क्यों नहीं बदल देते राष्ट्रीय शोक (National Mourning) के नियम ?

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क्यों नहीं बदल देते राष्ट्रीय शोक (National Mourning) के नियम ?

राष्ट्र में शोक कब मनाया जाये और कब नहीं इसकी नियमावली बहुत पुरानी हो चुकी है । देश के पहले सीडीएस जनरल विपिन रावत की हेलीकॉटर हादसे में हुई मौत के बाद क्या सारा देश शोकग्रस्त नहीं है ? जो केंद्र सरकार राष्ट्रीय शोक (National Mourning) घोषित करने में हिचक रही है । अकेले उत्तराखंड सरकार ने रावत के निधन पर तीन दिन का राजकीय शोक घोषित किया है। सवाल ये है कि क्या जनरल रावत सिर्फ उत्तराखंड के थे या पूरे देश के ?

दुर्भाग्य ये है कि हमारे यहां राष्ट्र भले ही किसी बड़े हादसे के बाद शोकनिमग्न हो लेकिन अंग्रजों के जमाने के इस बाबद बनाये गए नियम आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय शोक  घोषित करने की इजाजत नहीं देते। तो क्या ऐसे नियमों को बदल नहीं दिया जाना चाहिए ? क्या ये शोक पूर्व या वर्तमान राष्ट्रीय नेताओं के निधन पर ही होता है ? जब शोक की कोई परिभाषा और परिधि नहीं है तब इसकी घोषणा करने की नियमावली क्यों है ,क्यों नहीं इसे संशोधित किया जाता ?

क्यों नहीं बदल देते राष्ट्रीय शोक (National Mourning) के नियम ?

भारत में शुरुआत में ‘राष्ट्रीय शोक’ (National Mourning) सिर्फ राष्ट्रपति और पूर्व राष्ट्रपति तथा प्रधानमंत्री और पूर्व प्रधानमंत्री के निधन पर घोषित होता था. हालांकि भारत में पहला राष्ट्रीय शोक महात्मा गांधी की हत्या के बाद घोषित किया गया था. समय के साथ इस नियम में कई बदलाव किए गए. अब अन्य गणमान्य व्यक्तियों के मामले मे भी केंद्र विशेष निर्देश जारी कर राष्ट्रीय शोक का ऐलान कर सकता है. इसके साथ ही देश में किसी बड़ी आपदा के वक्त भी ‘राष्ट्रीय शोक’ घोषित किया जा सकता है.जब किया जा सकता है तो फिर देश के पहले सीडीसी के निधन पर ऐसा क्यों नहीं किया गया ?

हकीकत ये है कि ये देश नेता प्रधान देश है,यहां देश के लिए जो करता है सो केवल नेता करता है ,दूसरा और कोई नहीं ,इसीलिए देश गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री जो बाद में देश के रक्षा मंत्री भी रहे उनके लिए राष्ट्रीय शोक की घोषणा कर सकता है किन्तु सीडीएस के लिए नही। क्योंकि सीडीएस नेता नहीं बल्कि एक सैनिक होता है,भले ही उसके सीने पर जमाने भर के पदक लटके रहते हों। केंद्र सरकार के 1997 के नोटिफिकेशन में कहा गया है कि राजकीय शवयात्रा के दौरान कोई सार्वजनिक छुट्टी जरूरी नहीं है.?

राजकीय शोक के दौरान फ्लैग कोड ऑफ इंडिया नियम के मुताबिक विधानसभा, सचिवालय सहित महत्वपूर्ण कार्यालयों में लगे राष्ट्रीय ध्वज आधे झुके रहते हैं. इसके अलावा प्रदेश में कोई औपचारिक एवं सरकारी कार्यक्रम आयोजित नहीं किया जाता है और इस अवधि के दौरान समारोहों और आधिकारिक मनोरंजन पर भी प्रतिबंध रहता है.देश में और देश के बाहर स्थित भारतीय दूतावास और उच्‍चायोग में भी राष्‍ट्रीय ध्‍वज को आधा झुकाया जाता है.

भारत में राष्ट्रीय शोक का इतिहास देखा जाए तो आज तक कम से कम 1 दिन और अधिक से अधिक 7 दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया है।भारत सरकार ने कुवैत के अमीर, शेख सबा अल-अहमद अल-जबर अल-सबा के सम्मान के रूप में पूरे भारत में राष्ट्रीय शोक की घोषणा कर सकती है लेकिन अपने ही देश के सबसे बड़े सैन्य अधिकारी के निधन पर उसे राष्ट्रीय शोक की घोषणा की जरूरत महसूस नहीं होती।

देश की शोक की अनुभूति और स्तर को मापने का आखिर पैमाना क्या है । हमारे यहां प्राकृतिक आपदाओं में हजारों लोग मर जाएँ,महामारी लाखों को निगल ले किन्तु राष्ट्र में कोई शोक नहीं मनाया जाता। सही भी है सरकार सभी को राष्ट्रीय शोक के लायक नहीं मान सकती। सरकार को शोक केवल नेताओं के मरने पर होता है ,क्योंकि नेता ही देश का भाग्यविधाता है ,वो ही देश के लिए सर्वस्व न्योछावर करता है।

क्यों नहीं बदल देते राष्ट्रीय शोक (National Mourning) के नियम ?

देश जनरल रावत के लिए आधिकारिक रूपसे भले राष्ट्रीय शोक की घोषणा न करे किन्तु देश में हर नागरिक का दिल शोक में डूबा है। आप राष्ट्रीय ध्वज आधा झुकाएं या न झुकाएं लेकिन जनरल रावत के प्रति लोगों का मस्तक उनके प्रति शृद्धा में नत है। बहुत से मुद्दों पर आप जनरल रावत से सहमत नहीं हो सकते किन्तु वे देश के शीर्ष सैनिक थे इससे किसी को इंकार नहीं हो सकता।

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उन्होंने अपने ढंग से देश की सेनाओं के मनोवल को बढ़ाया। मुमकिन है कि वे जीवित रहते तो 2024 के बाद देश के रक्षामंत्री बनते। देश के एक जनरल मौजूदा सरकार में मंत्री हैं ही। कुल जमा जनरल रावत का निधन राष्ट्रीय शोक का प्रसंग है। हमें अपने कानून की जड़ता को तोड़ना होगा ,क्योंकि हमारे बहुत से क़ानून जनभावनाओं का प्रतिनिधित्व नहीं करते।