नेता प्रतिपक्ष का चुनाव हारना कहीं परंपरा न बन लाए?
भोपाल। राजनीति में मिथक बनते भी है और टूटते भी है। प्रदेश के चुनावी राजनीति पर अगर एक नजर डाले तो नेता प्रतिपक्ष रहते हुए विक्रम वर्मा और अजय सिंह विधानसभा का चुनाव हार चुके है। लहार विधानसभा क्षेत्र से नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस के उम्मीदवार डॉक्टर गोविंद सिंह मतगणना से पहले जिस तरह से मुखर है उससे साफ जाहिर होता है कि वह हार- जीत के गुणा को लेकर बहुत ज्यादा संतुष्ठ नहीं है। मतदान के बाद से कांग्रेस उम्मीदवार गोविंद सिंह जिला निर्वाचन अधिकारी की कार्यशैली को लेकर लगातार सवाल उठा रहे है। जबकि इससे पहले के अगर विधानसभा चुनावों पर नजर डाले तो नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह चुनाव के हार- जीत को लेकर बहुत मुखर नहीं रहते थे।
गौरतलब है कि वर्ष 1998 के विधानसभा चुनाव में नेता प्रतिपक्ष रहते हुए भाजपा के कद्दावर नेता विक्रम वर्मा विधानसभा का चुनाव हार गए थे। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय सिंह भी नेता प्रतिपक्ष रहते हुए वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव हार गए थे। 17 नवंबर को हुए मतदान के बाद से ही नेता प्रतिपक्ष भिंड जिले के जिला निर्वाचन अधिकारी संजीव श्रीवास्तव की कार्यशैली को लेकर निर्वाचन आयोग से शिकायत भी किये थे। मतदान से वंचित शासकीय कर्मचारियों के पोस्टल वैलेट से मतदान कराने के लिए आयोग से मांग भी की थी। गोविंद सिंह की शिकायत थी कि बगैर जानकारी के अधिकारी मतपेटी को खोलकर बंडल बनाए है जो पूरी तरह से गैरकानूनी है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी नेताप्रतिपक्ष की शिकायत को गंभीरता से लेते हुए भारत निर्वाचन आयोग से पत्र लिखकर वंचित कर्मचारियों का मतदान कराने के लिए मांग किए है। राजनीति के जानकारों का कहना है कि नेता प्रतिपक्ष डॉक्टर गोविंद सिंह का चुनाव से लंबा नाता रहा है। चुनावी गुणा गणित को देखते हुए लहार क्षेत्र से सात बार के विधायक रह चुके है। लेकिन इससे पहले वह चुनावी गणित को लेकर इतना ज्यादा विचार- मंथन नहीं करते थे। लहार विधानभा क्षेत्र में बीजेपी 1985 में अपना परचम लहरायी थी। लेकिन उसके बाद से ही बीजेपी के लिए यह सीट किसी चुनौती से कम नहीं रही। बीजेपी ने इस सीट को जीतने के लिए लहार में अंबरिश शर्मा को मैदान में उतारा है।