आया मौसम राहत और दर्द का…

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आया मौसम राहत और दर्द का…

अब पूरा मध्यप्रदेश नए मुख्यमंत्री के नजरिए से बदलाव के दौर से गुजरेगा। मुखिया की सोच के मुताबिक प्रदेश को सजाने-संवारने में सबसे अहम भूमिका अखिल भारतीय सेवा के अफसरों की और खास तौर से आईएएस-आईपीएस की होती है। प्रदेश के मुखिया की उम्मीदों पर कौन से अफसर खरा उतरने की क्षमता रखते हैं, यही सवाल अहम होता है। और इस सवाल का जवाब बहुत सारे समीकरणों में समन्वय बैठाते हुए अंततः मुखिया को तय करना पड़ता है। मध्यप्रदेश में 2023 में भाजपा की सरकार बनने के बाद वैसे तो बदलाव की बयार देर में आती, पर मुख्यमंत्री का चेहरा बदला तो यह एक्सरसाइज थोड़ा जल्दी ही शुरू होना तय था। और हौले-हौले से यह हवा बहने लगी है। तस्वीर धीरे-धीरे साफ होगी कि शिवराज के कौन-कौन से अफसर सभी समीकरणों को साधते हुए मोहन के मन में भी जगह बनाने में सफल हो पाते हैं। सर्जरी अभी माइनर है और जल्दी ही मेजर सर्जरी का दौर दिखेगा। किसको राहत मिलती है और किसको दर्द के दौर से गुजरना है, यह वक्त बताता रहेगा।
आज के ही बदलाव की बात करें तो शिव राज में कौशलेंद्र विक्रम सिंह को ग्वालियर से ट्रांसफर कर भोपाल का कलेक्टरी सौंपी गई थी, पर पलक झपकते ही कौशलेंद्र के नाम वाला वह कागज तार-तार हो गया था। वही बात कि राजतिलक होते-होते वनवास हो गया था। विक्रम का कोई उपक्रम न चल पाया था। और आशीष पर महाकाल का आशीष बरस गया था। उस समय लगा था कि कौशलेंद्र विक्रम सिंह का कलेक्टरी से स्थायी वनवास हो गया है। पर समय बदला और राजधानी की तस्वीर भी बदल गई। मोहन की ग्वालियर यात्रा और ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ आभार रथ पर सवारी का असर हाल नजर आ गया। कौशलेंद्र विक्रम सिंह का आदेश रद्द होने पर दर्द तो सभी को हुआ ही था, पर उसका इजहार करने को कोई तैयार नहीं था। कौशलेंद्र को भोपाल कलेक्टर बनने पर उस दर्द से राहत मिल गई, तो आशीष को भी आर्थिक राजधानी की कमान मिलने से सभी तरफ फीलगुड हो गया। पिछली बार एक ही दिन में आदेश निरस्त हो गया था, इस कारण इस बार कौशलेंद्र ने कोई रिस्क नहीं लिया। इधर आदेश हुआ और उधर चार्ज लेने की रस्म अदायगी कर ली। क्योंकि नौ माह पहले 3 अप्रैल की ही बात थी, तब वह भोपाल कलेक्टर बनाए गए ​थे,लेकिन पदभार ग्रहण करने से पहले आदेश बदल कर आशीष सिंह को पदस्थ कर दिया गया था। खैर इस पूरे समीकरण का खामियाजा राजा को भुगतना पड़ा, जो आर्थिक राजधानी से सीधे पर्यटन करने को मजबूर हो गए। वैसे इलैया की कार्यशैली ने उनके मातहतों को ही सबसे ज्यादा मायूस कर रखा था। उन मातहतों के दिल में आशीष के आने की खबर से खुशी की नदियां बह रही होंगी या यूं भी कहा जा सकता है कि इलैया के जाने से मन में पटाखे फूट रहे होंगे। इधर मोहन हैं, तो उधर गोपाल के हिस्से में खुशी आना लाजिमी है। यह गोपाल प्रशासनिक हैं।
खैर अब मेजर सर्जरी में साफ होना ही है कि मोहन राज में कौन मुख्यधारा में काज करेगा और कौन मुख्यधारा में आने के लिए संघर्ष की धारा में बहेगा। बड़ी-बड़ी सूचियां अभी इंतजार कर रही हैं, जिसमें राहत और दर्द के रंग समाए रहेंगे…।