अपनी भाषा अपना विज्ञान: पतझड़ के रंग

अपनी भाषा अपना विज्ञान: पतझड़ के रंग

 

प्रतिवर्ष अक्टूबर का महीना आते आते मेरे अमेरिकी मित्र Autumn या Fall ऋतु में वृक्षों की पत्तियों के बदलते रंगों की नयनाभिराम छटा के एक से बढ़ कर एक फोटोग्राफस शेयर करना शुरू करते हैं ।

उत्तरी अमेरिका, यूरोप, रूस आदि अनेक देशों के उत्तरी अक्षांशों में यह ऋतु इन दिनो अपने शबाब पर होती है । अनेक नाम है

Autumn, पतझड़, Fall, शरद

कश्मीर व हिमाचल को छोड़ दें तो भारत में वैसा मौसम नही होता ।

अपनी भाषा अपना विज्ञान: पतझड़ के रंग

हरे के स्थान पर पीले, केशरिया, नांरगी, कत्थई और सुर्ख लाल रंगों की चटख बिसात बिछ जाती है । रंगों का सैलाब होता है । उन जंगलों, बगीचों के बीच से गुजरे बगैर उस खूबसूरती का अंदाज लगाना मुश्किल होता है ।

कोई भी “रंग” एक अनुभूति है, संवेदना है, Sensation है । समस्त वस्तुओं, पदार्थों पर पड़ने वाली सूर्य की किरणे (प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष) अपने अन्दर न केवल इन्द्रधनुष के सात रंग बल्कि उनके दोनों छोरों से परे और भी अनेक प्रकार की तरंगों को समाहित करके रखती है । Rainbow के लाल किनारे से सट कर, Infrared और नीले मुहाने से चिपक कर Ulta-Violet रंग होते हैं, जो हम मनुष्यों को नहीं दिखते, लेकिन बहुत से दूसरे प्राणियों को, [जैसे कि तितली, मधुमख्खी, रेन-डियर, सालमन मछली] नजर आते हैं। हमें कृत्रिम तरीके अपनाते पड़ते हैं ।

सभी वस्तुओं की सतह पर गिरने वाला प्रकाश थोडा सा अन्दर घुसता है और फिर परावर्तित हो कर वापस लौटता है । यदि पूरा का पूरा, वैसा का वैसा Reflection हो जावे तो वह वस्तु सफेद दिखती है। यदि समस्त किरणें सोख ली जावें, कुछ भी बाहर न आने पावे तो वह वस्तु काली दिखती है। रंगीन वस्तुएं मजेदार खेल करती है ।

पूरे इन्द्रधनुष में से कोई एक रंग या किसी एक रंग का कोई खास शेड़ बाहर लौटा देती है, बाकि को अन्दर रख लेती है ।

गुलाब का फूल लाल या गुलाबी क्यों है?

हल्दी, पीली क्यों है?

पत्तियां हरी क्यों है ?

क्योंकि उन्होंने केवल उसी रंग की किरणों को वापस लौटने दिया। शेष को अपने अन्दर समाहित कर लिया। कौन रुकेगा, कौन लौटेगा यह जजमान की तासीर या साइंस की भाषा में कहें तो उसकी केमिस्ट्री पर निर्भर करता है ।

शरद या ऑटम के आने के पहले सबकुछ सावन के अंधे जैसा हरा ही हरा होता है । इस हरित साम्राज्य का मूल पदार्थ है Chlorophyll.

यूनानी या ग्रीक भाषा के शब्द है Khloros – “हरा” Phyllon – पत्ती.

हिन्दी में एक प्यारा सा शब्द गढ़ा गया है “पर्ण हरित”.

यह प्रोटीन युक्त एक जटिल यौगिक होता है जो न केवल हरे पत्तों बल्कि Algae / शैवाल | काई में भी रहता है। महासागरों की नीलिमा में हरा रंग इन्हीं के कारण उभरता है । जहाँ सूक्ष्म बारीक बारीक जीव होते है [Plankton] जो Chlorophyll धारण करते हैं।

यह पदार्थ कहां रहता है ? प्रत्येक कोशिका में नाभिक के बाहर वाले द्रव [Cytoplasm] में Chloroplast नामक रचनाओं के भीतर भरा रहता है।

धरती पर जीवन के आविर्भाव में [1 अरब वर्ष पूर्व] सबसे आरंभिक और सबसे महत्वपूर्ण पायदान रही थी क्लोरोफिल का बनना ।

गजब का यौगिक है । सूर्य की किरणों से ऊर्जा, जड़ों से या हवा से नमी (पानी) और हवा से कार्बन डाय ऑक्साइड, बस इन तीन सामान की मदद से कोशिकाओं की फैक्टरी में उत्पादन शरू हो जाता है। फैक्टरी है Chloroplast । यंत्र है Chlorophyll | उत्पादन है Glucose रुपी भोज्य पदार्थ |

इस क्रिया को PhotoSynThesis या प्रकाश संश्लेषण कहते हैं। प्रकाश किरणों में निहित फोटान के कणों या तरंगो की उर्जा का एक अंश क्लोरोफिल द्वारा Capture कर लिया जाता है।

ये फोटोन अपनी घटी हुई उर्जा या घटी हुई Wavelength [तरंग – लम्वाई] के साथ जब बाहर लौटते हैं तो हमारी आंखों को हरे रंग की अनुभूति करवाते हैं।

यह रहस्य जैसा लगता है कि Chlorophyll और Hemoglobin की रचना में साम्य है । एक हरा, एक लाल । दोनों Organic Pigment हैं। दोनों का काम कार्बन डाय ऑक्साइड और ऑक्सीजन जैसी, गैसों से सम्बन्धित है। दोनों अनिवार्य है। एक वनस्पतिजगत के लिये तो दूसरा प्राणी जगत के लिये ।

क्लोरोफिल की खोज 1817 में फ्रांसीसी फार्मासिस्ट जोसेफ बिएनैम कावेन्तु और केमिस्ट पियरे जोसेफ पेलेतिए ने करी थी। अपने शोध आलेख में उन्होंने अपना नाम लगाने के बजाय, विनम्रता पूर्वक लिखा था” इस पदार्थ को लोग लम्बे समय से जानते है । उस कहानी में हमने थोड़े से तत्थ तथ्य जोड़े हैं । हमारा सुझाव है कि इसे chloros और Qumnou के आधार पर क्लोरोफिल कहा जावे।”

ठण्डे देशों में बसन्त और ग्रीष्म ऋतु में दिन लम्बे, धूप भरे गर्म और नमी युक्त होते हैं। इन्ही महीनों में फसले बढ़ती है। वृक्ष पन‌पते है है। क्लोरोफिल फेक्टरी में भोज्य पदार्थ का भरपूर उत्पादन होता है।

शरद / [Autum] [Fall] [पतझड़] के आते आते हवा ठण्डी और शुष्क होने लगती है, दिन छोटे होते है, धूप की तेजी से कमी आने लगती है। सदाबहार वृक्षों को छोड़ कर शेष वनस्पति जगत अपना चोला उतारने की तैयारी करने लगता है। बर्फ से लदी हुई ठिठुरती ठंड में सभी शाखाएं नंगी हो जायेगी। बचा खुचा भोजन तनों और जड़ों में सहेज कर रख लिया जावेगा। जिन्दा रहने की जद्दोजहद में उत्पादन के काम में उर्जा खपाने में बुद्धिमता नही है । Factories को Dismantle करना है। अगली बहार मे फिर बन जायेंगी।

कितना अच्छा है कि बिदाई की रस्म और कर्मकाण्ड एक-डेढ़ महीना चलते है । विलम्बित लय में मधुर संगीत बजता है। पत्तियों में सुषुप्त कई एन्जाइम सक्रिय हो उठते है। क्लोरोफिल को तोड़ते हैं, नष्ट करते हैं। वृक्षों की किसी प्रजाति में यह काम थोडा तेज (एक सप्ताह) तो कुछ में थोड़ा धीमा (4-6 सप्ताह) होता है।

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क्लोरोफिल का विखण्डन जरुरी है। शीत ऋतु में PhotoSynThesis के अभाव में Chlorophyll वृक्षों के लिये Toxin [जहर] जैसा काम करने लगता है। बची खुची सक्रियता के चलते, भोजन नहीं बनता लेकिन नुकसानदायक इलेक्ट्रान पैदा होते हैं। क्लोरोफिल के विखण्डन उत्पाद रंगहीन और हानिरहित होते हैं।

पतझड़ के हसीन रंगों को धारण करने वाले केमिकल यकायक नये पैदा नहीं होते। वे पहले से रहते हैं। लेकिन क्लेरोफिल की मात्रा इतनी अधिक होती है कि हरा रंग सबको ढँक लेता है। जब वह रिटायर होता है तो दूसरों को मौका मिलता है। “लो देखों, हम भी है राहों में।”

मानव जीवन के साथ भी क्या ऐसा ही कुछ नहीं होता ? Every loss reveals What we are made of.

कुछ खोने पर, गर्दिश के दिनों में ही इन्सान की असली पहचान होती है कि वह किस-किस रंग की मिट्टियों का बना है ।

पतियों में छुपी हुई मिट्टियों या Pigments के नाम है

  1. Flavanoids फ्लेवेनाइड्स
  2. 2. Carotinides केरोटिनाइड्स
  3. Anthocyanins एन्थोसायनिन
  4. Tannins टैनिन
  5. Xanthophyll ज़ैंथोफिल
  6. hm FCC
  7. Lycopene लायकोपीन

Carotinides और Flavanoids पत्तियों में शुरू से मौजूद रहते हैं।

Carotine नाम पड़ा गाजर या Carott के रंग से ।

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Carotinides का एक प्रकार होता है Xanthophyll जो पीले रंग की आभा प्रदान करता है । अंडे की जर्दी का पीला रंग Lutein से आता है जो एक प्रकार का Xanthophyll ही है। केरोटीन का गुण है, प्रकाश में से हरी और नीली किरणों को सोख लेना तथा लाल और पीली तरंगों को परावर्तित कर देना – जिनके सम्मिश्रण से Orange या केशरिया रंग बनता है। क्लोराफिल की तुलना में Carotinides का विखण्डन धीमी गति से होता है अत: झड़ने वाली पत्तियों में उसी के रंग उभरते हैं। लायकोपीन नाम का एक और Carotinides होता है जो टमाटर का लाल रंग बनाता है। एन्थोसायनिन पहले से मौजूद नहीं रहते। ऑटम के आते आते उनका उत्पादन शुरु होता है। पत्तियों में इस Pigment की एक नयी परत बनती है जो सूर्य किरणों के विरुद्ध Sun-Screen Creame जैसा काम करती है । Photo-oxidative क्षति को कम करती है और मदद करती है कि झड़ते झड़ते भी पत्तियों में थोड़ा बहुत भोज्य पदार्थ बनता रहे ।

एन्योसायनिन का सौंदर्य चटख सुर्ख लाल व बैंगनी रंगों में परिलक्षित होता है। जो हम इन्सानों का मन मोहता हैं लेकिन शायद पत्तियां चरने वाले प्राणियों को विकर्षित करता है । शायद यह एक Evolutionary Adaptation होगा ।

इन Pigment [वर्णक] की केमिस्ट्री में एक तकनीकी शब्द आता है “Bond” । कुछ यौगिकों में “एकल बन्ध” [Single Bond] होते हैं। अर्थात दो समीपस्थ अणु, आपस में दो इलेक्ट्रॉन का एक जोड़ा शेयर करते हैं। “द्वि-बन्ध” [Double Bond] उन यौगिकों [Molekule] में बनता है जिनमें दो समीपस्थ अणु आपस में इलेक्ट्रोन के दो जोड़े साझा करते हैं।

पतझड़ की पतियों के रंगदार मालीक्यूल में क्रामिक रूप से एकल- बन्ध और द्वि-बन्ध जमें रहते है → [Conjugation] जिनके कारण इन यौगिकों में प्रकाश किरणों के इन्द्रधनुष में से चुन चुन कर किसी किसी खास तरंगों को सोखने और छोड़ने का गुण धारित होता है ।

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 Tannin टैनिन  की चर्चा कुछ हट कर, क्योंकि यह रंग सुन्दरता का वाहक नही है। यह अलग बात है कि Beauty is in The eyes of the beholder [सुन्दरता देखने वाले की आंखों में होती है]

फिर अधिकांश लोग मानेंगे कि मृतप्राय पत्तियों का गहरा भूरा-कत्थई रंग उन्हें अच्छा नहीं लगता है Tannin ऐसा ही एक पादप-रसायन है जिसका कोई पोषण मूल्य नहीं है शायद कुछ रक्षात्मक भूमिका हो । Tanning, मरणासन्न पत्ती की मेटाबोलिज्य से पैदा होने वाला एक कूड़ा-पदार्थ है।

जो रंगीन बारात पत्तियों की होती है वैसी ही कुछ फलों की भी होती है। कच्ची कैरी हरी होती है। पका आम पीला, केशरिया या लाल होता है।

विज्ञान की आंख, मनुष्य की आंख से परे देख सकती है। सूक्ष्मदशी (Microscope) और दूरदर्शी [Telescope] का उदाहरण अनेक लोग देंगे । यहां एक और उदाहरण प्रस्तुत है ।

वर्ष 2008 में A journal of German Chemical Society में एक शोधपत्र प्रकाशित हुआ । केलों के पकने की प्रक्रिया को अल्ट्रावायोलेट प्रकाश में मापा गया। छिलके में Chlorophyll के हरे रंग के स्थान पर न केवल पीले XanThophyll आगये बल्कि एक सुर-रियल Fluorescent[प्रति-दीप्त] नीली आभा भी पाई गई। यह कौन अजनबी है ? क्लोरोफिल का एक विखण्डन उत्पाद।

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Hyper Modified Fluorescent Chlorophyll Catabolite [hm FCC] जो अंगूरलता और मनी प्लान्ट की पत्तियों में भी मिलता है । केले का पकना और नीले रंग का घनत्व बढ़ना, दोनो एक दूसरे के समानान्तर पाये गये। अधिक पक जाने के बाद, नीला Pigment फिर घट जाता है । डार्विनियत विकास में एक गुण प्राणियों के काम आता रहा होगा जो अल्ट्रावायोलेट रंग देख पाते हैं

और निर्णय ले पाते हैं कि फलां फलां फ्रूट खाने योग्य है या नहीं । इसके अतिरिक्ता hm FCC शायद विकिरण से पौधो / फलों को बचाता है ।

भारत जैसे गर्म प्रदेशों में पतझड़ Autumn का प्रथक से मौसम नहीं आता |पत्तियां हमारे यहां भी पीली – नारंगी होती है और झड़ती है। लेकिन उनका समय साल के सिर्फ एक-दो माह के लिये सीमित नहीं रहता। वर्ष भर गिरने का और नयी कोपले और किसलय उगने का चक्र चलता रहता है हमारे यहां वनस्पति एक साथ कदम-ताल नहीं करती। सारे वृक्ष शिशिर ऋतु में कंकाल बनकर नहीं रह जाते। सबका अपना अलग अलग कैलेण्डर है।

दोनो प्रकार की ऋतुओं का विशिष्ट अनूठा सौदर्य है ठीक इसी तरह ज्ञान की दोनों शाखाओं को अपनाना चाहिये – कला और विज्ञान। इस खूबसूरती का आनन्द लें और साथ ही साथ मानव मस्तिष्क की जिज्ञासु प्रवृत्ति को घोषित करते रहे जो प्रश्न पूछते पूछते और उत्तर ढूंढते ढूंढने कभी थकती नहीं।

पतझड़ भी गजब का मौसम है। दुविधा और सुलह साथ-साथ चलते है। प्रतीक है जीवन की नश्वरता का और नया चोला पहनने का । अहसास कराता है जीवन के लघु ओर अप्रत्याशित होने का। वरना विदाई के बिना होने न होने की कोई कीमत नहीं । ऑटम के मौसम में समस्त वनस्पतिजात जोर जोर से प्रकट करना चाहता है कि जो बाहर से दिखता है उसके भीतर कुछ और छिपा रहता है।

“रंगबिरंगे पत्ते चाहे शाखाओं पर हो या हवा में तैरते हुए उतर रहे हो या धरती पर मोहक डिजाइन बनाते हुए बिछ गये हों अपने अन्दर एक गरिमा लिये होते है । खुश रहना, प्यारों हम तो सफ़र करते हैं ।” मानो एक सुहागन, सजधज कर अंतिम प्रयाण कर रही हो ।

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Author profile
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डॉ अपूर्व पौराणिक

Qualifications : M.D., DM (Neurology)

 

Speciality : Senior Neurologist Aphasiology

 

Position :  Director, Pauranik Academy of Medical Education, Indore

Ex-Professor of Neurology, M.G.M. Medical College, Indore

 

Some Achievements :

  • Parke Davis Award for Epilepsy Services, 1994 (US $ 1000)
  • International League Against Epilepsy Grant for Epilepsy Education, 1994-1996 (US $ 6000)
  • Rotary International Grant for Epilepsy, 1995 (US $ 10,000)
  • Member Public Education Commission International Bureau of Epilepsy, 1994-1997
  • Visiting Teacher, Neurolinguistics, Osmania University, Hyderabad, 1997
  • Advisor, Palatucci Advocacy & Leadership Forum, American Academy of Neurology, 2006
  • Recognized as ‘Entrepreneur Neurologist’, World Federation of Neurology, Newsletter
  • Publications (50) & presentations (200) in national & international forums
  • Charak Award: Indian Medical Association

 

Main Passions and Missions

  • Teaching Neurology from Grass-root to post-doctoral levels : 48 years.
  • Public Health Education and Patient Education in Hindi about Neurology and other medical conditions
  • Advocacy for patients, caregivers and the subject of neurology
  • Rehabilitation of persons disabled due to neurological diseases.
  • Initiation and Nurturing of Self Help Groups (Patient Support Group) dedicated to different neurological diseases.
  • Promotion of inclusion of Humanities in Medical Education.
  • Avid reader and popular public speaker on wide range of subjects.
  • Hindi Author – Clinical Tales, Travelogues, Essays.
  • Fitness Enthusiast – Regular Runner 10 km in Marathon
  • Medical Research – Aphasia (Disorders of Speech and Language due to brain stroke).