कोई तो कहे:खरपतवार: धरती मां का है एक अनोखा वरदान

2584

कोई तो कहे:खरपतवार: धरती मां का है एक अनोखा वरदान

नर्मदा परिक्रमा पथ,गुजरात से स्वामी तृप्तानंद जी का कालम

खरपतवार अर्थात वे वनस्पतियां जो किसी भी कृषि उपज के साथ बिना बोए ही अपने आप उग आती हैं और कथित रूप से मुख्य फसल के पोषक तत्वों को स्वयं हड़पकर फसल को कमजोर कर देती हैं। इसीलिए प्रायः फसल की निंदाई करके अथवा खरपतवार नाशी दवा का स्प्रे करके

खरपतवार वनस्पति को नष्ट कर दिया जाता है।

IMG 20231229 WA0049

गेहूं चना जौ के साथ

अनायास उग आने वाली खरपतवार हैं सरसों-राई और बथुआ और आदिवासी धान्य कोदो के साथ

उगने वाली खरपतवार है लाल अमटा और सफेद अमटा। इसमें विचारणीय बात यह है कि बथुआ, राई, सरसों, अमटा,सभी औषधि गुण संपन्न हैं।

और जिन मूल कृषि उपजों में से इन्हें हटा दिया जाता है वे एलर्जिक और टॉक्सिक प्रभाव पैदा करती हैं जैसे कि फार्म हाउस का नया गेहूं खाने से होने वाला डायरिया(दस्तरोग) और अमटा हटे कोदो का भात खाने से होने वाला चक्कर रोग मतौना। इसका अर्थ यह हुआ कि गेहूं में जो टॉक्सीन होता है उसे बथुआ व राई खींच लेते हैं और क्रमश: पित्ताशय पथरी व पाचक एंज़ाइमों के वृद्धिकारक बन जाते हैं। और जो मुख्य उपज है वह इनके कारण विषप्रभावमुक्त हो जाती है।अमटा खरपतवार बिना लघुधान्य कोदो में जो चक्कर रोग मतौना पैदा हुआ करता है उस पर डिंडोरी M.P. के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक O.P. दुबे (9425417538) ने ऑस्ट्रेलिया में एक सेमिनार में अपना रिसर्चपेपर पढ़ा था। जिसमें बताया था कि अमटा खरपतवार के फूलों में जो लू-लपट नाशक औषधीय गुण आता है वह कोदो में पाए जाने वाले मतौना टॉक्सीन को खींच लेने के कारण होता है। तभी तो जिन कोदो खेतों में से अमटा को उखाड़कर नहीं फेंका गया होता है,उनके कोदों के भात में मतौना चक्कर रोग नहीं होता है। जिसे आप घास-फूस समझकर देते हैं फेंक, वह है विटामिन और मिनरल्स का सरताज, सेवन से कई बीमारियां हो जाएंगी साफ Benefits of Kulfa Saag: क्या आपने कभी कुल्फा साग का नाम सुना या इसे खाया है? आमतौर पर लोग इस साग को घास-फूस समझकर फेंक देते हैं, लेकिन इसे पोषक तत्वों का खजाना कहा जा सकता है. इसमें विटामिन ए, विटामिन सी, विटामिन बी, सोडियम, पोटैशियम, कैल्शियम, कॉपर, आयरन, मैग्नीशियम, मैग्नीज, फॉस्फोरस, सेलेनियम और जिंक जैसे तत्व पाए जाते हैं.पर्सलेन में पर्याप्त मात्रा में विटामिन सी और बीटा कैरोटिन होता है, जो फ्री रेडिकल्स को खत्म करते हैं.फ्री रेडिकल्स के कारण स्किन समय से पहले बूढ़ी नहीं होगी.

IMG 20231229 WA0051

Nutritional Value of Kulfa Saag: इसे अधिकांश लोग समझते भी नहीं कि यह साग है. कुछ जगहों पर इसे कुल्फा तो कुछ जगहों पर इसे मलमला साग कहा जाता है. कुछ जगहों पर इसे नोनिया का साग भी कहा जाता है. हालांकि इसका इंग्लिश नाम पर्सलेन है. वैज्ञानिक दृष्टि से पर्सलेन खर-पतवार है जो कई जगहों पर फसलों के साथ उग आते हैं, लेकिन एनसीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में इसे सामान्य खरपतवार में असमान्य पोषक तत्वों की संज्ञा दी है. यानी जिसे आप खर पतवार समझकर फेंक देते हैं या इस पर ध्यान नहीं देते, वह पोषक तत्वों का सरताज है. पर्सेलन साग के एक नहीं कई फायदे हैं. पर्सलेन साग के नियमित सेवन से कई बीमारियां पास नहीं फटकेंगी.

IMG 20231229 WA0052

*खरपतवार क्यों है पोषक तत्वों का बाप*

एनसीबीआई जर्नल में छपी रिपोर्ट के मुताबिक इसमें विटामिन ए, विटामिन सी, विटामिन बी, सोडियम, पोटैशियम, कैल्शियम, कॉपर, आयरन, मैग्नीशियम, मैग्नीज, फॉस्फोरस, सेलेनियम और जिंक जैसे तत्व पाए जाते हैं. लेकिन इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि पर्सलेन साग में ओमेगा 3 फैटी एसिड का खजाना छुपा होता है. इसके साथ ही इसमें एंटीऑक्सीडेंट्स के भरमार होते हैं जो कई बीमारियों से बचाते हैं.

IMG 20231229 WA0048

*इतने तरह के फायदे*

1. बैड कोलेस्ट्रॉल को कम कर हार्ट डिजीज से रखता है दूर- रिपोर्ट के मुताबिक पर्सलेन साग में सबसे अधिक ओमेगा 3 फैटी एसिड होता है जो कोलेस्ट्रॉल को कम करता है और इसके साथ ही ट्राइग्लिसराइड्स को भी कम करता है. इसके साथ ही यह गुड कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाता है. इतना ही नहीं यह खून के थिकनेस को भी कम करता है जिससे खून से संबंधित किसी तरह की बीमारी नहीं होती. यह ओवरऑल हार्ट डिजीज के जोखिम को कम करता है.

2. गठिया के दर्द में रामबाण-पर्सलेन के साग में एंटीइंफ्लामेटरी गुण होता है जो सूजन संबंधी सभी तरह की समस्याओं को कम करने में माहिर है. यानी अगर किसी को गठिया है तो पर्सलेन का साग खाने से गठिया के दर्द से राहत मिल सकती है.

3. स्किन को करता है बेदाग-पर्सलेन में पर्याप्त मात्रा में विटामिन सी और बीटा कैरोटिन होता है जो कई तरह के एंटीऑक्सीडेंट्स से भरे होते हैं. यह फ्री रेडिकल्स को खत्म करते हैं. फ्री रेडिकल्स के कारण स्किन समय से पहले बूढ़ी नहीं होगी और यह स्किन को हमेशा जवां रखेगा. पर्सलेन के साग से कई ब्यूटी प्रोडक्ट बनाया जाता है. दूसरी और फ्री रेडिकल्स यदि कम हो तो कैंसर की बीमारी होने का खतरा भी कम रहता है.

4. अच्छी नींद लाता है-पर्सेलन का साग अच्छी नींद लाने के लिए बहुत कारगर है. क्योंकि इसमें मेलाटोनिन होता है. मेलाटोनिन वह हार्मोन है जो सुकून की नींद लाता है.

5. शुक्राणुओं की संख्या बढ़ाता है-पर्सलेन के साग से पुरुष शुक्राणुओं की संख्या में वृद्धि ला सकता है. पर्सलेन में मैग्नीशियम और जिंक दोनों पर्याप्त मात्रा में होता है जो शुक्राणुओं की संख्या बढ़ाने के लिए जरूरी है.

6. हड्डियों की मजबूती-पर्सलेन के साग से हड्डियों को मजबूत किया जा सकता है क्योंकि इसमें हड्डियों को मजबूत करने के लिए कैल्शियम, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम सभी होते हैं.

पर्सलेन के साग में कैल्शियम की मात्रा ज्यादा होती है. इसलिए पर्सलेन के साग का ज्यादा सेवन करने से शरीर में ऑक्सीलेट की प्रक्रिया तेज हो जाएगी. इसलिए जिसे किडनी से संबंधित परेशानियां हैं, उनके लिए इससे नुकसान हो सकता है. खासकर अगर किसी को किडनी स्टोन की समस्या है तो उसे पर्सलेन का साग नहीं खाना चाहिए.

*खरपतवारों के भी हैं औषधीय गुण*

खरपतवार शब्द सुनकर ही ऐसा प्रतीत होता है मानों ये खरपतवार सिवाए नुकसान के कुछ और काम नहीं कर सकते।

खरपतवारों के भी हैं औषधीय गुण

खेत-खलिहानों में खरपतवार अक्सर किसान भाइयों के लिए मुसीबत बनकर आते हैं और इन खरपतवारों को खत्म करने के लिए किसान भाई कई तरह की युक्तियों को अपनाते हैं।

खरपतवार शब्द सुनकर ही ऐसा प्रतीत होता है मानों ये खरपतवार सिवाए नुकसान के कुछ और काम नहीं कर सकते लेकिन आश्चर्य की बात है कि आदिवासी अंचलों में अनेक खरपतवारों को औषधीय नुस्खों के तौर पर अपनाया जाता है।

आदिवासी हर्बल जानकारों के अनुसार प्रकृति में जन्म लिया हर एक पौधा एक असामान्य गुण लिये होता है और यह गुण औषधीय भी हो सकता है। इन जानकारों के अनुसार हर एक पौधे में अनेक ऐसे गुण होते हैं जिन्हें सही तरह से उपयोग में लाकर विभिन्न प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं से निजात पाई जा सकती है बशर्ते हमें इन गुणों की पहचान हो।

 

इस कालम के आज के इस आलेख के जरिये प्रयास किया जा रहा है कि आप सभी पाठकों को खरपतवारों के औषधीय गुणों से परिचित किया जाए। इस लेख के जरिये हम अतिबल, ऊंटकटेरा, दूब घास, द्रोणपुष्पी, नागरमोथा, पुनर्नवा, लटजीरा, सत्यानाशी और हुरहुर जैसी खरपतवार किंतु औषधीय महत्व की जड़ी-बूटियों का जिक्र करेंगे।

*अतिबल*

प्राचीन काल से अतिबल को औषधि गुणों के लिए जाना जाता रहा है। यह पौधा सभी अंगों छाल, पत्ती, फूल, जड़ आदि में कई प्रकार के गुण समेटे हुए हैं। इसका वानस्पतिक नाम एब्युटिलोन इंडीकम हैं। इसे हिन्दी और संस्कृत में अतिबल भी कहा जाता हैं। यह दक्षिण एशियाई देशों में प्रचुरता से पाया जाता हैं, अक्सर इसे खेतों में खरपतवार के तौर पर उगता हुआ देखा जा सकता है। इसके बीज, छाल का उपयोग बुखार उतारने में किया जाता हैं। यह पेट की जलन को दूर करने में भी उपयोग में लाया जाता हैं। इसके बीजों से तेल निकलता हैं, जिसे कई प्रकार से उपयोग में लाया जाता हैं। वहीं पौधे के सभी अंगों को सुखाकर चूर्ण बनाते हैं और फिर शहद के साथ एक चम्मच सेवन किया जाता है, पातालकोट के आदिवासी मानते हैं कि इस प्रकार का चूर्ण प्रतिदिन एक बार लेने से शरीर में ऊर्जा का संचार होता है और असीम ताकत और शक्ति प्राप्त होती है। इसकी पत्तियाँ का सेवन किया जाए तो सिरदर्द, आधासीसी दर्द (माईग्रेन) और पेट के संक्रमण में आराम मिलता है। पत्तियों के रस को मुंह के छालों पर लगाने से आराम मिलता है। इसके फूल, पत्तियों, जड़ और छाल का समांगी चूर्ण बनाकर पुरुषों को दिया जाए तो उनके शरीर में शुक्राणुओं की संख्या और गुणवत्ता में सुधार होता है।

*ऊंटकटेरा*

ऊंटकटेरा एक छोटा कंटीला पौधा है जो मैदानी इलाकों, जंगलों और खेतों के आसपास खरपतवार के रूप में दिखाई देता है। इस पौधे के फलों पर चारों तरफ करीब एक-एक इंच लंबे कांटे लगे होते हैं, जिनसे इसकी पहचान भी की जा सकती है। ऊंटकटेरा का वानस्पतिक नाम एकीनोप्स एकिनेटस है। आदिवासियों के अनुसार ऊंटकटेरा की जड़ की छाल का चूर्ण तैयार कर लिया जाए और चुटकी भर चूर्ण पान की पत्ती में लपेटकर खाने से लगातार चली आ रही कफ और खांसी में आराम मिलता है। ऊंटकटेरा के संपूर्ण पौधे को उखाड़कर अच्छी तरह से धोकर छाँव में सुखा लिए जाए और फिर चूर्ण बना लिया जाए। इस चूर्ण का चुटकी भर प्रतिदिन रात को दूध में मिलाकर लेने से ताकत मिलती है और माना जाता है कि यह वीर्य को भी पुष्ठ करता है। डाँग-गुजरात के आदिवासी मानते हैं कि इस चूर्ण के साथ अश्वगंधा, पुनर्नवा और अकरकरा की समान मात्रा मिलाकर लिया जाए तो यह शरीर को मजबूती प्रदान करता है।

*दूब घास*

हिन्दू धर्म शास्त्रों में दूब घास को अति-पवित्र माना गया है, प्रत्येक शुभ कार्यों और पूजन के दौरान इसका उपयोग किया जाता है। दूब घास खेल के मैदान, मन्दिर परिसर, बाग व बगीचों और खेत खलिहानों में संपूर्ण भारत में प्रचुर मात्रा में उगती हुई पायी जाती है। इसका वानस्पतिक नाम सायनाडोन डेक्टीलोन है।आदिवासियों के अनुसार इसका प्रतिदिन सेवन शारीरिक स्फूर्ति प्रदान करता है और शरीर को थकान महसूस नहीं होती है, वैसे आधुनिक विज्ञान के अनुसार भी दूबघास एक शक्तिवर्द्धक औषधि है क्योंकि इसमें ग्लाइकोसाइड, अल्केलाइड, विटामिन ‘ए’ और विटामिन ‘सी’ की पर्याप्त मात्रा पायी जाती है। इसका लेप मस्तक पर लगाने से नकसीर ठीक होती है। पातालकोट में आदिवासी नाक से खून निकलने पर ताजी व हरी दूब का रस 2-2 बूंद नाक के नथुनों में टपकाते हैं जिससे नाक से खून आना बंद हो जाता है। लगभग 15 ग्राम दूब की जड़ को 1 कप दही में पीसकर लेने से पेशाब करते समय होने वाले दर्द से निजात मिलती है।

डाँग- गुजरात के आदिवासियों के अनुसार दूब घास की पत्तियों को पानी के साथ मसलकर स्वादानुसार मिश्री डालकर अच्छी तरह से घोट लेते हैं फिर छानकर इसकी 1 गिलास मात्रा रोजाना पीने से पथरी गल जाती है और पेशाब खुलकर आता है। पातालकोट में आदिवासी उल्टी होने की दशा में दूब के रस में मिश्री मिलाकर रोजाना सुबह और शाम पीने की सलाह देते हैं।

*द्रोणपुष्पी*

द्रोण (प्याला) के आकर के फूल होने के कारण इसका नाम द्रोणपुष्पी है। द्रोणपुष्पी सामान्यत: बारिश के दौरान खेत खलिहान, मैदानों और जंगलों में उगता हुआ पाया जाता है। द्रोणपुष्पी का वानस्पतिक नाम ल्युकास एस्पेरा है। पातालकोट के आदिवासियों का मानना है कि द्रोणपुष्पी की पत्तियों और पीपल की पत्तियों का एक-एक चम्मच रस सुबह-शाम लेने से संधिवात में लाभ मिलता है। डाँग- गुजरात के आदिवासियों के अनुसार सर्प-विष के प्रभाव को कम करने के लिए द्रोणपुष्पी एक महत्वपूर्ण पौधा है। साँप के काटे गए स्थान पर यदि लगातार इसकी पत्तियों को रगड़ा जाए तो विष का प्रभाव कम पड़ने लगता है। इसी दौरान इसकी पत्तियों के रस को नाक में डाला जाए और साथ ही इस रस का सेवन कराया जाए तो काफी फ़ायदा होता है।द्रोणपुष्पी की पत्तियों का रस (2-2) बूंद नाक में टपकाने से और इसकी पत्तियों को 1-2 काली मिर्च के साथ पीसकर इसका लेप माथे पर लगाने से सिर दर्द में अतिशीघ्र आराम मिलता है। द्रोणपुष्पी की पत्तियों का ताजा रस खुजली को कम करता है, प्रतिदिन इसकी पत्तियों का रस शरीर पर लेपित किया जाए तो खुजली समाप्त हो जाती है। हर्रा और बहेड़ा के फलों के चूर्ण के साथ थोड़ी मात्रा इस पौधे की पत्तियों की भी मिला ली जाए और खाँसी से ग्रस्त रोगी को दिया जाए तो काफी ज्यादा आराम मिलता है।

*नागरमोथा*

यह पौधा संपूर्ण भारत में नमी और जलीय भू-भागों में प्रचुरता से दिखाई देता है, आमतौर से घास की तरह दिखाई देने वाले इस पौधे को मोथा या मुस्तक के नाम से भी जाना जाता है। इसका वानस्पतिक नाम सायप्रस रोटंडस है। नागरमोथा में प्रोटीन, स्टार्च के अलावा कई कार्बोहाड्रेट पाए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि संपूर्ण पौधे का लेप शरीर पर लगाने से सूजन मिट जाती है। चुटकी भर नागरमोथा का चूर्ण शहद के साथ चाटने से हिचकियों के लगातार आने का क्रम रूक जाता है। किसी वजह से जीभ सुन्न हो जाए तो नागरमोथा का लगभग 5 ग्राम चूर्ण दूध के साथ दिन में दो बार लेने से आराम मिलता है। नागरमोथा को कुचलकर लेप कर लिया जाए और जननांगों के इर्दगिर्द लगाया जाए तो खुजली होना बंद हो जाती है, माना जाता है कि इसमें एण्टी-बैक्टेरियल गुण होते हैं। पातालकोट के आदिवासियों के अनुसार इसके कंद का चूर्ण तैयार कर प्रतिदिन एक चम्मच खाना खाने से पहले लिया जाए तो यह भूख बढाता है। नागरमोथा के ताजे पौधे को पानी में उबालकर काढा तैयार कर प्रसुता महिलाओं के पिलाने से स्तनों का दूध शुद्ध होता है और दूध बढ़ता है, जिन्हें दूध कम आने की शिकायत हो, उन्हें भी काफ़ी फायदा होता है। डाँग- गुजरात के आदिवासियों के अनुसार नागरमोथा की जड़ का काढ़ा बनाकर सेवन करने से शरीर से पसीना आना शुरू हो जाता है और पेशाब खुलकर आती है, जिन्हें मुँह से लार गिरने की शिकायत हो, उन्हे भी आराम मिल जाता है।

*पुर्ननवा*

हमारे आँगन, बगीचे और घास के मैदानों में अक्सर चलते हुए पैरों से कुचली जाने वाली इस बूटी का वानस्पतिक नाम बोरहाविया डिफ्यूसा है। आयुर्वेद के अनुसार इस पौधे में व्यक्ति को पुनः नवा अर्थात जवान कर देने की क्षमता है और मजे की बात यह भी है कि मध्य प्रदेश के पातालकोट के आदिवासी इसे जवानी बढ़ाने वाली दवा के रूप में उपयोग में लाते हैं। पुर्ननवा की ताजी जड़ों का रस (2 चम्मच) दो से तीन माह तक लगातार दूध के साथ सेवन करने से वृद्ध व्यक्ति भी युवा की तरह महसूस करता है। वैसे आदिवासी पुर्ननवा का उपयोग विभिन्न विकारों में भी करते हैं, इसके पत्तों का रस अपचन में लाभकारी होता है। पीलिया होने पर पुर्ननवा के संपूर्ण पौधे के रस में हरड़ या हर्रा के फलों का चूर्ण मिलाकर लेने से रोग में आराम मिलता है। हृदय रोगियों के लिए पुर्ननवा का पांचांग (समस्त पौधा) का रस और अर्जुन छाल की समान मात्रा बड़ी फाय़देमंद होती है। मोटापा कम करने के लिए पुर्ननवा के पौधों को एकत्र कर सुखा लिया जाए और चूर्ण तैयार किया जाए, 2 चम्मच चूर्ण शहद में मिलाकर सुबह शाम सेवन किया जाए तो शरीर की स्थूलता तथा चर्बी कम हो जाती है। पुर्ननवा की जड़ों को दूध में उबालकर पिलाने से बुखार में तुरंत आराम मिलता है। इसी मिश्रण को अल्पमूत्रता और मूत्र में जलन की शिकायत से छुटकारा मिलता है। प्रोस्टेट ग्रंथियों के वृद्धि होने पर जड़ के चूर्ण का सेवन लाभकारी होता है। लीवर (यकृत) में सूजन आ जाने पर पुर्ननवा की जड़ (3 ग्राम) और सहजन अथवा मुनगा की छाल (4 ग्राम) लेकर पानी में उबाला जाए व रोगी को दिया जाए तो अतिशीघ्र आराम मिलता है।

*लटजीरा*

आपके बाग-बगीचे, आँगन या खेलकूद के मैदानों और आम रूप से खेतों में पायी जाने वाली इस वनस्पति का वैज्ञानिक नाम एकाइरेन्थस एस्पेरा है। एक से तीन फीट की ऊँचाई वाले इस पौधे पर ऊपरी भाग पर एक लट पर जीरे की तरह दिखाई देने वाले बीज लगे होते हैं जो अक्सर पैंट और साड़ियों आदि से रगड़ खाने पर चिपक जाते हैं। खेती में अक्सर इसे खरपतवार माना जाता है लेकिन आदिवासी इसे बड़ा ही महत्वपूर्ण औषधीय पौधा मानते हैं। इसके बीजों को एकत्र कर कुछ मात्रा लेकर पानी में उबाला जाए और काढ़ा बन जाने पर भोजन के 2-3 घंटे बाद देने से लीवर (यकृत) की समस्या में आराम मिलता है। ऐसा माना जाता है कि लटजीरा के बीजों को मिट्टी के बर्तन में भूनकर सेवन करने से भूख मरती है और इसे वजन घटाने के लिए इस तरह उपयोग में भी लाया जाता है। मसूड़ो से खून आना, बदबू आना अथवा सूजन होने से लटजीरा की दातून उपयोग में लाने पर तुरंत आराम पड़ता है। नए जख्म या चोट लग जाने पर रक्त स्राव होता है, लटजीरा के पत्तों को पीसकर इसके रस को जख्म में भर देने से बहता रक्त रूक जाता है। लटजीरा के संपूर्ण पौधे के रस का सेवन अनिद्रा रोग में फायदा करता है। जिन्हें तनाव, थकान और चिढ़चिढ़ापन की वजह से नींद नहीं आती है, उन्हे इसका सेवन करने से निश्चित फायदा मिलता है। इसके पत्तों के साथ हींग चबाने से दांत दर्द में तुरंत आराम मिलता है। सर्दी और खांसी में भी पत्तों का रस अत्यंत गुणकारी है।

*सत्यानाशी*

आम बोलचाल में सत्यानाशी या पीला धतुरा कहलाने वाली पीलीकटेरी का वानस्पतिक नाम आर्जीमोन मेक्सिकाना है। अक्सर मैदानी और सिंचित भूमि पर पाए जाने वाला यह कंटीला पौधा औषधीय गुणों से भरपूर है। अक्सर खेतों में खरपतवार की तरह उग आने की वजह से इसे सत्यानाशी कहा जाता है किंतु आदिवासियों की बात मानी जाए तो यह बड़े गुणकारी प्रभावों वाला पौधा है। इसकी जड़ो के रस में काली मिर्च पीसकर कुष्ठरोगी की त्वचा पर लगाने से फायदा होता है। पातालकोट के हर्बल जानकार आदिवासी नपुंसकता दूर करने के लिए इस पौधे की छाल, बरगद का दूध और मिश्री मिलाकर गरम करते हैं और इसे गाढ़ा होने देते हैं, बाद में इनकी छोटी-छोटी गोलियां बनाकर लगभग 15 दिनों तक पान के साथ सेवन करने की सलाह देते हैं।

गुजरात के ड़ाँग जिले के आदिवासी इसके बीजों को पानी में उबालते हैं जिससे बीजों से निकला तेल पानी पर तैरने लगता है। रूई को पानी की ऊपरी सतह पर घुमाया जाता है और तेल एकत्रित कर लिया जाता है। इन आदिवासियों का मानना है कि यह तेल दाद-खाज और खुजली मिटाने में गुणकारी है। इसके पत्तों को गर्म करके जोड़ों पर लगाने से जोड़-दर्द और वात की शिकायत होने पर फायदा होता है। इसकी जड़ों का उपयोग टॉनिक की तरह भी किया जाता है और कभी-कभी अपचन होने की दशा में रोगी को दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह पाचन क्रिया को दुरूस्त कर पेट सफाई में सहायक होती है।

*हुरहुर*

हुरहुर बरसात के मौसम में घरों, मैदानी इलाकों, खेत- खलिहानों और जंगलों मे देखा जा सकता है। इस पौधे को हुलहुल और सूर्यभक्त के नाम से भी जाना जाता है। हुरहुर का वानस्पतिक नाम क्लीयोम विस्कोसा है। हुरहुर की पत्तियों के रस की चार बूँदें कान में टपकाने से कान दर्द में अतिशीघ्र आराम मिलता है। डाँग- गुजरात के आदिवासी मानते है कि यह रस बहरेपन में भी काफी फ़ायदा करता है। कान को अच्छी तरह से साफ करके उसके अन्दर यदि हुरहुर के पत्तों का रस डाला जाए तो कान से मवाद बहना ठीक हो जाता है। यदि पत्तियों को कुचलकर किसी सूती कपड़े के सहारे कान के ऊपर बाँध दिया जाए तो कान की सूजन में भी जबरदस्त फ़ायदा होता है। ठीक इसी तरह नाक में सूजन, दर्द या कोई और समस्या हो तो हुरहुर की पत्तियों के रस को टपकाने से तकलीफ़ में राहत मिलती है।हुरहुर की पत्तियों को नारियल तेल के साथ कुचलकर मवाद वाले किसी भी घाव पर लगाया जाए तो मवाद सूख जाता है और घाव में आराम होता है, हलाँकि आदिवासी कहते है कि इस लेप को २ घंटे के बाद साफ़ कर देना चाहिए वर्ना कुछ लोगों को जलन या उस स्थान पर दाने आ जाने की शिकायत होती है। पातालकोट के आदिवासी मानते है कि हुरहुर की जड़ों के रस की कुछ मात्रा (लगभग ५ से १० मिली) सुबह और शाम पिलाने से बुखार के बाद आई कमजोरी या सुस्ती में हितकर होती है। हमारे इर्द-गिर्द पाए जाने वाले हर एक पौधे का अपना एक खास औषधीय महत्व है और यह बात अलग है कि खाद्यान्नों और फसलों की ज्यादा पैदावार के लिए इन खरपतवारों को उखाड फेंक दिया जाता है। खरपतवारों के औषधीय गुणों की जानकारी हो तो हम इन्हें उखाड़- फेंककर जलाने या जमीन में दबाने के बजाए औषधीय तौर पर उपयोग में ला सकते हैं। उम्मीद है जानकारी हमारे पाठकों को रोचक लगेगी।

 

 

व्यर्थ नहीं है व्यर्थ जो

दिखती खरपतवार !

तृप्तानंद वरदान है

वह भी जो बेकार !!

 

स्वामी तृप्तानंद

8963968789

wtsp

अमरेली , गुजरात