भाजपा -कांग्रेस में कई नेताओं के राजनीतिक भविष्य पर संशय,चुनाव ने बिगाड़ दी, कई नेताओं की सक्रियता की चाल

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भाजपा -कांग्रेस में कई नेताओं के राजनीतिक भविष्य पर संशय,चुनाव ने बिगाड़ दी, कई नेताओं की सक्रियता की चाल

भोपाल: प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव ने भाजपा और कांग्रेस के कई बड़े नेताओं के राजनीतिक भविष्य को लेकर अब संशय खड़ा कर दिया है। कांग्रेस में तो दो दिग्गज नेता ऐसे हैं, जो अब मध्य प्रदेश की राजनीति में सक्रिय भी रहेंगे या नहीं इसे लेकर भी पूरी पार्टी में चर्चा बनी हुई हैं। वहीं भाजपा में दूसरी पंक्ति के कई नेता ऐसे हैं जिनका राजनीतिक भविष्य को लेकर अब सवाल खड़े हो गए हैं। इनमें से कई उम्र के कारण तो कुछ चुनाव हारने के कारण अब सक्रिय बने रहेंगे या नहीं इसे लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है।
कांग्रेस
कमलनाथ- पीसीसी चीफ के पद से हटने के बाद अभी इनकी अगली भूमिका तय नहीं हैं। परम्परागत लोकसभा सीट पर बेटा नकुल नाथ के चुनाव लड़ने की ज्यादा संभावना है। वे 77 साल के हो चुके हैं।

दिग्विजय सिंह- राज्यसभा के सदस्य हैं, लेकिन इस बार पार्टी को मिली हार के बाद उनकी प्रदेश में सक्रियता को लेकर संशय बना हुआ है।
डॉ. गोविंद सिंह- पूर्व नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह लहार से इस बार चुनाव हार गए। इसके बाद उन्होंने ऐलान कर दिया कि वे अब कभी विधानसभा का चुनाव नहीं लडेंगे।

एनपी प्रजापति- विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष रहें, लेकिन पार्टी ने इस बार उनका टिकट काट दिया था, बाद में उम्मीदवार बनाया। उम्र के इस पड़ाव में चुनाव हार गए।

मुकेश नायक- चार दशक पहले सबसे ताकतवर छात्र नेता रहे नायक लगातार दो चुनाव हार चुके हैं। उनकी राजनीतिक सक्रियता को लेकर भी अब पार्टी तय करेगी।

सुरेंद्र चौधरी- कांग्रेस के अनुसूचित जाति विभाग को लंबे समय से लीड करने वाले चौधरी लगातार चुनाव हारते रहें हैं। उन्हें पार्टी ने कार्यवाहक प्रदेश अध्यक्ष भी बनाय था, लेकिन फिर चुनाव हार गए।

केपी सिंह कक्का जू- पिछोर से हमेशा चुनाव लड़ने वाले कक्काजू ने इस बार सीट बदल कर शिवपुरी से किस्मत आजमाई, लेकिन हार गए। अब उनके राजनीतिक भविष्य को लेकर भी संशय बना हुआ है।

पीसी शर्मा- कांग्रेस के 70 उम्र पार करने वाले नेताओं में शुमार पीसी शर्मा का विधानसभा का यह चुनाव अंतिम माना जा रहा है। वे अब तक दो ही चुनाव जीत सकें हैं, हालांकि वे भोपाल शहर के सबसे कद्दावर नेताओं में शुमार हैं।
लक्ष्मण सिंह- पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के छोटे भाई चाचौड़ा से चुनाव हार गए। हार का अंतर भी बहुत बढ़ा रहा। बयानों के कारण हमेशा सुर्खियों में रहे।

सज्जन सिंह वर्मा- सोनकच्छ विधानसभा से चुनाव हार गए। कमलनाथ के करीबी माने जाने वाले वर्मा 65 साल की उम्र को पार कर चुके हैं। ऐसे में उनकी राजनीति में कितनी सक्रियता रहेगी या भी अब भविष्य के गर्त में है।
भाजपा
फग्गन सिंह कुलस्ते- केंद्रीय मंत्री कुलस्ते को भाजपा ने निवास विधानसभा से मैदान में उतारा था। वे चुनाव हार गए, 63 वर्षीय कुलस्ते का अब लोकसभा का टिकट भीआसानी से नहीं होगा।

गणेश सिंह- सांसद सिंह को पार्टी ने सतना विधानसभा से उम्मीदवार बनाया गया था, वे भी चुनाव हार गए, 61 वर्षीय सिंह का भीअब लोकसभा टिकट आसानी से नहीं होगा।

उमाशंकर गुप्ता- पूर्व मंत्री उमाशंकर गुप्ता भोपाल की दक्षिण पश्चिम सीट से टिकट चाहते थे,लेकिन पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया। अब सक्रिय राजनीति में उनके भविष्य को लेकर संशय बना हुआ है।

गौरशंकर बिसेन – विधानसभा चुनाव के दो महीने पहले उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल किया गया। वे टिकट नहीं चाहते थे, लेकिन ऐन वक्त पर बी फार्म उन्होंने ही बालाघाट सीट से भरा,चुनाव हार गए।

केदारनाथ शुक्ला- सीधी से कई बार विधायक रहे। इस बार पार्टी ने उनका टिकट काट कर रीति पाठक को टिकट दिया, शुक्ला निर्दलीय चुनाव लड़े, पार्टी ने भी उन्हें बाहर कर दिया।

इमरती देवी- केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की समर्थक इमरती देवी उपचुनाव के बाद यह चुनाव भी हार गई। लगातार दो चुनाव हारने के बाद अब उनका भी सक्रिय राजनीति से कितना नाता रहेगा, यह कहना अभी मुश्किल भरा है।
माया सिंह- पूर्व मंत्री माया सिंह को इस बार पार्टी ने ग्वालियर पूर्व से उम्मीदवार बनाया था, 73 वर्षीय माया सिंह का यह अंतिम चुनाव माना जा रहा है।

रामपाल सिंह- पूर्व मंत्री रामपाल सिंह 67 वर्ष के हो चुके हैं। वे चुनाव हार गए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के समर्थक हैं, लेकिन अब राजनीतिक सक्रियता को लेकर संशय बना हुआ है।
अंतर सिंह आर्य- पूर्व मंत्री अंतर सिंह आर्य 64 वर्ष के हो चुके हैं। वे इस बार सेंधवा सीट से चुनाव लड़े थे।
प्रेम सिंह पटेल- बड़वानी से पांच बार चुनाव जीतने वाले प्रेम सिंह पटेल इस बार चुनाव हार गए।उनकी उम्र 67 वर्ष हो चुकी है।

सुदर्शन गुप्ता- इंदौर एक से विधायक रह चुके सुदर्शन गुप्ता अब 64 वर्ष के हो चुके हैं। इस बार उन्हें टिकट नहीं मिला है। वे दो बार विधायक रह चुके हैं।

नाना भाऊ माहोड़- इस बार सौंसर से चुनाव लड़े थे। चुनाव हार गए, वे 69 वर्ष के हो चुके हैं।
इनका राजनीतिक भविष्य भी संकट में
इन नेताओं के अलावा भी कई ऐसे नेता और पूर्व विधायक हैं, जिनका राजनीतिक भविष्य इस चुनाव के बाद संकट में दिखाई दे रहा है। उनमें कांग्रेस के हुकुम सिंह कराडा, विजयलक्ष्मी साधौ, गिरीजा शंकर शर्मा, सुरेंद्र चौधरी, अरुणोदय चौबे, राजकुमार पटेल की भी भविष्य में राजनीति में कितनी सक्रियता रहेगी यह भी सवालों के घेरे में है। वहीं भाजपा के शंकर लाल तिवारी, अचल सोनकर, रंजना बघेल सहित कुछ अन्य नेता हैं जिन अगली भूमिका क्या होगी यह पार्टी को तय करना होगा।

अरुण याादव तलाश रहे भूमिका
इधर प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव को भी अपनी नई भूमिका तलाशना होगी। युवा नेता ओबीसी से आते हैं, इस वर्ग से आने वाले जीतू पटवारी को पीसीसी चीफ बनाया गया है। ऐसे में अब उन्हें अपनी नई भूमिका की तलाश है।
लोकसभा चुनाव लड़ने से डर रहे कांग्रेस नेता
विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस को अब लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों की तलाश में पसीना आ सकता है। कांग्रेस के खाते में 29 में से महज एक सीट ही है। इस सीट पर नकुलनाथ या कमलनाथ ही चुनाव लड़ सकते हैं। बाकी की सीट पर उसे उम्मीदवार तलाशना होगें। हालांकि झाबुआ से कांतिलाल भूरिया लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। इन दो सीटों के अलावा बाकी की सीटों पर उम्मीदवारों का संकट हो सकता है।