Why Oppose Usha Thakur : विरोध की वजह से उषा ठाकुर सीट क्यों बदलती रही!

इस बार भी महू में इतना विरोध कि पार्टी ने टिकट रोका, क्षेत्र-3 भी मुश्किल में!

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Why Oppose Usha Thakur : विरोध की वजह से उषा ठाकुर सीट क्यों बदलती रही!

Indore : जिले की 9 विधानसभा सीटों में 6 शहरी इलाके में हैं और तीन ग्रामीण में। भाजपा ने विधानसभा उम्मीदवारों की अपनी चार लिस्ट में जिले की 4 शहरी और 2 ग्रामीण सीटों पर उम्मीदवार घोषित कर दिए। लेकिन, शहर की विधानसभा-3 और विधानसभा-5 के उम्मीदवार घोषित होना अभी बाकी है। जबकि, ग्रामीण क्षेत्र की महू विधानसभा की उम्मीदवारी पर भी सवालिया निशान लगा है। यहां से अभी तक प्रदेश सरकार में मंत्री रही उषा ठाकुर भाजपा विधायक हैं, लेकिन इस बार उनके नाम को लेकर भारी विरोध है।

महू में उषा ठाकुर का विरोध इतना ज्यादा है कि उनके खिलाफ पोस्टर तक लग गए। इस बार लोगों का कहना है कि स्थानीय उम्मीदवार को मौका दिया जाए। अब बाहरी उम्मीदवार स्वीकार नहीं है। यही कारण है कि पार्टी ने मंत्री होते हुए उनके नाम की घोषणा को रोक दिया। अभी तय नहीं कि उन्हें टिकट मिलेगा भी या नहीं। यही कारण है कि उषा ठाकुर की पूरी कोशिश विधानसभा क्षेत्र-3 से उम्मीदवार बनने की है।

पिछली बार यहां से आकाश विजयवर्गीय भाजपा के उम्मीदवार थे। इस बार उनके पिता कैलाश विजयवर्गीय को टिकट दिए जाने के कारण उनकी उम्मीदवारी भी अटक गई। ऐसे में उषा ठाकुर फिर अपनी पुरानी विधानसभा सीट में लौटना चाहती हैं। लेकिन, ऐसा लगता नहीं कि उनकी इच्छा पूरी हो सकेगी। क्योंकि पिछली बार कार्यकर्ताओं के घोर विरोध की वजह से ही उन्हें इस विधानसभा से हटाया गया था। यदि इस बार पार्टी में किसी दबाव में आकर क्षेत्र क्रमांक-3 से उषा ठाकुर को टिकट दिया, तो संभव है कि पांसा पलट जाए।

सोचने वाली बात है कि ऐसे क्या कारण हैं कि उषा ठाकुर को हर चुनाव में अपनी विधानसभा सीट बदलना पड़ती है! इसके पीछे उनके खिलाफ उभरा विरोध ही सबसे बड़ा कारण रहा। इस बार भी स्थिति वही है। उनकी बयानबाजी भी उनके लिए परेशानी बनती है। कोरोना काल में उन्होंने हवन करने और गोबर लगाने से महामारी पर काबू करने और खुद मास्क न लगाने को लेकर अनर्गल माहौल बनाया था। इसके अलावा उनकी हिंदूवादी बयानबाजी भी कई बार भारी पड़ जाती है। इस कारण उन्हें जिले से बाहर भेजे जाने की भी बात की जा रही है।

धार में भी चुनौती आसान नहीं
यह भी हवा है, कि उन्हें धार से चुनाव लड़ाया जा सकता है। लेकिन, धार में उनकी ऐसी पकड़ नहीं है और न ऐसा माहौल है कि वे चुनाव जीत सकें। अभी वहां से भाजपा के वयोवृद्ध नेता विक्रम वर्मा की पत्नी लगातार दो बार चुनाव जीती हैं। उनका पलड़ा भी भारी है। इसके अलावा भाजपा के पूर्व जिला अध्यक्ष राजीव यादव भी उम्मीदवारी के लिए ख़म ठोंककर खड़े हैं। इसके अलावा भी कुछ लोगों ने चुनाव के लिए घुंघरू बांध लिए। जहां तक राजनीति की बात है, तो धार की अपनी राजनीति की अलग तासीर है, जिसमें उषा ठाकुर कहीं फिट नहीं बैठी। अगर यह कहा जाए कि धार कभी हिंदू महासभा की सीट थी, इसलिए उषा ठाकुर अपने हिंदूवादी चरित्र के कारण वहां से चुनाव जीत सकती हैं तो यह गलतफहमी होगी। क्योंकि, अब वह स्थिति नहीं है कि सिर्फ हिंदूवादी क्षेत्र को लेकर वहां से कोई चुनाव जीते। वहां से तीन बार कांग्रेस भी चुनाव जीत चुकी है और कांग्रेस भी मुकाबले में कमजोर नहीं देखी जा रही।

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हर बार उभरता है विरोध
विधायक उषा ठाकुर 2003 में क्षेत्र-1 से कांग्रेस के रामलाल यादव को 27000 वोटों से हराकर चुनाव जीता था। लेकिन, 2008 में उन्हें टिकट नहीं देकर सुदर्शन गुप्ता को मौका दिया गया। तब वे निर्दलीय चुनाव तक लड़ने के मूड में थीं, उस समय कैलाश विजयवर्गीय ने उन्हें मनाया था। 2013 में उन्हें क्षेत्र क्रमांक-3 से टिकट दिया गया। लेकिन, बाद में हुए विरोध के कारण उन्हें वहां से हटकर महू भेज दिया गया था। 2018 में क्षेत्र-3 से आकाश विजयवर्गीय को टिकट दिया गया। लेकिन, उषा ठाकुर अब वह फिर अपनी पुरानी सीट पर लौटना चाहती हैं। जबकि, विरोधियों ने भी तलवार भांज रखी है, कि वह उषा ठाकुर को क्षेत्र-3 से चुनाव नहीं लड़ने देंगे।

जातिगत कारण भी बड़ा अड़ंगा
उषा ठाकुर की मुश्किल का एक कारण यह भी है, कि इंदौर विधानसभा क्षेत्र क्रमांक-4 से मालिनी गौड़ का नाम पहले घोषित हो गया। वे भी महिला और ठाकुर है। यही स्थिति उषा ठाकुर की भी है। ऐसे में पार्टी के सामने दिक्कत है, कि दो ठाकुर महिलाओं को एक ही शहर से टिकट कैसे दें। मालिनी गौड़ की उम्मीदवारी पहले घोषित होने से उषा ठाकुर की स्थिति अपेक्षाकृत कमजोर है। क्षेत्र क्रमांक-3 वैश्य बहुल सीट है। यहां ब्राह्मणों या मराठी वोटरों की संख्या उतनी नहीं है कि वह चुनाव के नतीजे बदल दें। इसलिए लगता है कि पार्टी किसी वैश्य को टिकट देकर ही अपनी सीट बरकरार रखना चाहेगी।