MP Election:शिवराज खतरनाक मूड में हैं
वरिष्ठ पत्रकार रमण रावल का राजनीतिक विश्लेषण
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मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बार-बार यह साबित किया है कि वे प्रदेश में भाजपा का सशक्त चेहरा हैं। प्रकारातंर से इसे एकमात्र भी कह सकते हैं। इसे सही ठहराने के लिये शिवराज कोई कसर भी नहीं छोड़ रहे। इन दिनों जिस शिद्दत के साथ वे चुनावी रंग में डूबे नजर आ रहे हैं, वैसा तो दूर-दूर तक कोई नहीं दिखाई देता। वे भाजपाई नेता भी नहीं, जिनके नाम शिवराज के विकल्प के तौर पर गाहे-बगाहे चलते रहते हैं। सभायें, रैलियां,सड़क सगंत हो या दर-दर पर दी जा रही दस्तक हो,शिवराज का कोई सानी नहीं । जहां यह चर्चा रहती है कि शिवराज ही मप्र में भाजपा हो गये हैं तो वहीं आलाकमान तक यह महसूस कर रहा है कि शिवराज की उपस्थिति ऐसी हो चली है, जैसे कहा जाता है ना कि व्यक्ति से कहीं लंबी तो उसकी परछाई दिख रही है। शिवराज का मामला कुछ ऐसा ही नजर आता है।
दल और विपक्ष में भी अब तो आम तौर पर यह माना जाने लगा है कि मप्र भाजपा याने शिवराज। उनकी यह छवि जहां जनता-जर्नादन के बीच उनकी लोकप्रियता का पैमाना होती है तो अपने ही राष्ट्रीय नेतृत्व के समक्ष वह नकारात्मक संदेश देती है। संभवत: इसीलिये करीब दो साल से शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री पद से हटाने की अटकलें कभी मद्धम तो कभी तेज चलती रही, लेकिन वे अपनी जगह अडिग रहे। इतना ही नहीं तो उनकी पकड़ अपेक्षाकृत ज्यदा मजबूत होती रही। प्रदेश में भाजपा के चर्चित,लोकप्रिय चेहरे के तौर पर स्थपित होने की वजह से ही शायद केंद्रीय नेतृत्व चुनावी वर्ष में उन्हें हटा पाने की जोखिम नहीं ले पाया। नेतृत्व की इस लाचारी या पसोपेशपन को शिवराज ने भी भली भांति जान लिया और दे दनादन पर उतर आये । ऐसे में कभी-कभी तो यह भी लगने लगता है कि शिवराज अपने आलाकमान खुद ही हैं । बहरहाल।
प्रदेश में होने जा रहे विधानसभा चुनाव के लिये जहां प्रत्याशियों की पहली सूची जारी हुई तो लगा कि पंछी के पंख छांटने की शुरुआत हो चुकी है, लेकिन जैसे-जैसे नर्मदाजी में पानी बहा, सतह पर जमी काई भी छंटने लगी और बहते साफ पानी में जो छवि चमकती दिखाई दी, वो शिवराज की ही थी। बाद में जितनी भी सूचियां जारी हुईं, वे शिवराजमय ही रहीं। 70 से 80 साल तक के प्रत्यासी घोषित किये गये। दो-तीन बार हारे गये प्रत्याशी फिर से नवाजे गये। जिन मंत्रियों की छवि अपने इलाके में कमजोर थी और कार्यकर्ताओं तक में जिनके प्रति नाराजी थी, वे भी टिकट पाने मे कामयाब रहे तो शिवराज के ही कारण। याने आलाकमान ने चुनावी बेला मे शिवराज को कमजोर करना उचित नहीं समझा या इसे सही मौका नहीं माना या अंतरमन से यह मान लिया कि चुनावी वैतरणी पार करना है तो मल्ला्ह तो शिवराज को ही रखना होगा। किसी अन्य प्रांतीय क्षत्रप के हाथ पतवार थामने जितने मजबूत नजर नहीं आये।
जब शिवराज सिंह चौहान को भी खातिरी हो गई कि उन्हें दरकिनार कर चुनाव नहीं लड़ा जा सकता तो फिर से उनमें जोश का संचार हुआ और वे प्रदेश को अपने तरीके से नापने निकल पड़े। अब वे धुंआधार सभायें कर रहे हैं, सड़क भ्रमण कर रहे हैं। मतदाताओं को गले लगा रहे हैं,बहनों को दुलार कर रहे हैं। भांजियों के सिर पर हाथ फेरकर आशीर्वाद दे रहे हैं। दीवाली पूर्व लाड़ली बहनों को तोहफे के रूप में 1250 रुपये की किस्त भी जारी कर दी। कहीं चुनावी मजमे में झांझ-मजीरे बजा रहे हैं तो कहीं नृत्य कर रहे हैं।
इसमें दो मत नहीं कि शिवराज जहां भी जाते हैं ,जन समुदाय उन्हें हाथोहाथ लेता है। वे भी मंच पर घूम-घूम कर अपनी बात कहते हैं और जनता से हामी भी भरवाते हैं। उनके इस तरीके की दूसरे नेता भी नकल करने लगे हैं। इससे जनता से सीधा जुड़ाव हो जाता है। यह भी उल्लेखनीय है कि हेलिकॉप्टर से मंच तक आते हुए लोग उनसे मिलने,हाथ मिलाने,फोटो खिंचवाने को टूटे पड़ते हैं। वे खुद भी भीड़ के बीच बिदास पहुंच जाते हैं और खूब तस्वीरें उतरवाते हैं। यह लोगों के बीच उनके आकर्षण को दर्शाता है। इस तरह से शिवराज यह स्थापित करने में सफल रहे कि वे आज भी प्रदेश में लोकप्रिय हैं और जनता से उनका सीधा जुड़ाव है।
शिवराज के लिये यह विधानसभा चुनाव केवल मुख्यमंत्री पद फिर से पाने का माध्यम नहीं है। यह फैसला तो अंतत: केंद्रीय नेतृत्व लेगा, किंतु इससे मिलने वाले परिणामों से शिवराज का राजनीतिक भविष्य का निर्धारण भी होगा। जिस तरह से इन दिनों चर्चा चल रही है कि 2024 में शिवराज को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जा सकता है,उसके परिप्रेक्ष्य में प्रदेश में भाजपा सरकार की वापसी आवश्यक है। आने वाले दिनों में शिवराज का तूफानी अंदाज और बढ़ता हुआ दिखेगा ।