‘कर्नाटक फार्मूला’ किसे पहुंचायेगा सत्ता सिंहासन तक!
– अरुण पटेल
जब से हिमाचल और कर्नाटक में आमने-सामने की लड़ाई में कांग्रेस पार्टी ने भारतीय जनता पार्टी को शिकस्त दी है तबसे पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में खासकर मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और राजस्थान में यह चर्चा आम है कि आखिर यह कर्नाटक का फार्मूला किसे सत्ता के सिंहासन तक पहुंचायेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछड़े वर्ग का कार्ड खेलते रहे हैं लेकिन अब कांग्रेस ने टिकट वितरण सहित अपनी सरकार बनने पर 27 प्रतिशत ओबीसी को आरक्षण देने तथा जाति की जनगणना करने का जो दांव चला है वह भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। यही कारण है कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी और सोनिया गांधी से लेकर सभी बड़े नेता इन दिनों जातिगत जनगणना और पिछड़ों को उनका अधिकार दिलाने की जोरशोर से बात कर रहे हैं। उनका यह मुद्दा भाजपा की राह में कितने कांटे बिछायेगा यह तो तीन दिसम्बर की शाम तक ही पता चल सकेगा। आजकल कांग्रेस का फार्मूला अपने क्षेत्रीय नेताओं के चेहरे को आगे कर चुनावी समर में उतरने का है और इसमें उसे सफलता भी मिली है। जबकि भाजपा का फार्मूला हर जगह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे और कमल निशान को आगे कर चुनावी बिसात बिछाने का रहा है।
भाजपा का फार्मूला राज्यों में कुछ अपवाद को छोड़कर सफल नहीं हो रहा है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर उसे अच्छी-खासी मान्यता मिली हुई है। जिन राज्यों में मुख्यमंत्री होते हैं वह चुनावी समर में पार्टी का चेहरा बन जाते हैं लेकिन मध्यप्रदेश में शिवराज के मुख्यमंत्री होते हुए भी भाजपा अभी यह नहीं कह रही है कि शिवराज ही उसका चेहरा होंगे। हालांकि शिवराज सरकार की उपलब्धियों और कमलनाथ सरकार की कथित विफलताओं के नाम पर भाजपा वोट मांग रही है। इसके साथ ही सनातन का मुद्दा भी उठा रही है ताकि अधिक से अधिक बहुसख्यक मतदाताओं का उसे समर्थन मिले तथा मतदाताओं के जेहन में यह बात बिठाई जाए कि कांग्रेस अल्पसंख्यक खासकर मुस्लिम परस्त नीतियां अपनाती है।
भाजपा द्वारा इस बार सांसद और केंद्रीय मंत्रियों नरेंद्र सिंह तोमर, फग्गन सिंह कुलस्ते, प्रहलाद पटेल और राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय जैसे दिग्गजों को विधानसभा के चुनावी समर में उतार दिया गया है और भाजपा यदि सत्ता में आती है तो यह विकल्प खुला रखा गया है कि मुख्यमंत्री इनमें से भी कोई हो सकता है। क्योंकि जो बड़े दिग्गज चुनावी समर में उतारे गये हैं वह केवल विधायक या मंत्री बनने के लिए चुनाव में नहीं उतारे गये हैं बल्कि हर इलाके में यह संदेश देने की कोशिश की गयी है कि उस इलाके में यदि पार्टी को अपेक्षा से अधिक सफलता मिलती है तो फिर सत्ताशीर्ष पर उनका अपने इलाके का नेता भी बैठ सकता है। जहां तक कांग्रेस का सवाल है प्रदेश में नेतृत्व के सवाल पर कोई दो-राय नहीं है और सभी नेता यह स्वीकार कर चुके हैं कि सरकार बनने पर कमलनाथ ही मुख्यमंत्री होंगे। फिलहाल जो खींचतान दिख रही है वह अपने-अपने समर्थकों को ज्यादा से ज्यादा टिकट दिलाने के लिए है क्योंकि टिकट वितरण के बाद कांग्रेस में भी असंतोष और विद्रोह की स्वर लहरियां 20 से अधिक क्षेत्रों में उभर कर सामने आई हैं।
जो अधिक आवेश में थे उन्होंने पार्टी भी छोड़ दी है और दूसरी पार्टियों के चुनाव चिन्ह पर अपनी किस्मत आजमाने का मन बना लिया है। बहुजन समाज पार्टी, आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी भाजपा और कांग्रेस से विद्रोह करने वाले दमदार नेताओं पर अपनी निगाहें जमाये हुए हैं ताकि उन्हें अपना उम्मीदवार बनाकर सत्ता की चाबी अपनी मुट्ठी में कैद कर सकें। यह तो चुनाव नतीजों से ही पता चल सकेगा कि इन पार्टियों के मंसूबे पूरे होते हैं या मतदाता भाजपा और कांग्रेस में से किसी एक के पक्ष में ही दोटूक जनादेश देता है। अभी टिकट कटने के बाद जो कुछ तूफान उठने के आसार नजर आ रहे हैं और भाजपा तथा कांग्रेस में से किसकी चुनावी संभावना को धूमिल करेंगे और किसको सत्ता साकेत में विचरण का मौका देंगे, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि किसके असंतुष्टों में ज्यादा दम-खम है। जिसके असंतुष्ट ज्यादा दमदार होंगे वह अपनी पार्टी को सरकार बनाने से वंचित कर सुख का अनुभव करेंगे। फिलहाल तो नाम वापसी के अंतिम दिन तक रुठों को मनाने का क्रम भाजपा और कांग्रेस में चलेगा।
विधानसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि यह लोकसभा चुनाव के लिए है लेकिन इसके बाद भी मध्यप्रदेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच तलवारें खिंच गयी हैं। इसको देखते हुए यह चर्चा भी होने लगी है कि यह 2024 के चुनाव तक कहीं इंडिया गठबंधन के आकार को कहीं छोटा न कर दे। सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव अधिक उत्तेजित नजर आ रहे हैं और यदि लोकसभा चुनाव तक यह नाराजगी कम होने की जगह बढ़ गयी तो फिर इससे इंडिया गठबंधन को झटका लगने से भी इन्कार नहीं किया जा सकता। क्योंकि राज्यों में गठबंधन के कई घटक आपस में भी चुनाव लड़ रहे हैं। यही कारण है कि मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस व समाजवादी पार्टी के बीच आपसी सहमति न बन पाने के कारण यह अटकलबाजी हो रही है कि कहीं आगे जाकर इसका असर लोकसभा चुनाव में उत्तरप्रदेश की सीटों के बंटवारे पर तो नहीं पड़ेगा।
बसपा तो गठबंधन से दूर है लेकिन सपा और आम आदमी पार्टी विपक्षी गठबंधन इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इन्क्लूसिव एलायंस (आईएनडीआईए) में शामिल दल हैं। जहां तक आम आदमी पार्टी का सवाल है वह पहले ही राज्यों के चुनाव में ऐकला चलो के फार्मूले पर चल रही है, लेकिन समाजवादी पार्टी ने कुछ ज्यादा ही उम्मीदें, अन्य राज्यों में जहां उसका विशेष असर नहीं है लगा रखी हैं, उसकी इन उम्मीदों पर कांग्रेस द्वारा तुषारापात कर देने से इस तकरार का लोकसभा चुनाव पर कितना असर पड़ेगा यह देखने वाली बात होगी।
… और यह भी
जहां तक सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव का जो ताजा रुख है उससे यह स्पष्ट है कि वह अब 2024 के लिए कांग्रेस के साथ समझौते की मेज पर बैठेंगे तो उसी जनाधार को फार्मूला बनायेेंगे जिसके आधार पर मध्यप्रदेश में उनके दल को कांग्रेस द्वारा तवज्जो नहीं दी जा रही है। इन हालातों में उत्तरप्रदेश में विपक्षी गठबंधन का स्वरुप क्या होगा, क्योंकि कांग्रेस के पास इस समय उत्तरप्रदेश में केवल एक लोकसभा सदस्य और दो विधायक ही हैं। पश्चिम बंगाल , पंजाब और दिल्ली में सीट बंटवारे को लेकर तो रस्साकसी चल ही रही थी कि मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में अब टकराव खुलकर सतह पर आ गया। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विपक्षी गठबंधन आईएनडीआईए पर तंज कसते हुए कहा कि दिल्ली में दोस्ती और राज्यों में कुश्ती कर रहे हैं। इनमें न तो विचार एक हैं न ही दिल एक है, केवल प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता से घबरा कर यह बेमेल गठबंधन था जो बनने से पहले ही टूटता नजर आ रहा है। इस गठबंधन ने मध्यप्रदेश में रैली तय की थी उसे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने निरस्त करवा दिया।
उन्होंने कहा कि यह अजीब गठबंधन है जिस तरह का बयान सपा प्रमुख अखिलेश यादव का आया है उससे यह साफ हो चुका है कि आईएनडीआईए बनने से पहले ही टूट रहा है। अखिलेश के मुद्दे पर जब कमलनाथ से पूछा गया तो उन्होंने इतना ही कहा कि अरे भाई छोड़ो-अखिलेश-वखिलेश को, लोग हमें फोन कर बता रहे हैं कि जनता में उत्साह है, कांग्रेस ने अच्छे उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। पूरे प्रदेश में कांग्रेस के पक्ष में माहौल है और पहले कांग्रेस जितनी सीटें जीती थी उससे ज्यादा सीटें जीत कर कांग्रेस प्रदेश में अपनी सरकार बनायेगी।