव को आए छह महीने से अधिक हो गये लेकिन बताया जाता है कि उनकी पकड़ अभी तक मंत्रालय पर नहीं बन पाई है। सूत्रों के अनुसार सचिव के लगभग आधा दर्जन आदेश कूड़े की टोकरी मे फेक दिए गए।

 

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Suresh Tiwari
सुरेश तिवारी

MEDIAWALA न्यूज़ पोर्टल के प्रधान संपादक सुरेश तिवारी मीडिया के क्षेत्र में जाना पहचाना नाम है। वे मध्यप्रदेश् शासन के पूर्व जनसंपर्क संचालक और मध्यप्रदेश माध्यम के पूर्व एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर रहने के साथ ही एक कुशल प्रशासनिक अधिकारी और प्रखर मीडिया पर्सन हैं। जनसंपर्क विभाग के कार्यकाल के दौरान श्री तिवारी ने जहां समकालीन पत्रकारों से प्रगाढ़ आत्मीय रिश्ते बनाकर सकारात्मक पत्रकारिता के क्षेत्र में महती भूमिका निभाई, वहीं नए पत्रकारों को तैयार कर उन्हें तराशने का काम भी किया। mediawala.in वैसे तो प्रदेश, देश और अंतरराष्ट्रीय स्तर की खबरों को तेज गति से प्रस्तुत करती है लेकिन मुख्य फोकस पॉलिटिक्स और ब्यूरोक्रेसी की खबरों पर होता है। मीडियावाला पोर्टल पिछले सालों में सोशल मीडिया के क्षेत्र में न सिर्फ मध्यप्रदेश वरन देश में अपनी विशेष पहचान बनाने में कामयाब रहा है।