‘राम’ से ‘मर्यादा’ की सीख लें विधायक…

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‘राम’ से ‘मर्यादा’ की सीख लें विधायक…

इन दिनों पूरे देश में ‘राम’ नाम की लहर है। अयोध्या में भव्य राम मंदिर तैयार हो रहा है। 22 जनवरी 2024 इतिहास में दर्ज होने वाली है, जब बाल स्वरूप में राम की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा होगी। जब राम का नाम आता है तो राम राज्य की बात भी अक्सर जुबां पर आ ही जाती है। यह जिक्र करने का सीधा सा मतलब मध्यप्रदेश विधानसभा में विधानसभा सदस्यों के लिए आयोजित दो दिवसीय प्रबोधन कार्यक्रम से भी है। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने इस बात पर जोर दिया कि सदस्यों को मर्यादा में रहना चाहिए। संविधान में सदन में मर्यादित आचरण की सीख दी गई है, लेकिन सदस्य इनका उल्लंघन कर और अमर्यादित आचरण प्रदर्शित कर लोकतांत्रिक व्यवस्था की गरिमा कम करते हैं।
बात जब ‘मर्यादा’ की होती है तो सनातन धर्मावलंबियों के मुंह पर भगवान राम का नाम स्वत: ही आ जाता है। राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम से भी जाना जाता है। तो क्या विधायकों, मंत्रियों, मुख्यमंत्री और सत्ता में सभी पदों पर बैठे जिम्मेदारों को भगवान राम से मर्यादा की सीख नहीं लेनी चाहिए। राम की मर्यादा में युद्ध की मर्यादा शामिल है तो राजा के रूप में मर्यादित आचरण की सीख भी है। भारत में जब 21वीं सदी का यह 24वां साल भगवान राम के संदर्भ में ऐतिहासिक पलों का साक्षी बन रहा है,‌ तब सभी जनप्रतिनिधियों को राम से मर्यादित आचरण में सेवक की तरह समर्पण भाव से जन-जन की सेवा करने की सीख लेनी ही चाहिए।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि विधानमंडल गंभीर बहस और चर्चा के महत्वपूर्ण मंच हैं। मतभेद होने पर सभा के कामकाज में बाधा नहीं आने देनी चाहिए। यह सुनिश्चित करना प्रत्येक विधायक का दायित्व है कि विधायी संस्थाओं के समय का उपयोग सार्थक रूप से जनता के कल्याण के लिए हो। विधान मंडलों में अनुशासन और शालीनता की कमी और सदस्यों के अमर्यादित आचरण से विधानमंडल की गरिमा कम होती है, जिससे लोकतंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। प्रत्येक जनप्रतिनिधि राष्ट्र की आशाओं और आकांक्षाओं का रक्षक है। जनता अपने बेहतर भविष्य के लिए जनप्रतिनिधियों पर विश्वास करती है।तो मध्यप्रदेश विधानसभा अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर ने अपेक्षा जताई कि मध्यप्रदेश विधानसभा के गरिमावान सदस्यों से प्रदेश की विधानसभा की प्रतिष्ठा पूरे देश में बढ़ेगी। विधायकों के लिए आवश्यक है‍ कि अपनी बात रखते समय उनका जोश दिखे, परंतु क्रोध पूरी तरह से नियंत्रण में हो।
भरत के लिए आदर्श भाई, हनुमान के लिए स्वामी, प्रजा के लिए नीति-कुशल व न्यायप्रिय राजा, सुग्रीव व केवट के परम मित्र और सेना को साथ लेकर चलने वाले व्यक्तित्व के रूप में भगवान राम को पहचाना जाता है। उनके इन्हीं गुणों के कारण उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नाम से पूजा जाता है। भगवान राम विषम परिस्थितियों में भी नीति सम्मत रहे। उन्होंने वेदों और मर्यादा का पालन करते हुए सुखी राज्य की स्थापना की। स्वयं की भावना व सुखों से समझौता कर न्याय और सत्य का साथ दिया। फिर चाहे राज्य त्यागने, बाली का वध करने, रावण का संहार करने या सीता को वन भेजने की बात ही क्यों न हो।
भगवान श्री राम श्रेष्ठ राजा थे। उन्होंने मर्यादा, करुणा, दया, सत्य, सदाचार और धर्म के मार्ग पर चलते हुए राज किया। इस कारण उन्हें आदर्श पुरुष और मर्यादा पुरुषोत्तम भी कहा जाता है। भगवान राम में अनेक गुण हैं, जोकि हर व्यक्ति में जरूर होना चाहिए। और एक जनप्रतिनिधि यानि पंच से लेकर प्रधानमंत्री तक में इन गुणों की अपेक्षा हर नागरिक करता है। ऐसे में मध्यप्रदेश विधानसभा में प्रबोधन कार्यक्रम में विधायकों से भी मर्यादा पुरुषोत्तम राम के आचरण का पालन करने की अपेक्षा अनिवार्य तौर पर की जाती है। तब सदन में भी उनका आचरण मर्यादित रहेगा और सड़क पर भी वह मर्यादा में रहेंगे। तभी एक श्रेष्ठ शासन की कल्पना चरितार्थ हो सकेगी…।