आओ अयोध्या को दिल में बसाते हैं…
हर रामभक्त अयोध्या में बाल स्वरूप राम की प्राण प्रतिष्ठा का साक्षी नहीं बन सकता है। हर रामभक्त प्राण प्रतिष्ठा के दिन अयोध्या में नहीं बस सकता है। हर रामभक्त का दिल प्राण प्रतिष्ठा के दिन अयोध्या में नहीं धड़क सकता है। आओ हम सब ऐसे रामभक्त अपने-अपने दिलों में अयोध्या को बसाते हैं। अपने दिलों में अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठित हो सनातन को महकाने वाले बाल स्वरूप राम के दिल की धड़कनों को महसूस करते हैं। कहते हैं कि एक पल भी भगवान को दिल से याद कर लिया, तब भी इंसान भवसागर पार हो सकता है। तो आओ हम सब राम भक्त 22 जनवरी 2024 में उस पल को अपनी जिंदगी का सौभाग्य बनाने के साक्षी बनें। जब केवल बाल स्वरूप राम की तोतली आवाज हमारे कानों को सुनाई दे। जब राम के तन की सुगंध हमारे नथुनों से होकर पूरे तन में समा जाए। जब हमारी आंखें अयोध्या में अपने आंगन में इठलाते, दौड़ लगाते और मचलते राम के दृश्य देखने को मचलती रहें। हमारा मन बालक राम में रम जाए और हमारा तन उस बालक राम से एकाकार हो जाए। क्या ऐसी अभिलाषा कभी मन में जागी है? क्या कभी ऐसी हूक उठी है कि मेरे तो बस रामचंद्र दूजा न कोई रे ? क्या कभी उस बालक राम से मिलने के लिए दिल तड़प उठा है? अगर उत्तर हां में है, तो सच मानिए की बाल स्वरूप राम की प्राण-प्रतिष्ठा के दिन अयोध्या जाने की जरूरत कतई नहीं है। उस दिन तो राम बस आपके पास आने वाला है। पूरी अयोध्या दिल में धड़कने वाली है और सरयू नदी दिल के तट पर बहने वाली है। राम की पैजनियां की मधुर झुनझुन कानों से टकराकर मन को मंत्रमुग्ध करने वाली है। और उनका ठुमक-ठुमककर चलना हमारे रोम-रोम में बस जाने वाला है। अगर उत्तर नहीं में है, तब भी कोई बात नहीं है। आओ हम सब उस दिन राम को और अयोध्या को अपने दिल में बसाने की कामना करते हैं। तन और मन रूपी झोपड़ी के भाग्य उस दिन जगाने के लिए उम्मीदों के अखंड दीपक जलाते हैं। उस चाहत की अखंड लौ में समाकर राम बाल स्वरूप में आने को मचल पड़ेंगे और अयोध्या दिल में बसी नजर आएगी और सरयू दिल के तट पर कल-कल बहकर इठलाएगी।
राम के बाल स्वरूप की मनमोहक तस्वीर रामचरित मानस में बालकांड में वर्णित है। तुलसीदास जी ने जब राम के बारे में सोचा होगा और उसे कलमबद्ध करने का मन बनाया होगा, तब ही वह हिम्मत हार गए होंगे। बालकांड की शुरुआत तुलसी की मन:स्थिति की गवाही दे रही है। राम का बालस्वरूप इतना विस्तार लिए है कि तुलसी की रामचरित में बालकांड सबसे बड़ा है। रामचरित मानस के सात काण्डों के नाम हैं – बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, लंकाकाण्ड (युद्धकाण्ड) और उत्तरकाण्ड। छन्दों की संख्या के अनुसार बालकाण्ड और किष्किन्धाकाण्ड क्रमशः सबसे बड़े और छोटे काण्ड हैं। बालकाण्ड वाल्मीकि कृत रामायण और गोस्वामी तुलसीदास कृत श्री राम चरित मानस का प्रथम भाग (काण्ड या सोपान) है। बालकाण्ड में प्रभु श्री राम के जन्म से लेकर राम सीता विवाह तक के घटनाक्रम आते हैं। गोस्वामी तुलसीदास कृत श्री राम चरित मानस के बाल काण्ड में 7 श्लोक, 341 दोहा, 25 सोरठा, 39 छंद एवं 358 चौपाई हैं।
तुलसीदास जी सरस्वतीजी और गणेशजी की वंदना करता हैं। पार्वतीजी और श्री शंकरजी की वंदना करते हैं। शंकर रूपी गुरु की वन्दना करते हैं। कवीश्वर श्री वाल्मीकिजी और कपीश्वर श्री हनुमान जी की वंदना करते हैं। सीताजी और राम कहलाने वाले भगवान हरि की की वंदना करते हैं। मूक होइ बाचाल पंगु चढ़इ गिरिबर गहन। जासु कृपाँ सो दयाल द्रवउ सकल कलिमल दहन। ऐसे दयालु से दया की याचना करते हैं। क्षीरसागर पर शयन करते भगवान् नारायण को अपने हृदय में निवास करने की प्रार्थना करते हैं। कामदेव का मर्दन करने वाले शंकरजी की कृपा का अनुनय करते हैं। गुरु की वंदना करते हैं। बताते हैं कि गुरु महाराज के चरणों की रज कोमल और सुंदर नयनामृत अंजन है, जो नेत्रों के दोषों का नाश करने वाला है।उस अंजन से विवेक रूपी नेत्रों को निर्मल करके मैं संसाररूपी बंधन से छुड़ाने वाले श्री रामचरित्र का वर्णन करता हूं।ब्राह्मण-संत वंदना, खल वंदना,संत-असंत वंदना,रामरूप से जीवमात्र की वंदना करते हैं। तुलसीदास जी अपनी दीनता और राम भक्तिमयी कविता की महिमा बताते हैं। कवि की वंदना करते हैं। बार-बार वाल्मीकि, वेद, ब्रह्मा, देवता, शिव, पार्वती आदि की वंदना करते हैं।श्री सीताराम-धाम वंदना और श्री नाम वंदना और नाम महिमा का बखान करते हुए तुलसीदास हिम्मत बटोरते हैं और अपने अंत:करण को सुख देने वाले राम के चरित पर कलम चलाते हैं।
इस पूरे वृतांत का सीधा सा मतलब यही है कि राम के बारे में सोचने के लिए किस तरह का मानस होना अनिवार्य है। इसका वर्णन ही तुलसीदास जी ने बालकांड की शुरुआत में किया है। उस बालस्वरूप राम को महसूस करना है, तो अयोध्या जाने की चाह रखने वाले रामभक्त को बालकांड तो अवश्य ही पढ़ लेना चाहिए। और जब कोई बालकांड को आत्मसात करेगा, तो तुलसी जैसा बनने की चाहत मन में अंकुरित होगी। और जब उन गुणों को अपने जीवन में उतारेगा, तो बालस्वरूप राम उस रामभक्त की गोदी में बैठने के लिए खुद चलकर आ जाएंगे और उसके आंगन में पैंजनिया बजाते हुए ठुमक-ठुमककर चलेंगे, दौड़ेंगे, गिरेंगे, रोएंगे और जब उन्हें चुप कराएंगे तो मुस्कराएंगे और खिलखिलाएंगे। तो आओ अयोध्या को दिल में बसाते हैं…राम खुद ही चले आएंगे…।