अग्रसेन जयंती विशेष:आर्थिक, सामाजिक उन्नति के महाराजा अग्रसेन के मंत्र
● अनिल गुप्ता ‘तरावड़ी’ की विशेष रिपोर्ट
समाज की संरचना आम और खास लोगों के योगदान से होती है। प्रजा व राजा का रिश्ता सदियों पुराना है। कुछ राजा भोग-विलास व आत्मकेंद्रित जीवन जीते हैं। कुछ राजा ऐसे होते हैं जो समाज के कल्याण की दूरगामी व व्यावहारिक योजनाओं को मूर्त रूप देते हैं। यदि सदियों बाद भी उनकी सामाजिक व आर्थिक नीतियां व्यावहारिक व उपयोगी हों तो इससे उनकी महानता का बोध होता है। ऐसे व्यक्तित्व सद्कर्मों द्वारा महापुरुषों की उपाधि से सुशोभित होते हैं। वे अपने सद्विचारों, श्रेष्ठ कर्मों व आदर्शों की महानता से समाज को नई दिशा प्रदान करते हैं। जिनके योगदान से आने वाली पीढ़ियों का जीवन सुखमय होता है। ऐसे ही लोक कल्याणकारी महापुरुषों की श्रेणी में एक अग्रणी नाम है महाराजा अग्रसेन का।
अहिंसा के पुजारी, शांतिदूत के रूप में वे प्रताप नगर के राजा वल्लभ के घर में लगभग 5100 वर्ष में अवतरित हुए। महालक्ष्मी का आशीर्वाद पाकर अग्रसेन ने पूरे भारत की यात्रा की और अग्रोहा में आकर अपना राज्य स्थापित करने का निर्णय किया। उन्होंने अग्रोहा को अपनी राजधानी बनाया। अग्रोहा के सुनियोजित विकास व उतरोत्तर बढ़ती समृद्धि के कारण लोगों का आकर्षण अग्रोहा की तरफ बढ़ा। व्यापार, कृषि व उद्योग की वृद्धि से अग्रोहा व महाराजा अग्रसेन की कीर्ति चारों तरफ फैलने लगी। दूर-दूर से लोग अग्रोहा में बसने के लालयित हुए। महाराजा अग्रसेन भले ही एक राजा थे, लेकिन अपनी प्रजा का कल्याण उनकी प्राथमिकता थी। एक समतामूलक समाज बनाना उनकी प्राथमिकता थी। उन्होंने समानता, भाईचारे एवं आपसी सहयोग के सिद्धांतों को स्थापित करके ‘एक मुद्रा एक ईंट’ जैसे महान समाजवादी सिद्धांत का श्रीगणेश किया, जिसके समरूप विश्व में अन्यत्र कहीं भी ऐसा उदाहरण देखने को नहीं मिलता।
उस समय अग्रोहा नगर की लगभग एक लाख घरों की आबादी थी। नगर पूर्ण वैभवशाली था। यहां सभी लोग अत्यंत समृद्धशाली व समाज हितैषी थे। जब भी कोई नया बंधु यहां बसने के लिए आता था तो यहां का प्रत्येक परिवार उसे एक मुद्रा व एक ईंट सम्मानपूर्वक भेंट करता था। एक लाख मुद्राओं से वह अपना व्यापार चला लेता था व एक लाख ईंटो से अपना मकान बना लेता था। इस प्रकार सहयोग व समानता की भावना पर आधारित होने के कारण किसी प्रकार की हीनता या छोटे बड़े की भावना पैदा ही नहीं होती थी। सभी समान रूप से दाता भी थे एवं ग्रहणकर्ता भी थे। समाज में समानता लाने तथा वैभव को बांटने का उक्त प्रयास इतिहास में अनुपम है।
महाराजा अग्रसेन ने जो सामाजिक कल्याण की क्रांति का बीज बोया था वो आज वट वृक्ष का रूप धारण कर चुका है। इसके पीछे महाराजा अग्रसेन जी द्वारा बताए गए सत्य, अहिंसा, समानता व अपनत्व के भाव निहित हैं। आज अग्रवाल समाज का प्रभुत्व उद्योग एवं व्यापार के साथ-साथ प्रशासन, न्याय, राजनीति, साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में भी दिखाई देता है। आज अग्रवाल समाज को पूरे विश्व में एक श्रेष्ठ समुदाय के रूप में गिना जाता है। उन्होंने जीवन में कर्म को प्रधानता दी। उनका आशय था कि परिश्रम व उद्योग द्वारा आर्थिक व सम्पन्न व्यक्ति ही स्वयं के परिवार, समाज, देश एवं मानवता का भला कर सकता है। उनका विश्वास था कि उत्पादन द्वारा ही हम रोजगार के साधन पैदा कर सकते हैं व रोजगार ही देश की समृद्धि का कारण होता है। उनका आह्वान था कि हमें किसी की दया का पात्र नहीं बनना चाहिए।
अवलोकन करें तो समाज, देश व मानवता के प्रति अग्र बंधुओं का योगदान अत्यंत सकारात्मक एवं रचनात्मक रहा है। महाराजा अग्रसेन के आदर्शों का निर्वहन करते हुए अग्र बंधुओं ने देश में हजारों स्कूल, कालेज, धर्मशालाएं, अस्पताल, मन्दिर, गोशालाएं, अनाथालय, तालाब अथवा कुंओं का न केवल निर्माण करवाया, अपितु उनका कुशलतापूर्वक संचालन भी कर रहे हैं। देश की लगभग 50 प्रतिशत से अधिक योजनाओं में अग्र बंधुओं का सक्रिय योगदान है। हमारे देश के प्राइवेट सेक्टर के लगभग 33 प्रतिशत उत्पादन व सर्विस का श्रेय अग्र बन्धुओं को जाता है। अग्र बंधु ही सबसे अधिक टैक्स का योगदान राष्ट्रीय खजाने में देते हैं। देश का स्वाधीनता आन्दोलन भी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी के नेतृत्व में ही लड़ा गया था। गांधी जी के साथ-साथ इस आन्दोलन में लाला लाजपतराय, सेठ हरदयाल, सेठ जमुनादास बजाज, सेठ घनश्याम दास बिड़ला, सेठ चन्द्रभानु गुप्त व सेठ भगवानदास आदि हजारों अग्रबन्धुओं ने अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया था।
आज अग्रवाल समाज धन सम्पन्न व्यक्ति स्वंय को श्रेष्ठ की श्रेणी में गिनता है व आर्थिक सम्पन्नता ने हममें अहंकार पैदा कर दिया है। सफलता के शिखर पर चढ़े अग्रबन्धु धरातल पर खड़े सजातीय बन्धुओं को छोटा समझने लगे हैं। परमात्मा ने यदि हमें समर्थ बनाया है तो हमें अपने उन भाइयों को भी ऊपर उठाने में सहयोग देना चाहिए जो कि आर्थिक रूप से अभी भी पिछड़े हुए हैं व महाराजा अग्रसेन द्वारा बनाए गए समानता के सिद्वांत को कार्यरूप देना चाहिए। आज अग्रवाल समाज का लगभग 40 प्रतिशत वर्ग आर्थिक दृष्टि से कमजोर है। उनके पास न तो रहने के लिए मकान है व न ही रोजगार के समुचित साधन उपलब्ध हैं। इनमें से लगभग 20% लोग तो ऐसे हैं जिनकी हालत तो अत्यंत दयनीय है। ये लोग छोटी-मोटी नौकरी करके अथवा रेहड़ी लगाकर ही जीवनयापन करने पर मजबूर हैं। समाज का निर्धन वर्ग अपने सम्पन्न भाइयों से उम्मीद की जाती है कि वह अपने कमजोर अग्रबन्धुओं को शिक्षा, रोजगार व मूल सुविधाओं को प्राप्त करने में सहायता करे।
हमारे देश में शिक्षा संस्थानों, व्यापारों व औद्योगिक इकाइयों का बड़ा हिस्सा अग्र बन्धुओं का ही है। सम्पन्न वैश्यों का दायित्व बनता है कि वो अपने आर्थिक दृष्टि से पिछड़े भाइयों के लिए निःशुल्क शिक्षा का प्रबन्ध करें व अपने प्रतिष्ठानों में उन्हें उनकी योग्यता के आधार पर रोजगार भी उपलब्ध करवाएं, ताकि वे किसी की दया के पात्र न बनकर स्वंय सक्षम बन सकें। महाराजा अग्रसेन के वंशजों का यह नैतिक दायित्व है कि वे आज विकट परिस्थितियों का सामना कर रहे भारत वर्ष के पुनरूत्थान व नवनिर्माण में अपना बहुमूल्य योगदान दें। अग्रपुरूष अग्रसेन जी के समानता, सहयोग एवं सामाजिक न्याय के सिद्वांतों का दृड़ता से पालन करें। महाराजा अग्रसेन के सिद्धांतो का अनुसरण उनके वंशजों के लिए कीर्ति-श्लाखा तथा राष्ट्र निर्माण का ज्योति स्तम्भ सिद्ध हो सकता है, इसमें लेशमात्र भी संदेह नहीं है।