राज-काज: क्या ‘74’ की बजाय ‘73 बंगले’ होगा नाम….

राज-काज: क्या ‘74’ की बजाय ‘73 बंगले’ होगा नाम….

– राजधानी के ‘45 बंगला’ और ‘74 बंगले’ नाम, संभवत: वहां बने सरकारी बंगलों की संख्या के कारण ही रखे गए होंगे। ‘74 बंगले’ से अब एक बंगला कम हो गया है, क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दो बंगलों को मिलाकर एक कर दिया है। एक बंगला उन्हें आवंटित था। दूसरे पड़ोस के बंगले की बाउंड्रीवाल तुड़वाकर उन्होंने उसे भी अपने बंगले में मिला लिया। इस दूसरे बंगले में पहले पूर्व नेता प्रतिपक्ष स्व जमुना देवी और इसके बाद भाजपा के पूर्व अध्यक्ष स्व नंदकुमार सिंह चौहान रहते थे। अब चूंकि दोनों बंगले एक हो गए, इसलिए एक बंगला घट गया।

Shiva

शिवराज का यह बंगला इस समय चर्चा में है। चर्चा इसलिए भी है क्योंकि शिवराज के बंगलों के संधारण और साजसज्जा में बड़ी राशि खर्च की गई है। यह जानकारी विधानसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में सामने आई है। राशि उसी तरह खर्च की गई है, जिस तरह दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने की और जांच का सामना कर रहे हैं। यहां सवाल यह पैदा हुआ कि एक बंगला कम होने के बाद क्या अब ‘74 बंगले’ का नाम ‘73 बंगले’ रखा जाएगा। वैसे भी भाजपा की सरकार नाम बदलने में अव्वल है। राजधानी में ही भाजपा की सरकार कई इमारतों, सड़कों, बांध, रेल्वे स्टेशन और गांवों के नाम बदल चुकी है।

यह व्यवहार तो विरोधी दल की सरकार जैसा….!

– मुख्यमंत्री बनने के बाद डॉ मोहन यादव सीएम सचिवालय सहित प्रमुख पदों पर अपनी पसंद के अफसरों की तैनाती करें, यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। यह होना भी चाहिए। इसी के तहत पहले मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव मनीष रस्तोगी हटे, इसके बाद जनसंपर्क आयुक्त मनीष सिंह और अब मुख्यमंत्री सचिवालय में पदस्थ नीरज वशिष्ठ की रवानगी हो गई। ये तीनों पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के भरोसे के अफसर थे। शिवराज के लगातार मुख्यमंत्री रहने के कारण ये अफसर लंबे समय से जमे थे।

Screenshot 20231225 083052 997

इसके कारण प्रशासनिक जड़ता भी आ गई थी। मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद इन्हें हटाया जा रहा है, यहां तक तो ठीक है लेकिन हटाए गए किसी अफसर को कोई दायित्व नहीं दिया जा रहा, इसे कैसे ठीक ठहराया जा सकता है? मनीष रस्ताेगी, मनीष सिंह और नीरज वशिष्ठ हटाए गए, लेकिन किसी को कोई काम नहीं दिया गया। इससे ऐसा लगता है कि प्रदेश में विरोधी दल की सरकार आ गई, जो शिवराज समर्थक अफसरों को निबटा रही है, जबकि ऐसा नहीं है। सत्ता अब भी भाजपा की ही है, सिर्फ नेतृत्व करने वाला बदला है। संभव है यह मुख्यमंत्री यादव के संज्ञान में न हो। उन्हें इस ओर ध्यान देकर बेवजह आलोचना से बचना चाहिए। अफसरों को हटाने के साथ उन्हें कोई दायित्व भी दिया जाना चाहिए।

 

 यह नाथ-दिग्विजय के युग के अंत का संकेत तो नहीं….!

– कांग्रेस आलाकमान वरिष्ठ नेताओं कमलनाथ और दिग्विजय सिंह से नाराज दिखता है। उसने मान लिया है कि प्रदेश विधानसभा के चुनाव में पार्टी की बुरी हार इन दोनों नेताओं के अति आत्मविश्वास और सभी नेताओं को साथ लेकर न चलने के कारण हुई है। संभवत: इसीलिए प्रदेश को लेकर लिए जा रहे किसी निर्णय में उनकी राय नहीं ली जा रही है। पहले जीतू पटवारी को प्रदेश अध्यक्ष और उमंग सिंघार को नेता प्रतिपक्ष बनाने में ऐसा हुआ।

digvijy kamal

अब लोकसभा चुनाव 2024 के लिए गठित केंद्रीय चुनाव घोषणा पत्र समिति में भी इन दोनों वरिष्ठों को नजर अंदाज कर दिया गया। पी चिदंबरम की अध्यक्षता में गठित इस समिति में इनके स्थान पर आदिवासी विधायक ओंकार सिंह मरकाम को जगह दी गई है। गौर करने लायक यह भी है कि जीतू पटवारी को कमलनाथ पसंद नहीं करते थे और उमंग सिंघार ने दिग्विजय सिंह के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था। फिर भी इन दोनों को महत्वपूर्ण जवाबदारी सौंपी गई। घोषणा समिति में वरिष्ठों को शामिल करने की उम्मीद की जाती है लेकिन युवा आेंकार को चुना गया। पटवारी, सिंघार और मरकाम तीनों राहुल गांधी कैम्प से हैं। यह प्रदेश से कमलनाथ-दिग्विजय युग के अंत का संकेत तो नहीं है? बता दें, छत्तीसगढ़ के भूपेश बघेल, टीएस सिंहदेव और राजस्थान के अशोक गहलोत, सचिन पायलट को काम मिल गया है। जबकि यहां भी कांग्रेस की हार हुई थी।

 

 कांग्रेस में कलह के कैक्टस, कमलनाथ ने तोड़ी परंपरा….

– प्रदेश में करारी हार और नेतृत्व परिवर्तन के बाद कांग्रेस में एक बार फिर कलह के कैक्टस दिखाई देने लगे हैं। इसकी वजह बन रहे हैं पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ। प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद जीतू पटवारी भोपाल चार्ज लेने पहुंचे तो कमलनाथ ने पुरानी परंपरा ही तोड़ दी। प्रदेश में होने के बावजूद उन्होंने कार्यक्रम से दूरी बनाई। पार्टी की परंपरा है कि जब नया अध्यक्ष कार्यभार ग्रहण करने आए तो निवृत्तमान होने वाले को मौजूद रहना चाहिए।

congress 6502 1024x683 1

जब अरुण यादव अध्यक्ष बने तब कांतिलाल भूरिया मौजूद थे और कमलनाथ बने तो अरुण यादव। नाथ ने नाराजगी के संकेत जीतू पटवारी के अध्यक्ष बनने से पहले ही दे दिए थे, जब पार्टी के प्रदेश प्रभारी रणदीप सुरजेवाला और राष्ट्रीय संगठन प्रभारी महामंत्री वेणुगोपाल भोपाल में कांग्रेस विधायक दल की बैठक लेने आए थे और कमलनाथ ने इसमें हिस्सा नहीं लिया था। संभवत: उन्हें बदलाव की भनक लग चुकी थी। जीतू के चार्ज लेने के दौरान नाथ के साथ दिग्विजय सिंह सहित कोई वरिष्ठ नेता शामिल नहीं था। इसका मतलब तो यह हुआ कि ये आलाकमान द्वारा किए गए बदलाव से खुश नहीं हैं। साफ है कि कांग्रेस हार कर भी नहीं सुधर रही है। हालात ऐसे ही रहे तो कांग्रेस एकजुट होकर लोकसभा का चुनाव कैसे लड़े पाएगी, यह बड़ा सवाल है?

 इस वरिष्ठ नेता को क्यों पड़ रही यह कहने की जरूरत….

– भाजपा के वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय विधानसभा चुनाव का टिकट मिलने के बाद से ही चर्चा में हैं। किसी को न उनकी क्षमता पर कोई शंका है, न उनके संपर्क, पहुंच और दबदबे पर। बावजूद इसके उनके कुछ कथन कई सवाल खड़े करते हैं। विधायक बनने के बाद उनकी जवाबदारी को लेकर खासी चर्चा हो रही है।

भाजपा सरकार और संगठन में अब बदलाव यानि भटकाव...

मीडिया से बातचीत करते हुए उन्हें कहना पड़ा कि मैं अब भी भाजपा का राष्ट्रीय महामंत्री हूं। पदाधिकारियों की बैठक में हिस्सा लेने दिल्ली जा रहा हूं। यह बड़ी जवाबदारी ही है, लेकिन जाने क्यों आप मानने के लिए तैयार नहीं हैं। दरअसल, विधानसभा का टिकट मिलने के बाद उन्होंने जैसी प्रतिक्रिया दी थी, उससे भाजपा में विजयवर्गीय की धमक कम होने के संकेत मिले थे। टिकट मिलने पर उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया था। उन्होंने कहा था कि मैं विधानसभा का चुनाव लड़ना नहीं चाहता, लेकिन पार्टी ने उनकी मंशा पूरी नहीं की थी। प्रचार के दौरान उन्हें कहना पड़ा था कि मैं सिर्फ विधायक बनने के लिए चुनाव नहीं लड़ रहा। मुझे कोई बड़ी जवाबदारी मिलेगी। जीत के बाद उन्हें मुख्यमंत्री बनाने के लिए अभियान भी चला। लेकिन यह भी नहीं हो सका। इस बड़ी जवाबदारी से जुड़ा सवाल करने पर ही उन्हें कहना पड़ा कि वे राष्ट्रीय महामंत्री हैं और यह बड़ी जवाबदारी ही है। अब उनके मंत्रिमंडल में शामिल होने की चर्चा है। हालांकि वे अपने स्थान पर रमेश मैंदोला को मंत्री बनाए जाने के पक्ष में हैं।

————————