शिवराज की चाह स्वच्छता में हों अव्वल, माफिया पर हो अंकुश, करें नवाचार और चाहिए बिना लिए दिए वाला सुशासन …

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Shivraj
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प्रदेश सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान सोमवार को जिलों पदस्थ टॉप ब्यूरोक्रेट्स से वर्चुअली जुड़े। चौथी पारी के सीएम कहीं इतने खफा न हो जाएं कि किसी जिले के कलेक्टर की छुट्टी हो जाए या किसी जिले के एसपी का जिला छिनकर हेडक्वार्टर आमद हो जाए, जिलों में पदस्थ आईएएस-आईपीएस इस वीसीफोबिया से ग्रस्त हो अब भी तनाव में आ जाते हैं। मानो भोले-भाले शिव जिस तरह क्रोधित होने पर तांडव करने लगें और तीसरा नेेत्र खुलकर तहस-नहस पर उतारू हो जाए। उसी तरह का भय शायद अब भी शिवराज की वीसी से कलेक्टर-एसपी के मन में रहता ही है।

हालांकि ऐसा चौथी पारी की शुरुआत में ही शिवराज ने किया था। दो जिलों के कलेक्टर और दो जिलों के एसपी पर ही गाज गिरी थी, लेकिन खौफ ने शिव की छवि से उदारता का टैग छीन लिया है। एक कठोर प्रशासक बनकर ही वह प्रशासकों से हिसाब-किताब लेते हैं। और वह भय अब भी “बंद मुट्ठी लाख की” की तरह हर वीसी में “दिन दूना रात चौगुना” की तर्ज पर फल फूल रहा है।

सोमवार की वीसी के बाद शिवराज ने फिर कड़े तेवर दिखाए और इंदौर के स्वच्छता में नंबर एक को नाकाफी बताते हुए यह साफ कर दिया कि प्रदेश का स्वच्छता में तीसरे पायदान पर रहना उनके मन को खटक रहा है और नंबर वन से कम उन्हें कुछ भी मंजूर नहीं है। इसके लिए जनवरी में वह खुद वर्चुअली जुड़कर नगर निगम आयुक्तों, नगर पालिका सीएमओ सहित स्वच्छता के लिए जिम्मेदारों से पूछताछ करेंगे। माफिया पर अंकुश लगाने की हिदायत दी।

कलेक्टर नवाचार करें यह मंशा जताई तो सुशासन के लिए अभी भी बहुत कुछ करने की जरूरत बताई। कई कलेक्टर-एसपी की पीठ थपथपाई तो कई को लताड़ भी लगाई और जोर का झटका यह कहकर धीरे से दे भी दिया कि एक महीने बाद फिर मिलेंगे। फिर एजेंडे पर पूरा फीडबैक लेंगे और जो सीधे तौर पर नहीं कहा, वह यह कि अगर गड़बड़ जारी रही तो गड़बड़झाला भी हो सकता है, यह मत भूलना।

अब मुख्यमंत्री शिवराज की उम्मीदों पर जिलों के मुखिया कितना खरा उतर पाते हैं और सात घंटे की मैराथन कितनी असर दिखाती है…इसकी झलक एक महीने बाद दिखेगी। फिलहाल तो क्राइसिस मैनेजमेंट कमेटी की बैठक में सीएम जल्दी ही कलेक्‍टरों से एक दिन बाद ही रूबरू होंगे, तब पता चलेगा कि कितने जिलों के अस्पतालों में ऑक्सीजन प्लांट दौड़ रहे हैं या फिर बैशाखी के सहारे हैं और कोरोना के नए वेरिएंट को लेकर दवाईयों,उपकरणों का क्या माजरा है…निश्चित तौर पर वीडियो कांफ्रेंसिंग से ज्यादा अहम इस बैठक की फिलहाल खास जरूरत है।

स्वच्छता प्रदेश की प्राथमिकता है। सीएम ने साफ किया है कि स्वच्छता अभियान की तैयारी अभी से करना है आज केवल कलेक्टर से लेकिन, एक दिन विभाग के साथ सारे सीएमओ, नगर निगम कमिश्नर, इन सभी को जोड़कर जनवरी से स्वच्छता सर्वे प्रारंभ होना है। मध्यप्रदेश देश में अभी तीसरे नंबर पर है, इंदौर ने गजब का रिकॉर्ड बनाया है लेकिन मैं इससे संतुष्ट नहीं हूं।

हम नंबर वन पर रहने वाले लोग हैं, इसलिए अभी से स्वच्छता सर्वे के जो आवश्यक कदम है वह सारे के सारे कदम हमको उठाना चाहिए। ताकि जनवरी से जब सर्वे प्रारंभ हो, मध्यप्रदेश कहीं भी पीछे ना रह जाए। जनता को जोड़े बिना यह अभियान नहीं चल सकता इसलिए व्यापक पैमाने पर इसे जन अभियान बनाएं।

माफिया पर मामा बोले कि हमारा टारगेट माफिया हैं, दबंग हैं जिन्होंने जमीन दबा रखीं हैं, उनसे जमीनें मुक्त करानी हैं। उज्जैन, भोपाल, इंदौर, सागर जिलों ने माफ़ियायों से जमीन मुक्त कराने में अच्छा काम किया है। हमें माफ़ियायों से जमीन मुक्त कराकर गरीबों को देना है। यह काम प्रभावी ढंग से होना चाहिए।

मैं मुक्त की गई जमीनों पर गरीबों के घरों का भूमिपूजन करने आऊंगा। तो चिन्हित मिलावटखोरों पर कार्यवाई न करने पर सीएम बेहद नाराज हुए। प्रॉपर कोर्डिनेशन न होने पर सीएम इंदौर, मुरैना, देवास जिलों पर नाराज हुए। कार्यवाई पुख्ता चाहिए, खानापूर्ति नहीं होना चाहिए। जब मेरा साफ निर्देश है तो कार्यवाई कड़ी ही होना चाहिए।

कलेक्टरों को आइना दिखाया गया कि कुछ अलग करो, नवाचार करो जो प्रेरणा दें, तभी बात बनेगी। कलक्टर एक एक योजना की मॉनिटरिंग, देखभाल करें। हम ना केवल प्रशासन चलाने वाले हैं बल्कि, प्रेरणा बनकर भी उभर सकते हैं। कई लोगों ने बहुत बेहतर काम किया है, इसलिए मुझे लगता है कि हमें उस दिशा में भी लगातार काम करते रहना चाहिए।

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जो सीवेज का पानी जाता था, उस पर भी रोक लगी है एक नहीं अनेकों इनोवेशन, विकास और जनकल्याण के कामों में आप कर सकते हैं और आपको करना ही है। क्योंकि आप हो ही इसीलिए कि आप कुछ बेहतर करके दिखाओ वह करने की जरूरत है।

तो सुशासन का मतलब यह भी बताया गया कि बिना लिए दिए सबके काम होना चाहिए। सीएम बोले कि सुशासन का अर्थ समाज के अंतिम छोर के व्यक्ति तक राज्य शासन की सेवाएं सुगमता से पहुंचना है। हितग्राही मूलक योजनाओं में जहां एक ओर फ्रेमिंग अर्थात योजना के निर्देश जटिल नहीं होने चाहिए तथा समय-समय पर अनुभवों के आधार पर इनमें सुधार होने चाहिए।

दूसरी ओर पात्रता अनुसार हितग्राही को लाभ की सैंक्शन अर्थात स्वीकृति में बिना लिए दिए काम होना चाहिए। तो लाभ स्वीकृति के बाद हितलाभ वितरण की प्रकिया भी आधार एनेब्लड पेमेंट सिस्टम से आसान एवं पारदर्शी होनी चाहिए। तीनों स्तर पर टेक्नोलॉजी का उपयोग कर प्रक्रियाओं का ऑटोमेशन किया जाए।

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और सबसे महत्वपूर्ण निर्देश यह दिया गया कि आज जो निर्देश दिए हैं, चाहे वह काम व्यवस्था के हों या विकास के हों, उन सब को ढंग से जमीन पर उतारें। और जनवरी से पहले जब भी तय होता है हम लोग बैठेंगे, दिए गए निर्देशों का मैं पूरा प्रतिवेदन देखूंगा और आगे फिर हम विकास की चर्चा करेंगे। इसमें यह भी छिपा है कि कौन-कौन विकास की मुख्य धारा से जुड़ा रहेगा, यह प्रतिवेदन देखने के बाद यदि गड़बड़ मिली, तब ही पता चलेगा कि किसकी खैर है और किसकी नहीं।