राज काज: Assembly Elections: 2018 और 2023 में यह बड़ा फर्क….

राज काज: Assembly Elections: 2018 और 2023 में यह बड़ा फर्क….

– विधानसभा के लिए 2018 में हुए चुनाव और 2023 के इस चुनाव में एक बड़ा फर्क है। तब भाजपा में मुख्यमंत्री का चेहरा तय था और कांग्रेस बिना चेहरे के चुनाव मैदान में थी। 2018 में भाजपा ने नारा दिया था ‘फिर भाजपा, फिर शिवराज।’ अब 2023 में भाजपा सामूहिक नेतृत्व पर चुनाव लड़ रही है। जन आशीर्वाद यात्रा में भी अलग-अलग क्षेत्र के नेताओं की तस्वीर लगाई गई। स्वयं शिवराज के भाषण और बयान भी असमंजस पैदा कर रहे हैं। कभी कहते हैं कि ‘मैं चला जाऊंगा तो बहुत याद आऊंगा’ कभी जनता से पूछते हैं कि ‘मैं चुनाव लड़ूं या ना लड़ूं’। भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व तक मुख्यमंत्री के तौर पर शिवराज का नाम लेने से बचता है। दूसरी तरफ 2018 में कांग्रेस में असमंजस की स्थिति थी। सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री कमलनाथ बनेंगे, ज्योतिरादित्य सिंधिया या कोई अन्य नेता, इसे लेकर असमंजस था। बाद में यही असमंजस सरकार गिरने का कारण बना। 2023 में कांग्रेस के सामने कोई असमंजस नहीं। पार्टी ने घोषित कर दिया है कि सरकार बनने पर मुख्यमंत्री कमलनाथ ही होंगे। कमलनाथ के नाम पर राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और रणदीप सुरजेवाला तक मुहर लगा चुके हैं। दोनों चुनावों का यह फर्क किसे फायदा पहुंचाएगा, किसे नुकसान, यह देखने लायक होगा।

*लीजिए, भार्गव ने भी जता दी सीएम बनने की इच्छा….*

– भाजपा में मुख्यमंत्री पद के दावेदार बढ़त जा रहे हैं। अब भाजपा के कद्दावर नेता, प्रदेश के पीडब्ल्यूडी मंत्री गोपाल भार्गव ने भी अपने गुरू को माध्यम बनाकर मुख्यमंत्री बनने की इच्छा जता दी। एक सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि गुरू की इच्छा है कि मैं एक और चुनाव लड़ूं। यह मेरा अंतिम चुनाव भी हो सकता है।

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इस बार भाजपा मुख्यमंत्री का चेहरा आगे कर चुनाव नहीं लड़ रही है। इसका मतलब है कि चुनाव के बाद कोई भी मुख्यमंत्री बन सकता है। भार्गव ने कहा कि शायद ईश्वर की यही मर्जी हो कि वह गुरू के आदेश से मुझे चुनाव लड़ाना चाहता है। संभव है कि चुनाव बाद मैं मुख्यमंत्री बन जाऊं। इस तरह भाजपा में मुख्यमंत्री पद का एक दावेदार और बढ़ गया। इससे पहले भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय कह चुके हैं कि मैं विधायक बनने के लिए चुनाव नहीं लड़ रहा। चुनाव बाद मुझे और बड़ी जवाबदारी मिलेगी। इसके बाद मैं बड़े काम करूंगा। उधर आदिवासी नेता और केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते का प्रचार ही उन्हें मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट कर किया जा रहा है। उनके समर्थक बैनरों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के स्थान पर कुलस्ते का फोटो लगा रहे हैं। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल, राकेश सिंह, वीडी शर्मा तो हैं ही मुख्यमंत्री पद के दावेदार।

*अंतिम सप्ताह में चौका-छक्का जड़ने की कोशिश….*

– विधानसभा चुनाव की घोषणा से पहले का सप्ताह क्रिकेट के उस अंतिम ओवर की तरह देखने को मिला, जिसमें हर खिलाड़ी चौका-छक्का जड़ने की कोशिश करता है। भाजपा की ओर से पार्टी के स्टार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आए तो कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी और प्रियंका गांधी। दोनों ओर से मतदाताओं को लुभाने की कोशिशें हुईं। मोदी और प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सौगातों की झड़ी लगाई तो प्रियंका, राहुल और कमलनाथ ने कांग्रेस की गारंटियां बताईं। सुप्रीम कोर्ट ने घोषणाओं पर आयोग, केंद्र और राज्य सरकारों से जवाब मांगा है लेकिन कोई इसकी परवाह करता नजर नहीं आया। मुख्यमंत्री चौहान कुछ स्थानों पर भावुक होकर भावनात्मक बातें भी कहते नजर आए। इंदौर से विधानसभा का चुनाव लड़ रहे भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयर्गीय के बयान भी क्रिकेट के अंतिम ओवरों की तरह हैं। पहले उन्होंने कहा कि मैं यहां सिर्फ विधायक बनने के लिए ही नहीं आया, चुनाव बाद मुझे और बड़ी जवाबदारी मिलेगी। अप्रत्यक्ष तौर पर वे खुद को मुख्यमंत्री का दावेदार बता रहे थे। फिर उन्होंने कहा कि किसी अधिकारी में हिम्मत नहीं है कि मैं फोन करूं और वह काम न करे। वे यहां तक कह गए कि वे भोपाल में बैठकर कहीं भी फोन कर दें तो काम हो जाएगा। ये सब नेताओं के चौके-छक्के ही तो हैं।

*‘इमेज इलेक्शन’ से डरे-सहमे भाजपा के दिग्गज….*

– भाजपा के दिग्गज डरे और सहमे से हैं। वजह है पार्टी द्वारा घोषित प्रत्याशियों की दूसरी सूची, जिसके जरिए केंद्रीय मंत्रियों, सांसदों और पार्टी के एक राष्ट्रीय महामंत्री को विधानसभा के मैदान में उतार दिया गया। दूसरा, भाजपा इसे ‘इमेज का इलेक्शन’ भी बना रही है। अर्थात कोई मंत्री, विधायक भले जीतने की क्षमता रखता है लेकिन यदि उसकी इमेज ठीक नहीं है।

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उसका रिकार्ड खराब है तो उसका टिकट कट सकता है। भाजपा में 30 से 50 तक मंत्रियों, विधायकों के टिकट काटे जाने की चर्चा है। खास यह है कि नरेंद्र मोदी-अमित शाह के इस युग में कोई नेता भरोसा नहीं दिला पा रहा कि उसे टिकट मिलेगा ही। आखिर, पार्टी के राष्ट्रीय नेता कैलाश विजयवर्गीय तक ने कह दिया था कि मुझे प्रत्याशी बनाया गया तो मैं आश्चर्य में पड़ गया क्योंकि मैं चुनाव लड़ना नहीं चाहता था। जब विजयवर्गीय के ये हाल हैं तो कौन दूसरा नेता बता सकता है कि किसे टिकट मिलेगा, किसे नहीं। लिहाजा, टिकट कटने से मंत्री, विधायक तो डरे, सहमे हैं ही, पार्टी के अन्य सांसदों का भी यही हाल है। उन्हें डर है कि कहीं उन्हें भी विधानसभा का चुनाव न लड़ा दिया जाए। दरअसल, भाजपा का मानना है कि एंटी इंकम्बेंसी मद में चूर मंत्रियों, विधायकों के कारण है, इसलिए नए और ताकतवर चेहरे लाकर इसे दूर करने की कोशिश हो रही है।

* भाई ने सीट छोड़ी, क्या इसलिए प्रहलाद को टिकट….?*

– प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की भाजपा को विरोधी भी जानते हैं, केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल और अच्छी तरह जानते होंगे। इसलिए उनकी यह बात गले नहीं उतरती कि उनके भाई जालम सिंह ने उनके लिए भरत की तरह अपनी सीट छोड़ दी। मोदी-शाह की जोड़ी से तो यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि भाई अपनी सीट छोड़े और वे उसके भाई को ही वहां से प्रत्याशी बना दें।

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हालांकि खबर थी कि प्रहलाद के लिए छिंदवाड़ा जिले की कोई कठिन विधानसभा सीट चुनी जा रही थी लेकिन बाद में उनके ही भाई जालम की सीट नरसिंहपुर उन्हें दे दी गई। वजह, पार्टी नेतृत्व इस बार जालम सिंह को टिकट नहीं देना चाहता था, क्योंकि एक मामले को लेकर नाराजगी थी। ठीक उसी तरह जैसे पार्टी नेतृत्व कैलाश विजयवर्गीय के बेटे आकाश को टिकट नहीं देना चाहता, इसलिए खुद कैलाश को मैदान में उतार दिया। फर्क यह है कि कैलाश को उनके बेटे की सीट नहीं दी गई, इधर प्रहलाद अपने भाई की सीट पाने में सफल रहे। हालांकि प्रहलाद का पूरा जीवन संघर्षों से भरा रहा है। वे पहला लोकसभा चुनाव बागी लड़कर जीते थे। इसके बाद उन्हें कभी बालाघाट, छिंदवाड़ा और कभी दमोह भेजा गया। कभी हार मिली, कभी जीत। पहली बार पटेल को आसान सीट मिली है।

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