झूठ बोले कौआ काटे! आस्था-विज्ञान का संगम, हठ योग का पर्व छठ

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झूठ बोले कौआ काटे! आस्था-विज्ञान का संगम, हठ योग का पर्व छठ

मुंबई हो, सूरत, दिल्ली या सरहिंद, दो-चार दिन पहले तक बिहार-झारखंड और उत्तर प्रदेश की ओर जाने वाली ट्रेनों में मारामारी चल रही थी। घर जाने की आपाधापी में कहीं प्लेटफॉर्म पर भगदड़ में कोई मर गया तो कहीं पथराव और बवाल हो गया। आज से शुरू सूर्योपासना के पर्व छठ में घर पहुंचने की जल्दी सबको जो थी। इस पर्व को इस्लाम सहित अन्य धर्मावलंबी भी मनाते देखे जाते हैं। छठ पर्व को हठ योग भी कहा जाता है। छठ की सबसे बड़ी विशेषता है इस पर्व की सादगी, पवित्रता और प्रकृति के प्रति प्रेम। धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के साथ ही यह पर्व सीधे वैज्ञानिकता से जुड़ा है।

छठ पर्व की प्रचलित अंतर्कथाओं को जितनी बार भी पढ़ें-जानें, लगता है कि फिर भी कम है। महाभारत के अनुसार, सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ही सूर्य देव उपासक थे। कर्ण का संबंध बिहार के भागलपुर से है। कर्ण प्रतिदिन स्नान करने के बाद सूर्य देवता को जल अर्पित करते थे। इसके बाद से ही बिहार में छठ पूजा मनाने की परंपरा शुरू हुई। प्राचीन धर्मग्रंथों के अनुसार अंग जनपदीय यह क्षेत्र प्राचीन काल से ही सूर्योपासना की स्थली रही है।

एक अन्य कथा के अनुसार, महाभारत काल में जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत किया। इससे उनकी मनोकामनाएं पूर्ण हुईं तथा पांडवों को राजपाट वापस मिल गया। छठ महापर्व का उल्लेख रामायण काल में भी मिलता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान राम सूर्यवंशी थे जिनके कुलदेवता सूर्य देव थे। लंका से रावण वध के बाद जब भगवान राम और सीता अयोध्या लौटने लगे तो पहले उन्होंने सरयू नदी के तट पर अपने कुल देवता सूर्य की उपासना की और व्रत रखकर डूबते सूर्य की पूजा की। यह तिथि कार्तिक शुक्ल की षष्ठी थी। अपने भगवान को देखकर वहां की प्रजा ने भी यह पूजन आरंभ कर दिया। ऐसा माना जाता है तब से छठ पूजा की शुरुआत हुई।

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एक पौराणिक मान्यता है कि देव माता अदिति ने छठ पूजा की शुरुआत की थी। इसके अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य के देव सूर्य मंदिर में छठी मैया की आराधना की थी। तब प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था। इसके बाद अदिति के पुत्र हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी। कहते हैं कि उसी समय से षष्ठी देवी के नाम पर इस धाम का नाम देव हो गया और छठ का चलन भी शुरू हो गया।

एक और पौराणिक कथा के अनुसार राजा प्रियंवद को कोई संतान नहीं थी, तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनायी गयी खीर दी। इसके प्रभाव से उन्हें पुत्र हुआ परन्तु वह मृत पैदा हुआ। प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान गये और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त ब्रह्माजी की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुईं और कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूँ। हे! राजन् आप मेरी पूजा करें तथा लोगों को भी पूजा के प्रति प्रेरित करें। राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी।

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छठ पर्व का व्रत एक बहुत ही कठिन तपस्या के समान है, इसीलिए इसे हठ योग भी कहते हैं। छठ व्रती अधिकतर महिलाएं ही होती हैं, लेकिन अनेक पुरुष भी यह व्रत रखते हैं क्योंकि यह लिंग प्रधान पर्व नहीं है। छठ पर्व को शुरू करने के बाद सालों-साल तब तक करना होता है, जब तक कि अगली पीढ़ी की कोई विवाहित महिला इसके लिए तैयार न हो जाए।

झूठ बोले कौआ काटेः

पौराणिक मान्यताएं चाहे जो भी हों छठ एक ऐसा पर्व है जो वैदिक काल से चला आ रहा है। इसमें कोई मूर्तिपूजा शामिल नहीं है। उगते सूर्य को अर्घ्य देने की रीति तो कई व्रतों और त्योहारों में है, लेकिन डूबते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा केवल छठ पर्व में है। इससे एक बात ग्रहणीय है- प्रभुत्वशाली के साथ-साथ प्रभुत्वहीन या अस्तित्व के अवसान पर चल रहे व्यक्ति, इन दोनों का समादर होना चाहिए।

मैं पांच साल नौकरी में तैनाती के दौरान बिहार के मुजफ्फरपुर और भागलपुर में रहा। बड़ी गंडक और गंगा नदी के विभिन्न घाटों पर उत्सवी माहौल में क्रमशः उगते एवं डूबते सूर्य को अर्घ देने का मनमोहक नजारा देखा, आरती की और अंत में सहकर्मी छठव्रती के घर प्रसाद ग्रहण करने का सौभाग्य भी पाया। दावे से कह सकता हूं कि धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के साथ ही यह पर्व सीधे वैज्ञानिकता से जुड़ा हुआ है।

बिहार मे छठ पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, यूं कह सकते हैं कि बिहार कि संस्कृति बन चुका हैं। हालांकि, अब तो इसकी धूम अनेक राज्यों से लेकर विदेशों तक में व्याप्त हो चुकी है। श्रद्धालु साल भर पहले से ही छठ की तैयारी करने लगते हैं। हर दिन-हफ्ते या महीने अपनी सामर्थ्यानुसार कुछ पैसा छठी मैया के नाम पर गुल्लक में अलग जमा करते जाते हैं। फिर क्या छोटा क्या बड़ा, क्या अमीर क्या गरीब, कार्तिक शुक्ल चतुर्थी आते-आते इन घरों में दीपावली की रौनक और खुशनुमा हो जाती है।

घर के बाहर अन्यत्र रहने वाले परिजनों की कोशिश होती है कि दीपावली के साथ ही छठ पर्व भी न छूटे। घर-परिवार के लोग, यार-दोस्त पूछने लगते हैं कि कब आ रहे हो, नदी-पोखर की साफ सफाई चल रही, पर घाट तो तुम्हें ही बनाना है। डाला-सूप, कद्दू, गन्ना, फल-फूल, आटा आदि-इत्यादि सबका इंतजाम हो चुका, ठेकुआ भी तब तक बन जाएगा।

बोले तो, प्रकृति के संरक्षण के साथ-साथ यह पर्व कद्दू, आंवला, मकोई, मूंगफली जैसे फलों का महत्व बताते हुए इनके संरक्षण का संदेश देता है। अदरक, मूली, गाजर, हल्दी जैसी गुणकारी सब्जियों से अर्घ् दिया जाता है, जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। साथ ही साफ-सफाई पर भी ध्यान दिया जाता है, जो हमें विभिन्न बीमारियों से बचाता है। इस तरह, यह पर्व नदियों को प्रदूषण मुक्त बनाने की प्रेरणा देता है।

छठ पूजा के अनुष्ठान के दौरान गाया जाने वाला पारंपरिक गीत ‘केरवा जे फरेला घवध से ओहपर सुग्गा मंड़राय, सुगवा जे मरवो धनुख से सुग्गा जइहें मुरझाए..,रोएली वियोग से, आदित्य होख ना सहाय..,’ जैसे गीत इस बात को दर्शातें हैं कि लोग पशु-पक्षियों के संरक्षण की याचना कर उनके अस्तित्व की रक्षा के प्रति भी संवेदनशील हैं।

चार दिनों के इस व्रत में व्रती को लगातार उपवास करना होता है और भोजन के साथ ही आरामदेह बिस्तर, नियमित वस्त्र का भी त्याग किया जाता है। पहले दिन अर्थात् ‘नहाय खाय’ के दिन कद्दू खाने के पीछे धार्मिक मान्यताओं के साथ-साथ वैज्ञानिक महत्व भी है। कद्दू खाने से शरीर को कई तरह के पोषक तत्व मिलते हैं। कद्दू में पर्याप्त मात्रा में एंटी-ऑक्सीडेंट और पानी पाया जाता है। इसके अतिरिक्त यह हमारे शरीर में शुगर लेवल को भी बनाए रखता है। कद्दू को इम्यूनिटी बूस्टर के तौर पर खाया जाता है जो व्रत रखने वालों को 36 घंटे तक उपवास रखने में मदद करता है।

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36 घंटे का कठोर निर्जला उपवास (इसीलिए, इसे हठयोग कहा जाता है) शरीर के लिए बहुत फायदेमंद है। इससे शरीर शुद्ध होता है। इतना ही नहीं, यह विटामिन डी की कमी को भी पूरा करता है। कार्तिक माह में सूर्य की किरणों में प्रचुर मात्र में विटामिन डी का समावेश होता है, जो कैल्शियम अवशोषण के लिए महत्वपूर्ण तत्व है। वैज्ञानिकों का मानना है कि कमर तक पानी में डूबकर सूर्य की ओर देखना स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है। इससे टॉक्सिफिकेशन की प्रक्रिया होती है। पानी में खड़े होकर अर्घ् दिया जाता है। इससे सूर्य की किरणों में 16 कलाएं होती हैं। जैसे रिफ्लेक्शन, रिफ्रेक्शन, डेविस्मन, स्कैटरिंग, डिस्पर्शन, वाइब्रेशन इत्यादि। लोटे से आड़े तिरछे जल की धारा से सूर्य की किरणें परावर्तित होकर जितनी बार आंखों तक पहुंचती हैं, उससे स्नायुतंत्र जो शरीर को नियंत्रित करते हैं, सक्रिय हो जाता है। दिमाग की कार्य क्षमता बढ़ जाती है।

ठेकुआ छठ महापर्व का प्रसाद है। ठेकुआ के बिना पूजा पूरी नहीं मानी जाती है। लोग इसे चाव से खाते भी हैं, मुझे तो बहुत पसंद है। ठेकुआ को ठेकरी और खजूरिया के नाम से भी जाना जाता है।

छठ पूजा में छठी मइया का यह मन्त्र बोला जाता है-

ॐ सूर्य देवं नमस्ते स्तु गृहाणं करूणा करं |

अर्घ्यं च फ़लं संयुक्त गन्ध माल्याक्षतै युतम् |

और ये भी गजबः

बिहार के गोपालगंज के हजियापुर गांव की रेहाना खातून के छठ व्रत का यह तीसरा वर्ष होगा। इश्तेखार मियां की पत्नी रेहाना पिछले साल नहाय-खाय पर रेहाना छठी मइया के गीत गुनगुना रही थीं। आंगन में प्रसाद के लिए गेहूं सूख रहा था। रेहाना ने तीन वर्ष पहले घाट पर जाकर छठी मइया से अपना घर बनवा देने की मनौती मांगी थी। मनौती पूरी हो गई। उसके बाद से वह भी छठ करने लगीं। रेहाना के अनुसार, जब भी घर में काम लगाने की कोशिश होती थी तो कोई न कोई विपदा आ जाती थी। अब, अनुष्ठान से उनके स्वजनों को भी परेशानी नहीं। वहीं इसी गांव की मलिका खातुन का कहना है कि यहां पर कई ऐसे परिवार हैं, जो छठ पूजा पहले से करते आ रहे हैं। इन्हीं में से एक सहाना खातुन के अनुसार, सालों से बेटा नहीं हो रहा था। किसी ने बताया कि छठ घाट पर जाकर मन्नत मांगने से मुरादें पूरी होती हैं। कोविड काल में छठ घाट पर पहुंची, मन्नत मांगी, जिसके बाद मन्नत पूरी होने पर छठ व्रत शुरू किया।

छपरा की वार्ड पार्षद नरगिस बानो पिछले 11 साल से छठ की पूजा अपने तरीके से करती आ रही हैं। वह पड़ोस में छठ करने वाली हिंदू महिला के घर पैसे दे आती हैं, ताकि उनके लिए अलग से प्रसाद तैयार हो जाए। छठ के दोनों अर्घ्य के दिन तब तक उपवास रहती हैं, जब तक सूर्य को अर्घ्य न दे दिया जाए। सपरिवार छठ घाट जाती हैं और अपने तरीके से करती हैं सूर्य को प्रणाम। नरगिस की दादी भी छठ पूजा किया करती थीं।

बिहार के अलग-अलग इलाक़ों में ऐसी मुस्लिम महिलाएं और ऐसे परिवार बड़ी संख्या में मिल जाएंगे। फिर चाहे वह गोपालगंज के शेर गांव की एक दर्जन से अधिक मुस्लिम महिलाएं हो, जिनकी मन्नत छठी मैया ने पूरी कर दी या फिर मधेपुरा के बेलो पंचायत के मोहम्मद सलाउद्दीन का परिवार, जिनकी मां मानती हैं कि छठी मैया ने ही उनके बेटे को नदी में डूबने से बचाया था।