जीत का रण-2, भोपाल-नर्मदापुरम और ग्वालियर-चंबल…
कौशल किशोर चतुर्वेदी
चुनाव प्रचार थम गया है और विधानसभा उम्मीदवारों की धड़कन बढ़ गई है। मालवा-निमाड़ सत्ता का द्वार खोलता है, तो ग्वालियर-चंबल क्षेत्र बनी हुई सरकार को सत्ता से बाहर करने का दम रखता है। 2018 विधानसभा चुनाव के बाद बनी सरकार में यह साबित हो चुका है। तो मध्यप्रदेश विधानसभा का इतिहास राजमाता विजयाराजे के समय भी इसका गवाह बन चुका है। ज्यादा इमोशनल होने की जरूरत नहीं है, लेकिन यह सच है कि सरकार बनाने में भोपाल-नर्मदापुरम संभाग के विधानसभा क्षेत्र और ग्वालियर-चंबल के विधानसभा क्षेत्र की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है।
भोपाल-नर्मदापुरम संभाग को मध्य प्रदेश का मध्य क्षेत्र भी कहा जाता है। मध्य क्षेत्र के दो संभागों (भोपाल और नर्मदापुरम) में आठ जिले और 36 विधानसभा सीटें हैं। इनमें से बुदनी, गोविंदपुरा और राघौगढ़ विधानसभा सीटों ने मध्यप्रदेश को मुख्यमंत्री दिए हैं। मध्य क्षेत्र में 1990 तक कांग्रेस मजबूत स्थिति में थी। उसके बाद हालात बदलने शुरू हुए और 2003 के बाद से कई सीटों पर कांग्रेस लगातार हारने लगी। ऐसे में भाजपा की स्थिति मजबूत होती चली गई। 2003 में भाजपा 29 सीटों पर जीती और कांग्रेस छह पर सिमटी थी। 2008 में बीजेपी को 27 सीटें मिली तो कांग्रेस की संख्या सात तक पहुंच गई। 2013 में बीजेपी 29 सीटों पर जीत गई और कांग्रेस केवल पांच सीटों पर फिर आ गई। वहीं 2018 में कांग्रेस का ग्राफ थोड़ा सुधरा और उसके 12 विधायक जीते, लेकिन भाजपा इससे दोगुनी 24 सीटें जीत गई। वोट प्रतिशत पर गौर करें तो भाजपा को 2003 में 49 प्रतिशत वोट मिले, जो क्रमश: घटते हुए 2008 में 46.09 प्रतिशत, 2013 में 46.12 प्रतिशत और 2018 में 45.09 प्रतिशत रह गया। हालांकि, वोट प्रतिशत कम होते जाने के बावजूद सीटों के मामले में भाजपा आगे रही।
वहीं ग्वालियर-चंबल संभाग के 8 जिलों में 34 विधानसभा सीटें हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में 34 में से 26 पर कांग्रेस को, सात पर बीजेपी को और एक बीएसपी को जीत मिली थी। ज्योतिरादित्य सिंधिया के पाला बदलने के बाद उपचुनाव में कांग्रेस ने अधिकांश सीटें गवां दी थी। 2018 विधान सभा चुनाव में ग्वालियर चंबल इलाके की विधान सभा की 34 में 26 सीटें कांग्रेस के हिस्से में आईं थीं। सात सीट भाजपा को मिली थी और एक सीट पर बसपा जीती थी। भाजपा ने 2020 में उपचुनाव के बाद अपनी ताकत सात से बढ़ाकर 16 कर ली थी। भाजपा ने 2008 और 2013 के चुनावों में ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन किया था जब उसने क्रमशः 37.24 और 37.96 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 16 और 20 सीटें जीती थीं। 2018 में इसका वोट शेयर घटकर 34.54 हो गया। इसकी तुलना में, कांग्रेस ने 2018 में अपना वोट शेयर बढ़ाकर 42.19 प्रतिशत कर लिया, जो 2008 में 28.68 प्रतिशत वोट शेयर से भारी वृद्धि थी, जब उसने केवल 13 सीटें जीती थीं। 2013 में कांग्रेस की हिस्सेदारी बढ़कर 35.57 फीसदी हो गई, हालांकि उसकी सीटें एक घटकर 12 रह गईं थीं।
भोपाल-नर्मदापुरम संभाग की 36 सीटें सरकार बनाने वाले दल के लिए शुभंकर मानी जा सकती हैं। तो ग्वालियर-चंबल संभाग की 34 विधानसभा सीटों को भी दरकिनार नहीं किया जा सकता। दोनों अंचल की 70 विधानसभा सीटें 2023 में सरकार किसकी बनाएंगी और किस दल के विधायकों का संख्या बल दूसरे दलों को मात देता है, यह अहम बात है। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की उम्मीदवारी से दिमनी विधानसभा सीट अति महत्वपूर्ण बन गई है। तो इस बात पर भी सबकी निगाहें हैं कि ग्वालियर-चंबल में ज्योतिरादित्य सिंधिया कितनी ज्योति बिखेर पाते हैं। यह तय है कि 2023 विधानसभा चुनाव में सरकार बनाने में भोपाल-नर्मदापुरम और ग्वालियर-चंबल अंचल ही बल देने वाला है…।