Rajasthan Assembly Elections: कांग्रेस के 22 और भाजपा के 27 बाग़ी चुनाव मैदान में 

क्या कांग्रेस और भाजपा इन बागी उम्मीदवारों को मनाने में होंगे सफल? 

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Rajasthan Assembly Elections: कांग्रेस के 22 और भाजपा के 27 बाग़ी चुनाव मैदान में 

गोपेंद्र नाथ भट्ट की रिपोर्ट

 

राजस्थान में 27 नवम्बर को एक ही चरण में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए इस बार टिकट देने में कांग्रेस और भाजपा हाई कमान ने पूरी दखल अंदाजी की और अपने प्रभुत्व को बनाए रखने के लिए प्रदेश के नेताओं की राय से अलग टिकटों का वितरण किया जिसकी झलक दोनों दलों की सूचियों में दिखाई दी और अब कांग्रेस के 22 और भाजपा के 27 नेता बाग़ी उम्मीदवार चुनाव मैदान में ताल ठोकने को उतर गए है। यदि 9 नवम्बर को नामजदगी के पर्चे वापस लेने तक उन्हें समझा बुझा कर नही बैठाया गया तो दोनों दलों के सामने विकट संकट पैदा हो जायेगा।मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने गारण्टी रथ यात्रा और केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मंगलवार को अपनी तूफ़ानी राजस्थान यात्रा के दौरान उम्मीद ज़ाहिर की है कि कतिपय कारणों से उम्मीदवारी का फ़ॉर्म भरने वाले नेता पार्टी हित में अपने पर्चे वापस ले लेंगे।

 

दोनों दलों के हाई कमान और शीर्ष नेतृत्व ने अपने-अपने दल के नेताओं की पसन्द में सन्तुलन बनाए रखने का पूरा प्रयास किया। इसके बावजूद मौटे रूप से कांग्रेस की सूचियों में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और भाजपा की सूचियों में पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे का दबदबा देखने को मिला। हालाँकि कांग्रेस में गहलोत के सीटिंग टू गेटिंग फ़ार्मूला के आधार पर ज़्यादातर मौजूदा उम्मीदवारों, बीएसपी से कांग्रेस में शामिल विधायकों और कांग्रेस को समर्थन देने वाले निर्दलीय विधायकों को टिकट मिल गया। साथ ही कुछ पूर्व सांसद और पूर्व विधायक तथा पार्टी के अन्य नेता भी पार्टी प्रत्याशी बनने में सफल हुए। पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के कई समर्थकों को भी टिकट मिला है लेकिन हाई कमान ने 25 सितम्बर की घटना के कथित दोषियों में मुख्य सूत्रधार प्रदेश के नगरीय विकास मंत्री शान्ति धारीवाल को तो आखिरी सूची में टिकट थमा दिया लेकिन, जलदाय मंत्री डॉ महेश जोशी तथा आरटीडीसी के चेयरमेन धर्मेन्द्र राठौड़ को टिकट नही दिया।हालाकि मुख्यमंत्री गहलोत ने हाई कमान के सामने इनकी पैरवी की और दलील दीकि जब कांग्रेस से बगावत कर उनकी सरकार को गिराने की साज़िश में पायलट के साथ मानेसर गए अनुशासनहीनता करने वाले विधायकों को टिकट दिया गया है तों इनको भी टिकट मिलना चाहिए लेकिन हाई कमान ने उनकी दलीलों को नही माना। बताया जा रहा है कि डॉ महेश जोशी तथा आरटीडीसी के चेयरमेन धर्मेन्द्र राठौड़ को टिकट नही देने के पीछे जोशी के पुत्र और जल मिशन से जुड़े मामले तथा कथित लाल डायरी आदि कारण है। गहलोत ने सीटिंग टू गेटिंग फ़ार्मूला के आधार पर अधिकांश मौजूदा विधायकों, बीएसपी से कांग्रेस में शामिल हुए विधायकों और कांग्रेस को समर्थन देने वाले निर्दलियों को टिकट दिलाने में सफलता पाई । इसी प्रकार पूर्व सांसदों ,विधायकों और पार्टी के पुराने पदाधिकारियों को भी टिकट दिलवायें लेकिन गहलोत मंत्रिपरिषद के मंत्रियों डॉ .महेश जोशी,लाल चंद कटारिया , हेमाराम चौधरी और निष्काषित मंत्री राजेंद्र सिंह गुढा को टिकट नही दिया गया। लाल चंद कटारिया और हेमाराम चौधरी ने इस बार चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया और चर्चित एवं कथित लाल डायरी के कारण निष्काषित मंत्री राजेंद्र सिंह गुढा को टिकट देने का सवाल ही नही था।इसके अलावा गहलोत के कट्टर समर्थक राजीव अरोड़ा और दिनेश खोडनिया आदि भी टिकट से वंचित रह गए।

इधर वसुन्धरा राजे के समर्थक विधायकों पर भी उनके शीर्ष नेतृत्व में कैंची चलाई और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी एवं अरुण चतुर्वेदी के साथ ही कैलाश मेघवाल,राजपाल सिंह शेखावत, यूनुस खान, अशोक लाहौटी सहित कई नेताओं के टिकट काटे गए फिर भी सूची में वसुन्धरा समर्थक कई वर्तमान एवं पूर्व विधायकों को टिकट मिल गए। पहली सूची में सात सांसदों को टिकट देने से मचे बवाल के बाद वसुन्धरा की अहमियत बढ गई। हालाँकि भाजपा ने आरएसएस,विचार परिवार के साथ ही प्रतिपक्ष के नेता राजेन्द्र राठौड़,उप नेता डॉ सतीश पूनिया और अन्य नेताओं के समर्थकों को भी टिकट देकर संतुलन बनाने का प्रयास किया।एक-एक सीट पर कई दावेदार होने के कारण दोनों दलों के लिए प्रत्याशी का चुनाव करना किसी अग्नि परीक्षा से कम नही था।

 

दोनों दलों के सर्वे, जिताऊँ उम्मीदवार और युवाओं तथा महिलाओं को टिकट में वरियता देने, उम्र आदि के पैमाने धरे के धरे रह गए एवं सूचियों में ऐन वक्त पर दल बदल करने वालों तथा मौक़ा परस्त नेताओं को भी टिकटें मिल गई। इसके अलावा जातियों के आधार पर टिकट वितरण के मापदंड सबसे अधिक हावी रहें।

 

सोमवार को नामांकन प्रकिया पूरी होते ही भाजपा-कांग्रेस के लिए बग़ावती उम्मीदवारों का विकट संकट खड़ा हो गया हैं। टिकट बंटवारे से नाराज दोनों पार्टियों के 52 नेताओं ने अपनी ही पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार के खिलाफ नामांकन भर कर एक कठिन चुनौती खड़ी कर दी है। इन बग़ावती नेताओं में पूर्व मंत्री, मौजूदा और पूर्व विधायक, वर्तमान एवं पूर्व निकाय प्रमुख और पूर्व प्रत्याशी आदि नेता शामिल हैं। करीब एक दर्जन प्रत्याशी आरएलपी एवं अन्य क्षेत्रीय दलों से अपना भाग्य आजमा रहे हैं।

 

दोनों दलों के नेताओं ने अगर गुरुवार 9 नवंबर तक इन बग़ावती तेवर अख़्तियार करने वाले नेताओं को मैदान से नहीं हटाया तो ये बाग़ी उम्मीदवार पार्टी के अधिकृत प्रत्याशियों के लिए विजय की राह मुश्किल कर सकते हैं। राजनीति के पंडित बताते है कि एक दो दर्जन ऐसी सीटें हैं, जहां बागी उम्मीदवार दोनों दलों को हराने की ताकत रखते हैं। बागियों के और वोट कटाऊँ निर्दलियों के कारण इस बार कई सीटों पर त्रिकोणीय अथवा बहु कोणीय मुक़ाबला होने की सम्भावनाएँ बढ़ गई है।

अब यह देखना दिलचस्प होंगा कि कांग्रेस और भाजपा अपने कितने रूठें हुए उम्मीदवारों को मनाने में कामयाब होते हैं?

बागी उम्मीदवारों की सूची-

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