ट्रेन में और प्लेटफार्म पर…मास्क तो दिख रहे सोशल डिस्टेंसिंग नदारद है…

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कोरोना के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन को लेकर अब देश और प्रदेश में हलचल शुरु हो गई है। वैक्सीनेशन को सरकार प्राथमिकता दे रही है। मास्क लगाने, हैंड सेनेटाइज करने और सोशल डिस्टेंसिंग की अपील कर रही है। भय का है या सरकार की अपील का असर है लेकिन लोगों में मास्क को लेकर जागरूकता नजर आ रही है लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रही है।
अब अगर ओमिक्रॉन ने भूले बिसरे भी किसी के कंधे पर सवारी कर ली, तो पांच गुना से पांच सौ गुना फैलने में कितना समय लगेगा…यह सहज तौर पर ही समझा जा सकता है। गुरुवार को भोपाल स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर दो पर गाड़ी का इंतजार करते हुए मेरी नजर सरकार की अपेक्षाओं को धूमिल करते दृश्यों पर बरबस ही चली गई। सोशल डिस्टेंसिंग को ठेंगा दिखाने वाले दृश्यों को देखकर फिर दूसरी लहर का अफरातफरी का माहौल और स्वजनों की मौत पर शोकाकुलों की आंखों में आक्रोश और शोक का नजारा एक बार आंखों के सामने से गुजर गया।
जब सरकार और सरकारी सिस्टम, निजी अस्पतालों की लूट और डॉक्टरों की लापरवाही से मौत के आरोप के साथ बद्दुआएं देने और आहें भरने के दृश्य, ब्लैक में बिकते इंजेक्शन और दवाएं, ऑक्सीजन-वेंटीलेटर की किल्लत, लाख कोशिशों के बावजूद अस्पतालों में बेड न मिल पाना और श्मशान घाट में जलती चिताओं की भयावह तस्वीरें … सचमुच आज भी दिल को दहला देती हैं।
पुरानी यादें मन को कंपा देती हैं, जब मैं यहां स्टेशन पर गाड़ी में सवार होकर उस बच्चे का सामान हॉस्टल से वापस लेने जोधपुर जा रहा हूं, जिसे कोरोना की दूसरी लहर ने बड़ी निरंकुशता से हम सभी से छीन लिया था। जिसके माता-पिता की पिछले आठ महीने से जोधपुर एनएलआईयू तक जाने की हिम्मत नहीं हो पा रही थी। हमें भय का वह नजारा याद है जब कोरोना की दूसरी लहर के कहर के बीच सड़कों पर सुनसान होता था, तो बस स्टैंड, प्लेटफार्म और एयरपोर्ट पर सन्नाटा पसरा हुआ था।
चारों तरफ कोलाहल था तो सुनसान और सन्नाटे का ही था। अब बच्चे, बूढ़े और जवान सभी एक बार फिर से भीड़ का हिस्सा हैं और दूसरी लहर में मास्क लगाने की आदत  खत्म न हो पाने के चलते मास्क ने मुंह पर वापसी कर ली है लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग सिरे से नदारद है। और मास्क कितने भी लगाए जाएं लेकिन हम सभी को पता है कि बिना सोशल डिस्टेंसिंग के यदि कुछ बचने की गुंजाइश होती तो सरकारों को कंटेनमेंट जोन बनाने, बाजार बंद करने और आवागमन पर प्रतिबंध लगाने की शायद जरूरत न पड़ती।
अभी समय है, सरकार ही सोशल डिस्टेंसिंग मेंटेन करने का कुछ फरमान जारी कर दे वरना ओमिक्रॉन से बचने की ताकत हम नादान परिंदों में तो शायद नहीं ही है। हम तो इसी तरह शादियों में शिरकत करने का कोई मौका तब तक नहीं गवाएंगे, तब तक मौत का कोलाहल हमारे दरवाजे तक नहीं पहुंचेगा।
हम तब तक बाजार, मॉल , पर्यटन स्थलों, धार्मिक स्थलों, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन और एयरपोर्ट पर भीड़ का हिस्सा बनने का जज्बा बरकरार रखेंगे, जब तक हमारा कोई दिल का टुकड़ा हमसे बिछुडकर मातम मनाने की वजह नहीं बनेगा। सरकार आप हम सभी से ज्यादा समझदार हैं और सर्वशक्तिमान हैं। एक ऐसी व्यवस्था बना दीजिए जिसमें लोग मास्क लगाने के साथ ही गोलों में खडे़ होकर सामाजिक दूरी का पूरी तरह अनुशासित होकर पालन करने लगें। और ओमिक्रॉन को बेवजह हमारी जिंदगी में खलल डालने का सबब न बनने दें।
संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा है। तीन कृषि कानून वापस लिए जा चुके हैं। मध्यप्रदेश का पांच दिवसीय शीतकालीन सत्र 20 दिसंबर से है। कोरोना काल में कई सत्र प्रतीकात्मक तौर पर संपन्न होते रहे हैं। अब स्कूल खुल चुके हैं और निजी स्कूल खास तौर पर बच्चों को फिर ऑनलाइन क्लास का सुरक्षा चक्र इसलिए भी नहीं देना चाहते, क्योंकि इससे उनकी आर्थिक सेहत बहुत ज्यादा प्रभावित होती है।
व्यवसायी चाहते हैं कि उनकी पिछली दो लहरों की भरपाई हो, यह ज्यादा जरूरी है। पर यदि कहर का दुष्चक्र बेकाबू हुआ तो मानसिक तौर पर हम फिर वापसी करने की स्थिति में नहीं पहुंच पाएंगे। ऑक्सीजन प्लांट भले ही चालू रहें, लेकिन ऑक्सीजन लेने की हिम्मत ही जवाब दे जाएगी। दवाईयां मौजूद रहेंगीं, लेकिन खाने वाले हौसला खो देंगे। इसलिए स्टेशन के यह चित्र गवाही दे रहे हैं कि केंद्र-राज्य सरकार, प्रशासन, पुलिस सभी मिलकर जिम्मेदारी का निर्वहन करें, प्यार-दुलार से काम चलने वाला नहीं है…हमें सख्ती से ही प्यार करने की आदत है।
यह तस्वीरें गवाही दे रही हैं कि अगर ओमिक्रॉन ने दस्तक दी, तो भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर जैसे शहरों से शुरू होकर गांवों तक पहुंचने का रास्ता पूरी तरह से खुला है। कोई भी दूसरी लहर के कहर से रूबरू होने के लिए तैयार नहीं है। लेकिन खुद पर इतना नियंत्रण भी नहीं है कि घर से कदम तभी बाहर निकलें जब बहुत ही जरूरी हो।
“भय बिन होइ न प्रीति” से हम प्रदेश की आठ करोड़ जनता को बहुत ज्यादा प्रीति है और हमें पता है कि देश की जनता भी हमारे जैसी ही लापरवाह है…सो सरकार सख्ती करो,भय दिखाओ और ऐसी व्यवस्था जरूर बनाओ कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किए बिना हम घर से बाहर रहने की हिम्मत ही न जुटा सकें। क्योंकि ट्रेन में और प्लेटफार्म पर…मास्क तो दिख रहे सोशल डिस्टेंसिंग नदारद है… और यही हाल पूरे शहर, गांवों और प्रदेश का है।