स्मृति शेष : प्रभा अत्रेत- पस्वी सुर गायिका का दैदीप्यमान आभामंडल!
प्रभा अत्रे के निधन से एक ऐसी पीढ़ी का अंत हुआ है जो जीवन को संगीत के प्रति पूर्ण समर्पित कर देते थे। प्रभा जी ने शास्त्रीय संगीत न केवल गाया बल्कि लेखन भी किया और नए शिष्य भी तैयार किए। नवोदित कलाकारों को मंच भी उपलब्ध करवाएं और देश विदेश में भारतीय शास्त्रीय संगीत की अलख भी जगाई। और ऐसा करते हुए उन्होंने अन्य विषयों की भी पढ़ाई की जो अपने आप में उन्हें बिरला संगीतज्ञ बनाती थी। मात्र 8 वर्ष की उम्र से शास्त्रीय गायन की शिक्षा प्राप्त की। पिता आबासाहेब व माता इंदिराबाई को भी शास्त्रीय संगीत का शौक था और मां इंदिराबाई अत्रे शास्त्रीय संगीत सीखती थी और अपनी मां से प्रेरणा पाकर प्रभा जी ने भी आठ वर्ष की छोटी उम्र से शास्त्रीय संगीत का प्रशिक्षण लिया।
हीराबाई अपनी इस शिष्या को देश के विभिन्न शहरों में कार्यक्रमों के दौरान ले जाती थी जिससे प्रभा जी को महफिल में किस प्रकार से गाया जाता है इसका अंदाजा होने लगा। प्रभा जी शास्त्रीय संगीत का प्रशिक्षण ले रही थी पर साथ में पढ़ाई पर भी पूर्ण ध्यान था। उन्होंने विज्ञान और लॉ की पढ़ाई भी और और बाद में संगीत में डॉक्टरेट भी किया। प्रभा अत्रे का ख्याल गायन अपने आप में अप्रतिम था। परंतु उन्होंने इसके साथ ठुमरी, गजल, उपशास्त्रीय संगीत, दादरा, नाट्य संगीत, भजन, भाव संगीत के क्षेत्र में भी खूब कार्य किया। इतना ही नहीं वे भारतीय शास्त्रीय संगीत को विदेश में लोकप्रियता कैसे मिले इसके लिए भी लगातार कार्य करती रही।
जागू मैं सारी रैना बलमा
प्रभा अत्रे जी को 1990 में पद्मश्री वर्ष 2002 में पद्म भूषण और वर्ष 2022 में पद्मविभूषण सम्मान प्राप्त हुआ था। कई पुस्तकें भी लिखी जिसमें स्वरमयी, सुस्वराली, स्वरांगिणी, स्वर रंजिनी प्रमुख है। इसके अलावा उन्होंने अपना काव्यसंग्रह अंत:स्वर भी प्रकाशित किया था। उन्होंने पुणे में स्वरमयी गुरुकुल की भी स्थापना की और परंपरागत तरीके से गुरु शिष्य परंपरा के अनुरूप भारतीय शास्त्रीय संगीत का प्रशिक्षण देती थी। प्रभा जी परंपरा के साथ समकालीन संगीत को भी शामिल करती थी इस कारण वे अद्यतन बनी रही। प्रभा अत्रे फाउंडेशन के माध्यम से उन्होंने कई कलाकारों को मंच उपलब्ध करवाया। प्रभा जी की स्वरचित कई बंदिशे बेहद लोकप्रिय रही जिसमें सबसे प्रसिद्ध राग मारू बिहाग जागू मैं सारी रैना बहुत सुनी जाती है। इसके अलावा कलावती राग की तन मन धन, किरवाणी राग की नंद नंदन प्रसिद्ध है।
इसके अलावा प्रभा जी ने अपूर्व कल्याण, मधुर कंस, पटदीप-मल्हार, तिलंग भैरव, भीमकली, रवी भैरव जैसे नए रागों की भी रचना की। इसके अलावा प्रभा जी जो किराना घराने का प्रतिनिधित्व करती थी ने किराना घराने में टप्पा गायन की परंपरा डाली। इतना ही नहीं प्रभा जी ने युवावस्था में संगीत नाटकों जैसे संगीत शारदा,संगीत विद्याहरण, संगीत संशयकल्लोळ, संगीत मृच्छकटिका, बिरज बहू, लिलाव जैसे नाटकों में स्त्री भूमिका निभाई।
वे उस्ताद अमीर खां साहब और बड़े गुलाम अली खां साहेब की गायकी से बेहद प्रभावित थी। उन्होंने आकाशवाणी में भी अपनी सेवाएं थी। इसके अलावा वे कई विदेशी युनवर्सिटीज में विजिटिंग प्रोफेसर भी रही। फिल्म सेंसर बोर्ड की सलाहकार समिति में भी थी। निश्चित रूप से प्रभा अत्रे जी का जाना एक ऐसे युग का समाप्त होना है जो संगीत को ही अपना जीवन मानते थे।