त्वरित टिप्पणी: थकी, बूढी और निस्तेज कांग्रेस में नई ऊर्जा भरने की कोशिश!
हेमंत पाल
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद से ही प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ को बदले जाने की चर्चा गरम थी। लेकिन, इंतजार किया जा रहा था कि ये बदलाव कब होता है। क्योंकि, कमलनाथ कुर्सी छोड़ने के मूड में नजर नहीं आ रहे थे। उन्होंने राजनीति से रिटायर न होने की घोषणा तक की थी। लेकिन, पार्टी ने लोकसभा चुनाव की निकटता को देखते हुए जो किया वो होना ही था। कमलनाथ की जगह जीतू पटवारी को पार्टी अध्यक्ष बना दिया गया और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष आदिवासी नेता उमंग सिंघार को बनाया गया। जबकि, उपनेता (प्रतिपक्ष) हेमंत कटारे होंगे। ये तीन युवा नेता जातीय समीकरणों को भी संतुलित करेंगे। जीतू पटवारी ओबीसी हैं, उमंग सिंघार आदिवासी और हेमंत कटारे ब्राह्मण समुदाय से आते हैं और इस बार अटेर विधानसभा सीट से चुनाव जीते हैं। खास बात यह कि जीतू पटवारी और उमंग सिंघार को राहुल गांधी के काफी नजदीक माना जाता है।
तीनों युवा हैं जो पार्टी के बूढ़े और थके नेताओं लेंगे। पिछली विधानसभा में डॉ गोविंद सिंह नेता प्रतिपक्ष थे, वे भी उम्रदराज हैं। इस बार तो वे चुनाव ही हार गए। प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए जीतू पटवारी अभी तक कार्यकारी अध्यक्ष भी थे। वे चुनाव जीत नहीं सके, फिर भी पार्टी ने उन पर भरोसा जताया है। उमंग सिंघार धार जिले की गंधवानी सीट से लगातार चौथी बार चुनाव जीते हैं। उनका नाम लम्बे समय से चर्चा में था। उन्हें ये बड़ी जिम्मेदारी देकर कांग्रेस ने आदिवासियों को भी साधने की कोशिश की है। हेमंत कटारे भी चुनाव जीते हैं।
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद तरह के बदलाव के कयास लगाए जा रहे थे, आखिर वह हो गया। जबकि, इस बदलाव के चंद घंटे पहले कमलनाथ ने कहा था कि मैं अभी फिर रिटायर नहीं हो रहा। वे भले राजनीति से रिटायर नहीं हो रहे, पर पार्टी ने उन्हें अध्यक्ष पद से रिटायर करके नया अध्यक्ष नियुक्त कर दिया।पटवारी भले विधानसभा चुनाव हार गए, पर पार्टी ने उनकी काबिलियत का सम्मान किया। वे पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष जरूर थे, पर कमलनाथ ने कभी उन्हें तवज्जो नहीं दी। बीच में यह भी विवाद उठा था कि क्या वे कार्यकारी अध्यक्ष नहीं है। इसका जवाब भी जीतू पटवारी ने दिया था कि मुझे हटाया नहीं गया, इसलिए मैं कार्यकारी अध्यक्ष हूं और अब पार्टी ने उन्हें का कमलनाथ वाली कुर्सी दे दी।
आज का पार्टी का यह संभावित था। क्योंकि पार्टी जिस तरह के बूढ़े, थके, चुके और निस्तेज नेतृत्व की वजह से विधानसभा चुनाव हारी थी, तो यह बदलाव होना जरुरी था। इसके अलावा पार्टी की हार का सबसे बड़ा कारण संगठनात्मक कमजोरी भी माना गया। विधानसभा चुनाव में जिस तरह के लोगों को चुनाव लड़ाया गया, उस पर भी विवाद हुआ था। बाद में कई टिकट बदले भी गए। कई ऐसे लोगों को चुनाव लड़वाया गया, जिनके जीतने की संभावना बिल्कुल नहीं थी। इसके अलावा उम्मीदवारों की घोषणा के बाद उन्हें जिस तरह उम्मीदवारों को अकेला छोड़ा गया, वो भी पार्टी की नजर में आया। ऐसी सीटें जहां त्रिकोणीय मुकाबला था या पार्टी में विद्रोह हुआ वहां भी कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों पर ध्यान नहीं दिया।
कमलनाथ के नेतृत्व को लेकर कई बार पार्टी के अंदर से भी आवाज उठी कि वे किसी की नहीं सुनते! लेकिन, दिल्ली दरबार में उनकी जमावट ऐसी थी कि उन्हें बदले जाने पर कभी विचार नहीं किया गया। वे 6 साल से इस कुर्सी पर थे। अभी भी शायद वे हटने को राजी नहीं थे। लेकिन, पार्टी ने महसूस कर लिया कि यदि पार्टी को लोकसभा चुनाव में कुछ अच्छा करना है, तो उसे युवाओं को मौका देना होगा। लेकिन, पार्टी ने फैसला करने में देर कर दी। यदि यही फैसला सालभर पहले लिया गया होता, तो विधानसभा चुनाव में हार-जीत का आंकड़ा कुछ और होता!
जीतू पटवारी को अध्यक्ष बनाए जाने के बाद कांग्रेस ने दूसरा सही फैसला नेता प्रतिपक्ष के रूप में उमंग सिंघार को लेकर किया। ऊर्जावान और चार बार एक ही सीट (गंधवानी) से विधानसभा चुनाव जीतने वाले इस आदिवासी नेता की अपने वर्ग में अच्छी पकड़ है। वे कांग्रेस की फायरब्रांड नेता स्व जमुना देवी के भतीजे हैं और उनकी ही तरह आग उगलने में माहिर भी। परिवार से उन्हें मिला ये गुण विधानसभा में भाजपा सरकार की घेराबंदी में मददगार साबित होगा।
इसे संयोग ही कहा जाना चाहिए कि प्रदेश में धार जिले को चौथा नेता प्रतिपक्ष देने का अवसर मिला है। 1967 में संविद सरकार के बाद धार के ही बसंतराव प्रधान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बने थे। 1967 में वे भारतीय जनसंघ के सदस्य बने और सन 1967 के चुनाव में विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए। संविद शासनकाल में वित्त मंत्री रहे। इसके बाद 1993 से 1998 तक भाजपा के विक्रम वर्मा को नेता प्रतिपक्ष बनने का मौका मिला। कांग्रेस की जमुना देवी लगातार 7 साल तक (2003 से 2010) नेता प्रतिपक्ष रहीं। अब उनके भतीजे उमंग सिंघार को अपनी बुआ की कुर्सी संभालने का पार्टी ने अवसर दिया है। दो नेता (बसंतराव प्रधान और विक्रम वर्मा) अविभाजित मध्यप्रदेश के समय इस पद पर रहे और बुआ के बाद अब भतीजे को पार्टी ने इस भूमिका के लिए चुना।