राजनीति और ‘पॉवर ऑफ अटॉर्नी’…
मुख्तारनामा या अधिकार पत्र (पॉवर ऑफ अटॉर्नी) एक लिखित दस्तावेज होता है जिसमें कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को यह वैधानिक अधिकार देता है कि वह उसके किसी निजी कार्य, व्यापार या किसी कानूनी कार्य के लिये उसका प्रतिनिधित्व करे। जिसको यह अधिकार दिया जाता है उसे मुख्तार या अटार्नी कहते हैं। ‘पॉवर ऑफ अटॉर्नी’ कानूनी तौर पर अपने अधिकार का हस्तांतरण है। पर मध्यप्रदेश की राजनीति में इन दिनों ‘पॉवर ऑफ अटॉर्नी’ शब्द प्रचलन में आ गया है। राजनीति में यह एक मौखिक अधिकार पत्र है। और इन राजनीतिक ‘पॉवर ऑफ अटॉर्नी’ के विषय भी बड़े दिलचस्प हैं। इनमें आपसी विश्वास और सह्दयता कूट-कूट कर भरी नजर आती है या फिर यूं कहें कि ऐसा अहसास कराया जाता है। भले ही वास्तविक स्थिति कुछ और ही हो। हाल ही में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ की दिग्विजय सिंह को सालों पहले दी गई ‘पॉवर ऑफ अटॉर्नी’ के खुलासे ने तो दिग्विजय सिंह को भी अचंभित कर दिया होगा। तो अब सहजता में ही ‘पॉवर ऑफ अटॉर्नी’ शब्द का प्रयोग पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए किया है। राजनीति में ‘पॉवर ऑफ अटॉर्नी’ की कोई लिखा-पढ़ी तो होती नहीं है, सो इस शब्द का प्रयोग अपनी सुगमता से हो रहा है। हो सकता है कि भविष्य में इस संबंध में कोई और दिलचस्प खुलासे हों।
पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने 22 अक्टूबर 2023 को ट्वीट कर अपने उद्गार व्यक्त किए हैं कि विधानसभा चुनावों के लिए मध्यप्रदेश की 2 सीटें छोड़कर सभी उम्मीदवार घोषित हो गये हैं। सभी को मेरी बधाई एवं शुभकामनाएँ। लेकिन मेरी यह बात सच निकली कि महिलाओं को और खास कर पिछड़ी जाति की महिलाओं को बिना आरक्षण के सत्ता में उचित भागीदारी संभव नहीं है। और आगे लिखा है कि मैंने शिवराज जी को यह ‘पावर ऑफ अटॉर्नी’ दे दी है कि वह मुझे जब जहां और जिस सीट पर कहेंगे मैं वहां बीजेपी उम्मीदवार के समर्थन में चुनाव प्रचार करने आऊंगी।
तो हाल ही मैं टिकट न मिलने से नाराज कांग्रेस कार्यकर्ताओं को कमलनाथ ने कहा था कि जाओ दिग्विजय और जयवर्धन के कपड़े फाड़ो। बाद में वचन पत्र जारी करने के मंच पर कमलनाथ ने सफाई दी थी कि दिग्विजय सिंह और मेरे सम्बन्ध राजनीतिक नहीं है। हमारा रिश्ता हसी-मजाक का और प्यार का है। मैंने बहुत पहले दिग्विजय सिंह को एक ‘पॉवर ऑफ अटॉर्नी’ दी थी। वो ‘पॉवर ऑफ अटॉर्नी’ थी कि कमलनाथ के लिए आप पूरी गालियां खाएंगे। ये ‘पॉवर ऑफ अटॉर्नी’ आज के दिन भी वैलिड है। मैं यही कहना चाहता हूँ। इसके बाद दिग्विजय सिंह ने जवाब दिया कि, गलती कौन कर रहा है ये सभी को पता होना चाहिए।कमलनाथ ने फिर इस बात का जवाब देते हुए कहा था कि, गलती हो या न हो दिग्विजय सिंह को ही गाली खानी है। मेरा उनसे बहुत पुराना पारिवारिक सम्बन्ध हैं। कमलनाथ की इस बात का जवाब देते हुए दिग्विजय ने कहा कि, शंकर का काम है विष पीना। तब बात को खत्म करते हुए कमलनाथ ने कहा कि, आपने पहले भी विष के घूट पिए हैं आगे भी पीने पड़ेंगे।
तो मध्यप्रदेश की राजनीति में अब तक यह दो ‘पॉवर ऑफ अटॉर्नी’ सामने आई हैं। आगे इस शब्द का प्रयोग होता रहेगा, ऐसी पूरी संभावना है। और हो सकता है कि ऐसी कोई पुरानी ‘पॉवर ऑफ अटॉर्नी’ धीरे-धीरे सामने आएं, जिनकीं जानकारी लोगों को अचंभित कर दे। पर यह बात साफ है कि राजनीति में ‘पॉवर ऑफ अटॉर्नी’ को किसी कानूनी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती। हां जनता की अदालत में इसकी चर्चा बखूबी बढ़-चढ़कर होती रहेगी…।