सभी दलों से सीधा सवाल कि घोषणाओं को पूरा करने कहां से आएगा धन…?

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सभी दलों से सीधा सवाल कि घोषणाओं को पूरा करने कहां से आएगा धन…?

कांग्रेस पार्टी ने विधानसभा चुनाव 2023 के लिए अपना वचन पत्र मंगलवार को जारी कर दिया है। कांग्रेस पार्टी द्वारा विधानसभा चुनाव-2023 के लिए जारी वचन पत्र में हर वर्ग को फील गुड कराने का अहसास भी कराया गया है। वचनपत्र में आमजन से जुड़े हुए 59 बिंदु है। वचन पत्र में 1290 वचन हैं। किसानों, महिलाओं, कर्मचारियों और युवाओं के लिए अलग-अलग वचन पत्र बनाए गए हैं। यहां तक तो सब ठीक है। पर सबसे बड़ा और सीधा सवाल यह है कि कांग्रेस हमेशा भाजपा पर यह आरोप लगाती रही है कि प्रदेश का खजाना खाली है। पर अब इन वचनों को पूरा करने के लिए कांग्रेस कहां से पैसा जुटाएगी? जैसा कि निर्वाचन आयोग से यह मांग की जाती रही है कि कोई राजनैतिक दल मतदाताओं को लुभाने के लिए जो घोषणाएं करता है, उससे यह भी पूछा जाना चाहिए कि जनता से किए जा रहे वादों को पूरा करने के लिए आर्थिक संसाधन कहां से जुटाने वाले हैं। इस सवाल का जवाब खाली कांग्रेस या भाजपा से नहीं बल्कि हर राजनैतिक दल से अनिवार्यतः लिया जाना चाहिए। ताकि मतदाता चुनाव के बाद खुद को ठगा सा महसूस करने के लिए मजबूर न हो सके। यदि प्रदेश चार लाख करोड़ के कर्ज में है, तो क्या चुनाव के बाद खजाना अपने आप भर जाएगा? उत्तर साफ है कि ऐसा कतई संभव नहीं है। तब फिर घोषणाओं को पूरा करने के लिए प्रदेश पर पड़ने वाले आर्थिक भार का बंदोबस्त करने के लिए क्या चमत्कार होने का कोई नया रास्ता खुलने वाला है? इसकी जानकारी इक्कीसवीं सदी के 23वें साल के आखिर में मतदान करने वाले सजग मतदाता को रखने का अधिकार तो बनता है और इसकी चिंता निर्वाचन आयोग को करना ही चाहिए। ताकि मतदाता वोट देकर संतुष्ट हो सके। मुझे लगता है कि मतदाता के रूप में मध्यप्रदेश का हर नागरिक इस सवाल से इत्तेफाक रखता है? और सभी राजनैतिक दलों से इसका जवाब पाने का हक भी रखता है।
किसानों के लिए यह खुशी की बात हो सकती है कि गेहूं का मूल्य 2600 रूपये, धान का मूल्य 2500 रुपए कर दिया जायेगा और इसे बढ़ाकर 3000 रूपये कर दिया जाएगा। महिलाओं को अच्छा लगेगा कि फ्री बस यात्रा की सुविधा उन्हें मिलेगी। युवा खिलाड़ियों के लिए बेहद खुशी का अवसर है कि मध्यप्रदेश को आईपीएल टीम मिलेगी। यह और भी ज्यादा बड़ी खुशी युवाओं के लिए है कि मप्र में 2 लाख पदों पर भर्ती की जायेगी। बेटियों की शादी के लिए 1 लाख 10 हजार रुपए की मदद बेहद सराहनीय कदम है। पर फिर बात वहीं पर आकर ठहर जाती है कि इतना सारा धन कहां से आएगा? या फिर धन का बंदोबस्त कर कदम आगे बढ़ाने का फार्मूला इजाद जीत-हार के बाद किया जाएगा। या फिर उसी तरह कदम आगे बढ़ाए जाएंगे, जिस तरह किसानों की कर्जमाफी का तानाबाना बुना गया था। और पहले साल में कितने किसानों का कर्जा माफ होगा, यह सीमा तय की गई थी। ऐसा भी है, तो इसका खुलासा भी मतदान की तारीख से पहले और घोषणाओं के समय कर मतदाताओं को भरोसे में लिया जाना चाहिए।
बात वचन पत्र की हो या फिर जल्दी घोषित होने वाले भाजपा के संकल्प पत्र की। मतदाताओं के सामने यह तस्वीर साफ होना निहायत जरूरी है कि लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार की विश्वसनीयता बनी रहे। जिस तरह हाल ही में एक राष्ट्रीय समाचार चैनल के मंच पर अलग-अलग विचारधाराओं से जुड़े तीन संत एक बात पर एकमत थे कि गौ-मांस का निर्यात पूरी तरह से प्रतिबंधित होना चाहिए। यानि बात जब संतत्व की छवि और विश्वसनीयता की हो, तो सच‌ से भटकाव संभव नहीं है। ठीक ऐसा ही सवाल यह है कि यदि मध्यप्रदेश शराबबंदी और नशामुक्ति की तरफ बढ़ता है तो वैकल्पिक राजस्व के स्रोत क्या होंगे, यह तस्वीर साफ करनी ही पड़ेगी। जैसा कि पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने कहा था कि यदि वह शराबबंदी की मांग कर रही हैं तो उनके पास आर्थिक भरपाई के स्रोतों का विकल्प भी है।
यह बात तय है कि कांग्रेस के वचन पत्र को भाजपा झूठ का पुलिंदा बता रही है। तो कल जब भाजपा का संकल्प पत्र आएगा, उसे कांग्रेस कटघरे में खड़ा करेगी। पर फिर मतदाताओं की सुध लेने वाला कहीं नजर नहीं आएगा? हालांकि आज नहीं तो कल भारत निर्वाचन आयोग इस दिशा में कदम आगे बढ़ाएगा, पर देश के जिम्मेदार नागरिक होने के नाते हम सभी को इस बात पर आज भी गंभीरता से चिंतन मनन करना ही होगा कि राजनैतिक दलों की घोषणाओं की पूर्ति का आर्थिक स्रोत आखिर क्या है? और वह आर्थिक स्रोत घोषणाओं की कसौटी पर खरा उतरने में सक्षम भी है या नहीं…।