महाराजा अजमीढ़ जयंती पर विशेष!स्वर्णकार समाज के आराध्य देव महाराजा अजमीढ़ जी का जीवन परिचय!
रमेश सोनी की खास खबर
Bhopal : आज शरद पूर्णिमा हैं इस दिन को देशभर के लोग हर्षोल्लास से मनाते हैं, मंदिरों में भजन भक्ति और कई तरह के धार्मिक आयोजन किए जाते हैं। रात्रि को 12 बजे भगवान की आरती कर उन्हें दुघ से बनी खीर का भोग लगाकर प्रसाद वितरित की जाती हैं।
देशभर का स्वर्णकार समाज शरद पूर्णिमा को आराध्य देव अजमीढ़ जी की जयंती के रूप में मनाता हैं,इस दिन को स्वर्णकार समाज त्यौहार के रूप में मनाता है सुबह से लेकर रात तक धार्मिक आयोजन किए जाते हैं, प्रभातफेरी,चल समारोह निकाला जाता हैं और रात को महाराजा अजमीढ़ जी की आरती करते हुए प्रसाद वितरण की जाती हैं।
वैसे तो इस दिन को देशभर में स्वर्णकार समाज हर्षोल्लास से मनाता हैं, वहीं विशेषतः मध्यप्रदेश के भोपाल में महाराजा अजमीढ़ जी की प्रतिमा का अनावरण हुआ है जहां विधि विधान से पूजन अर्चन किया जाता हैं और नीमच शहर में आराध्य देव अजमीढ़ जी के नाम विशाल धर्मशाला है जहां समाजजनों द्वारा 3 दिवसीय कार्यक्रम आयोजित करते हुए अनेक कार्यक्रम किये जाते हैं विशेष बात यह है कि स्वर्णकार समाज के सभी सदस्यों का यहां
सहभोज आयोजित किया जाता हैं स्वर्णकारों के घरों में खाना नहीं बनता हैं सभी एक जाजम पर एकत्रित होकर सहभोज करते हुए आराध्य देव अजमीढ़ जी की जयंती को हर्षोल्लास से मनाते हैं।
*कौन थे महाराजा अजमीढ़ जी*
मैढ़ क्षत्रिय अपनी वंश बेल को भगवान विष्णु से जुड़ा हुआ पाते हैं।कहा गया हैं कि भगवान विष्णु के नाभि-कमल से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई।ब्रह्माजी से अत्री और अत्री जी की शुभ दृष्टि से चंद्र-सोम हुए। चंद्रवंश की 28 वीं पीढ़ी में अजमीढ़ जी का जन्म हुआ।महाराजा अजमीढ़ जी का जन्म त्रेतायुग के अन्त में हुआ था।मर्यादा पुरुषोत्तम के समकालीन ही नहीं अपितु उनके परम मित्र भी थे। उनके दादा महाराजा श्रीहस्ति थे जिन्होंने प्रसिद्ध हस्तिनापुर बसाया था। महाराजा हस्ति के पुत्र विकुंठन एवं दशाह राजकुमारी महारानी सुदेवा के गर्भ से महाराजा अजमीढ़ जी का जन्म हुआ।इनके अनेक भाईयों में से पुरुमीढ़ और द्विमीढ़ विशेष प्रसिद्ध हुए और दोनों पराक्रमी राजा थे। द्विमीढ़जी के वंश में मर्णान, कृतिमान, सत्य और धृति आदि प्रसिद्ध राजा हुए।पुरुमीढ़ जी के कोई संतान नहीं हुई।
राजा हस्ती के जयेष्ठ पुत्र अजमीढ़ महान चक्रवर्ती राजा चन्द्रवंशी थे।महाराजा अजमीढ़ के दो रानियां सुयति व नलिनी थी।इनके गर्भ में बुध्ददिषु, ऋव,प्रियमेध व नील नामक पुत्र हुए।उनसे मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज का वंश आगे चला। अजमीढ़ ने अजमेर नगर बसाकर मेवाड़ की नींव डाली।महान क्षत्रिय राजा होने के कारण अजमीढ़ धर्म-कर्म में विश्वास रखते थे।वे सोने-चांदी के आभूषण,खिलौने व बर्तनों का निर्माण कर दान व उपहार स्वरुप सुपुत्रों को भेंट किया करते थे।वे उच्च कोटि के कलाकार थे। आभूषण बनाना उनका शौक था और यही शौक उनके बाद पीढ़ियों तक व्यवसाय के रुप में चलता आ रहा है।
समाज के सभी समाजजनों द्वारा इनको आदि पुरुष मानकर अश्विनी शुक्ल पूर्णिमा को अजमीढ़ जी जयंती मनाते हैं।