आपको पहले भारतीय होना चाहिए, अंत में भारतीय और भारतीय के अलावा और कुछ नहीं…

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आपको पहले भारतीय होना चाहिए, अंत में भारतीय और भारतीय के अलावा और कुछ नहीं…

डॉ. बी. आर. अम्बेडकर के शब्दों में “आपको पहले भारतीय होना चाहिए, अंत में भारतीय और भारतीय के अलावा और कुछ नहीं।” यह हर शब्द डॉ. अंबेडकर के हैं। इन्हें उपराष्ट्रपति डॉ. जगदीप धनखड़ ने दीक्षांत समारोह में अपने भाषण में शामिल किया है। धनखड़ ने युवाओं को ‘पुनर्उदित भारत का अग्रदूत’ बताया। जोर दिया कि अपने शिक्षकों का सम्मान, अपने माता-पिता की देखभाल और देश का गौरव आपकी प्राथमिकता होनी चाहिए। युवाओं को नए विचारों को खुले मन से स्वीकार करना चाहिए। उपराष्ट्रपति रोहतक में महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह को संबोधित कर रहे थे।

उपराष्ट्रपति ने जो कुछ कहा वह नया भले ही न हो और युवाओं के लिए खास तौर पर संबोधित हो, लेकिन यह सभी बातें हर भारतीय के लिए हमेशा अनुकरणीय हैं। धनखड़ ने युवाओं से आह्वान किया कि गुरुजनों का आदर, परिजनों की सेवा और देश का सम्मान आपकी प्राथमिकता होनी चाहिए। कहा कि हम उस भारत के नागरिक हैं जहाँ बुज़ुर्गों का सम्मान होता है। कोई भी परिस्थिति हो, अपने माता-पिता का हमेशा ध्यान रखें। उनकी सेवा में ही ईश्वर है। तो उपराष्ट्रपति ने इस बात पर जोर दिया कि युवा पीढ़ी को डॉ. बीआर अम्बेडकर के शब्दों का पालन करना चाहिए, अर्थात् “आपको पहले भारतीय होना चाहिए, अंत में भारतीय, और कुछ नहीं बल्कि भारतीय।” उन्होंने सवाल उठाया कि भारतीयता में विश्वास और भारत का नागरिक होने का दावा करने वाला कोई भी व्यक्ति हमारे देश की अखंडता को कैसे कमजोर कर सकता है, कैसे इसकी प्रगति में बाधा डाल सकता है, या इसके संवैधानिक संस्थानों को कैसे बदनाम कर सकता है, चाहे वह देश के भीतर हो या इसकी सीमाओं के बाहर। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि “ईमानदारी, जवाबदेही, पारदर्शिता और सत्यनिष्ठा” ऐसे तत्व हैं, जिनके साथ कोई समझौता नहीं किया जा सकता।

“ईमानदारी, जवाबदेही, पारदर्शिता और सत्यनिष्ठा” जैसे शब्द युवाओं के रोम-रोम में समाहित होना चाहिए तो हर भारतीय को भी इन बातों को अपना परम कर्तव्य मानकर अंगीकृत और आत्मार्पित करना चाहिए। साथ ही हर भारतीय को गुरुजनों, माता-पिता और बुजुर्गों के सम्मान का हमेशा ख्याल रखना ही चाहिए। तो इसे ही परम कर्तव्य मानकर हर कदम आगे बढ़ाना चाहिए कि हम पहले भारतीय हैं , अंत में भारतीय और भारतीय के अलावा और कुछ नहीं…। यदि यह शब्द हमारे रक्त में समाहित हो गए तब देश की सारी समस्याएं खत्म हो जाएंगी। तब राजनीति आदर्श की तरफ हर कदम बढ़ाती नजर आएगी, तो नौकरशाही सेवा का पर्याय बन जाएगी और देश का हर नागरिक राष्ट्रहित में अपना हर कदम आगे बढ़ाएगा।