Boycott Ram Mandir Invitation:ये राष्ट्रीय कांग्रेस है या रोम कांग्रेस ?

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Boycott Ram Mandir Invitation:ये राष्ट्रीय कांग्रेस है या रोम कांग्रेस ?

वैसे तो यह तय था कि कांग्रेस नेता राम मंदिर निर्माण और राम लला के प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम में नहीं जायेंगे। फिर भी उनके सामने एक मौका था कि वे अपने ऊपर लगातार लग रहे हिंदू विरोधी ठप्पे से थोड़ी राहत पा लेते, लेकिन वे एक और जबरदस्त ऐतिहासिक गलती कर बैठे, जो अब युगों तक ठीक नहीं कर पायेंगे। रामायण की एक चौपाई याद आ रही है-

जाको प्रभु दारुण दुख देही,ताकि मति पहले हर लेही..।

सो कांग्रेस का मति भ्रम बरकरार रहा और उसने काफी सोच-विचार के बाद फैसला किया कि इस प्राण प्रतिष्ठा में न जाया जाये, क्योंकि यह तो भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का राजनीतिक कार्यक्रम है। यदि है तो पहले से ही है,उसमें नया क्या है? तब पहले ही कह देते कि हम नहीं जायेंगे। यूं यह अच्छा भी है कि एक सनातनी सम्मान के प्रतीक की पुनर्स्थापना के युगातंरकारी आयोजन से विघ्नकारी तत्व खुद ही अलग हो रहे हैं। जैसा कि समाजवादी पार्टी,तृणमुल कांग्रेस वगैरहग,वगैरह ने भी इसमें न जाने का एलान कर ही रखा है। कम अस कम वे इस बारे में स्पष्ट थे तो पहले ही खुलासा कर दिया था, किंतु कांग्रेस हमेशा की तरह दुविधाग्रस्त रही और गच्चा खा गई।

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एक और बात। जो यह कह रहे हैं कि यह भाजपा और संघ का आयोजन है तो इसमें गलत क्या है ? 1990 के बाद से भारतीय जनता पार्टी ने इसे राजनीतिक मुद्दा बनाया और संकल्प लिया कि कसम राम की खाते हैं, मंदिर वहीं बनायेंगे तो भाजपा ने तो अपने इस वादे को किस प्रामाणिकता के साथ पूरा किया,इसे दुनिया देख रही है। जो राम सात तालों में कैद थे। जो न्याय व्यवस्था की बेड़ियों में बरसोबरस जकड़े रहे। जो रामलला बरसाती,खप्पर की छत के नीचे अपमानजनक स्थितियों में विराजमान रहे,उससे भाजपा,संघ,विश्व हिंदू परिषद व संत समाज के अथक प्रयासों से उबारा व सम्मानजनक हालात बनाये तो आज कोई सवाल पूछने का हकदार कैसे हो जाता है? देश के किस राजनीतिक दल के पास इस मौके को भुनाने का मौका नहीं मिला? लेकिन जब ऐसा अवसर आया तो उन्होंने तो राम के अस्तित्व को नकारने का और राम भक्तों पर गोलियां बरसाने में अधिक फायदा नजर आया तो आज अफसोस क्यों? मातम क्यों मना रहे हैं? राजनीति भी छाती-कूटे से नहीं रणनीति से चलती है। यदि गैर भाजपा विपक्ष इसमें विफल रहा है तो उसे अपनी रीति-नीति पर फिर से विचार करना चाहिये, बजाय इसके कि वे राम मंदिर के निर्माण,प्राण-प्रतिष्ठा के पुनीत कार्य में अपशुकन पैदा करें ,विघ्न ख़डे करें या विरोध प्रदर्शित करें।

कांग्रेस के इस कदम से इस बात की ही पुष्टि हुई है कि वह अपनी तुष्टिकरण की नीति को जारी रखेगी या उबरना नहीं चाहेगी। यह और बात है कि जिस मुस्लिम तुष्टिकरण के तहत वह इस तरह के फैसले लेती रहती है, वह अब एकतरफा उसके साथ है ही नहीं। वह तो प्रांतीय स्तर पर नफे-नुकसान के आधार पर राजनीतिक दल का चयन करते हैं। जबकि कांग्रेस उसे अपना स्थायी वोट बैंक मानने के भ्रम से घिरी बैठी है। कांग्रेस के इस बयान का कांग्रेस के भीतर जो विरोध और असहमति है, वह अपनी जगह, लेकिन देश के आमजन के बीच जो संदेश गया है, वह उसके लिये ज्यादा घातक और नुकसादायक साबित होगा।

 

सोशल मीडिया के इस दौर में कांग्रेस के इस फैसले के सामने आने के तत्काल बाद से उसकी घनघोर आलोचना का सिलसिला प्रारंभ हो चुका है और इस तरह की पोस्ट की बाढ़ आ गई है, जो यह बताती है कि वह मुस्लिम तुष्टिकरण के साथ ईसायत को तो बढ़ावा देती रही है, तब राम मंदिर के कार्यक्रम में जाने से क्या दिक्कत है? याद रहे कि जो कांग्रेस और सोनिया गांधी धर्म को निजी आस्था का विषय बताते हैं,उसी कांग्रेस व सोनिया गांधी ने 30 अगस्त 2016 को पोप को पत्र लिखकर मदर टेरेसा को संत का दर्जा प्रदान करने पर करोड़ों भारतीयों की ओर से आभार प्रकट करते हुए पत्र लिखा था, जिसे सोशल मीडिया पर भी पोस्ट किया था। पत्र में देश के दो करोड़ ईसाइयों की ओर से भी आभार माना था।

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कांग्रेस के इस कदम की चौतरफा अआलोचना हो रही है और छुटपुट कार्यकर्ताओं के इस्तीफे भी सामने आ रहे हैं। उसका यह कदम चुनावी वर्ष में भारी नुकसान पहुंचाने वाला भी माना जा रहा है। कुछ बड़े नेता भी नाराज बताये जा रहे हैं, लेकिन सामने कोई नहीं आ रहा । वैसे इतना तय है कि लोकसभा चुनाव से पहले कुछ वे कांग्रेसी नेता जरूर भाजपा में जा सकते हैं जो अभी तक उचित समय की प्रतीक्षा कर रहे थे। इस घोर हिंदू विरोधी कदम से उन्हें बल मिलेगा।

 

कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सोनिया गांधी के आसपास कुछ ऐसे सलाहकार हैं, जो उन्हें भ्रमित करते हैं या गलत जानकारी देते हैं । यह बात मुझे कतई सही नहीं लगती । अपने जीवन के पांच दशक(1968 में राजीव गांधी से विवाह के बाद ) से अधिक भारत में बिताने के बाद सोनिया भारत की संस्कृति,संस्कार,जनजीवन,धर्म,परंपरा आदि को नहीं जानती है,इससे बचकाना सोच कुछ हो नहीं सकता। जब वे मुस्लिम,ईसाई धर्म की बारीकियों को समझ सकती हैं, राजनीतिक नफे-नुकसान को जानती हैं,राजनीतिक दांव पेंच जानती हैं,चुनावी बेला में राहुल-प्रियंका को गंगा स्नान,तिलक-पूजा,मंदिर-जनेऊ के प्रदर्शन से नहीं रोकती तो क्या वे इतना नहीं जानती होंगी कि श्री राम भारत के लिये क्या हैं और अयोध्या में राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा का क्या महत्व है?

 

वैसे भी यह पहला मौका तो है नहीं, जब कांग्रेस या राजीव गांधी या सोनिया गांधी ने हिंदू धर्म की मान्यताओं,परंपराओं की उपेक्षा की हो। यह तो जवाहरलाल नेहरू के समय से होता आया है। वे नेहरू ही थे, जिन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार कार्यक्रम में जाने से मना किया था। वे गये, यह अलग बात है। 1947 से पहले से ही राम जन्म भूमि का विवाद चलता रहा, लेकिन कभी कांग्रेस ने न्यायालय से बाहर इसके हल की किंचित कोशिश नहीं की। कल्याण सिंह की सरकार को बर्खास्त इसी कांग्रेस सरकार ने किया था। सैकड़ों गो सेवकों पर दिल्ली में गोलियां इसी कांग्रेस सरकार की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बरसाई थीं। कांचि काम कोटि पीठ के शंकराचार्य को दिवाली के दिन पूजा करते हुए से उठाकर इसी कांग्रेस की पुलिस ले गई थी।

 

ये तो छोड़ो, इन्हीं राम को मिथक कांग्रेस ने ही तो माना था। रामेश्वरम में जहाजों के लिये रास्ता बनाने के उद्देश्य के आड़े आ रहे राम सेतु के अस्तित्व से इसी कांग्रेस सरकार ने इनकार किया था। राम जन्म भूमि के खिलाफ मुस्लिम पक्ष के वकील इसी कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे थे। इसलिये प्राण प्रतिष्ठा में न जाना तो बनता ही था। वैसे,एक बात की प्रशंसा करना होगा कि कांग्रेस अब अपनी हिंदू विरोधी छवि को,ईसाई प्रेम को,मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति को और कांग्रेस को राजनीतिक दल की बजाय गांधी परिवार की निजी संपत्ति मानने के भाव को छुपाती नहीं है।

चलते—चलते राम चरित मानस की एक और चौपाई—

सकल पदारथ हैं जग माहीं

भागहीन नर पावत नाहीं।

 

थोड़ा लिखा,ज्यादा समझें।