From the Eyes of A Young IPS Officer: 1977 का अविस्मरणीय चुनाव
प्रोबेशनर IPS के रूप मैंने आपातकाल के पश्चात हुए चुनावों के आश्चर्यजनक और ऐतिहासिक परिणामों को बहुत निकट से अनुभव किया है। उसकी स्मृति आज भी यथावत है। दिनांक 21 मार्च (जब दिन और रात ठीक बराबर होते हैं), 1977 को मेरी ड्यूटी खंडवा कलेक्ट्रेट के प्रांगण में लगी थी जहाँ मतगणना की जानी थी। बहुत सुबह मेरे सहित सभी अधिकारी और पुलिस बल कलेक्ट्रेट पहुँच गए थे। सर्किल इंस्पेक्टर श्री चौबे ने प्रोबेशनर होने के नाते मेरी ड्यूटी बाहर के गेटों पर अपेक्षाकृत कम संवेदनशील स्थानों पर लगायी थी। अन्दर मतगणना भवन के प्रवेश द्वार पर अनुभवी कोतवाली प्रभारी उप निरीक्षक आर के शुक्ला और इंदौर से आए एक असिस्टेंट कमांडेंट की ड्यूटी लगी थी। थोड़ी देर बाद मतगणना में लगे सिविल कर्मचारी, अधिकारी, पार्टी एजेंट और उम्मीदवार आना शुरू हो गये। आठ बजे कलेक्टर श्री अशोक विजयवर्गीय के पर्यवेक्षण में मतगणना प्रारंभ हो गई।
तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने 25 जून, 1975 को आपातकाल घोषित कर दिया था, जो मतगणना की रात तक लगा रहा। मीसा के अंतर्गत असामाजिक तत्वों के साथ-साथ विपक्ष के सभी छोटे-बड़े नेता 19 महीनों के लिए जेल में डाल दिए गए। समाचार पत्रों में लगी सेंसरशिप के कारण मुझे पुलिस अकादमी हैदराबाद और उसके बाद खंडवा में जिला ट्रेनिंग के समय देश के हालातों का कुछ पता नहीं था। जनवरी, 1977 में जेल में बंद नेताओं को छोड़ा गया और 10 फ़रवरी, 1977 को आम चुनाव की अधिसूचना जारी कर दी गई। बाबू जगजीवन राम और हेमवती नन्दन बहुगुणा कांग्रेस छोड़ चुके थे। चुनाव प्रचार में नसबंदी में हुई ज़्यादतियों और मीसा बंदियों के परिवारों की दुर्दशा के समाचार प्राप्त हुए। परन्तु मेरे सहित सभी अधिकारी इंदिरा गाँधी को अपराजेय समझते थे।
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खंडवा में कांग्रेस ने सांसद श्री गंगा चरण दीक्षित को फिर से अपना उम्मीदवार बनाया। विरोधी दलों की नवगठित जनता पार्टी ने परमानंद गोविंदजीवाला को अपना उम्मीदवार बनाया। कांग्रेस सांसद दीक्षित जी SP ऑफिस में मीसा बंदियों की सिफ़ारिश करने के लिए आते रहते थे इसलिए मेरी उनसे जान पहचान हो गई थी। पूरे देश में मतदान 16-20 मार्च के बीच में सम्पन्न हुआ और अगले दिन ही मतगणना प्रारंभ हो गई।
बाहरी गेटों के आस-पास होने के कारण मुझे मतगणना की कोई जानकारी प्राप्त नहीं हो रही थी। 11 बजे तक कुछ रुझान आने की सूचना दबे स्वरों में आयी। सम्भवतः मतगणना में गंभीर वातावरण बन जाने से कोई एजेंट बाहर नहीं आ रहा था। 12 बजे के क़रीब मैं कलेक्टर साहब के पीछे के चैम्बर में गया जहाँ वो कुछ मिनट के लिए आए, परन्तु उन्होंने मुझे कुछ नहीं बताया और चले गए। लगभग दो बजे एक स्थानीय संवाददाता ने गेट के पास आकर बताया कि वह ट्रांजिस्टर पर BBC की ख़बर सुनकर आ रहा है। उसने बताया कि जगह-जगह कॉंग्रेस पार्टी पीछे चल रही है और रायबरेली से इंदिरा गाँधी और अमेठी से संजय गांधी पीछे चल रहे हैं। मेरे सहित किसी पुलिस अधिकारी ने उस पर विश्वास नहीं किया। कुछ ही घंटों में बहुत से लोगों ने आकर यही बात दोहराई। मतगणना भवन से भी श्री दीक्षित के पीछे होने की सूचना आती रही। देर रात तक स्पष्ट हो गया कि दक्षिण भारत की भारी विजय के बावजूद कांग्रेस बुरी तरह से पराजित हो गई है। मेरे सहित पूरे देशवासियों में एक विचित्र विस्मय छा गया। जनता पार्टी और उसके सहयोगी दलों को 345 सीटों के साथ लोक सभा में भारी बहुमत प्राप्त हुआ।
अगली सुबह बिना आपातकाल की थी। परमानंद गोविंदजीवाला का विजयी जुलूस खंडवा शहर में निकला जिसमें मैं जुलूस के आगे की पुलिस व्यवस्था कर रहा था। 23 मार्च को भारत की छँठवीं लोक सभा का विधिवत गठन हुआ और 24 मार्च, 1977 को भारत के प्रथम गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री के रूप में मोरारजी देसाई ने पद की शपथ ली।
उसी संध्या को कलेक्टर श्री अशोक विजयवर्गीय के निवास पर उनके साथ मैं और पुलिस अधीक्षक श्री बी एल तारन देश में हुए क्रांतिकारी परिवर्तन पर आश्चर्य कर रहे थे।