राज- काज: मोहन जी, भ्रष्टाचार के खिलाफ काम की भी जरूरत….
– मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने 13 जनवरी को अपने कार्यकाल का एक माह पूरा कर लिया। इस दौरान गुना कांड पर कार्रवाई और ड्राइवर को अपमानित करने वाले शाजापुर कलेक्टर के खिलाफ एक्शन से वे अपने काम की दिशा का संकेत देने में सफल रहे। मांस, मछली की खुले में बिक्री पर प्रतिबंध, धार्मिक स्थलों से कानफाेड़ू लाउडस्पीकर की आवाज से निजात और अपराधियों के घरों में बुलडोजर जैसे उनके कई साहसिक निर्णय पहले माह में ही लिए गए। इन्हें देख लोग मोहन सरकार की उप्र की योगी सरकार से तुलना करने लगे।
प्रदेश की एक और समस्या है, हर स्तर पर फैला भ्रष्टाचार। अफसरों की हिमाकत देखिए कि प्रहलाद पटेल जैसे सीनियर मंत्री का ओएसडी उस उप श्रमायुक्त लक्ष्मी प्रसाद पाठक को बना दिया गया, जिस पर भ्रष्टाचार का आरोप सिद्ध हो चुका है और लोकायुक्त ने नवंबर 23 में उसके खिलाफ अभियाजन की स्वीकृति मांग ली थी। प्रहलाद ने यह नियुक्ति रद्द कर दी। क्या भ्रष्टाचार से जुड़े इस मामले में नियुक्ति रद्द करना ही पर्याप्त है? क्या संबंधित अधिकारी के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति देकर नियुक्ति देने वाले अफसर के खिलाफ भी कार्रवाई नहीं होना चाहिए। यह तो एक मामला है, भ्रष्टाचार के ऐसे सैकड़ों मामले मिल जाएंगे। मोहन जी, लोग आपसे भ्रष्टाचार के मामले में भी कड़े रुख की अपेक्षा कर रहे हैं।
हाई-लो प्रोफाइल के बीच सीएम का खास मंत्री कौन….?
– नई सरकार बनने के बाद मंत्रियों को लेकर कई तरह की चर्चा होती है। कुछ हाई प्रोफाइल मंत्री होते हैं तो कुछ लो प्रोफाइल। एक-दो मंत्री मुख्यमंत्री के सबसे खास होते हैं, सरकार में इनकी पूछपरख सबसे ज्यादा होती है। लिहाजा, इस समय खोज मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के सबसे खास मंत्री की हो रही है। एक महीने की मोहन सरकार में कैलाश विजयवर्गीय हाई प्रोफाइल मंत्री बनकर उभरे हैं। उन्हें उनकी पसंद का नगरीय प्रशासन विभाग मिला है।
वे संसदीय कार्यमंत्री भी है, इस नाते सरकार के प्रवक्ता भी। वे अपेक्षाकृत सबसे ज्यादा सक्रिय भी दिख रहे हैं। वे मोहन यादव के सबसे निकट भी हैं, इसे लेकर तस्वीर साफ नहीं है। उप मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला और जगदीश देवड़ा, राकेश सिंह और प्रहलाद पटेल भी ताकतवर मंत्री हैं लेकिन इनमें भी कौन मुख्यमंत्री का सबसे खास है, यह पहेली बना हुआ है। वजह यह भी है कि मंत्रिमंडल में ये सभी भाजपा नेतृत्व की मर्जी से शामिल किए गए हैं। इनमें कोई ऐसा नहीं है, जिसे मोहन यादव ने टिकट दिलाया हो और उसे इसकी वजह से मंत्रिमंडल में शामिल किया गया हो। हालांकि जैसे-तैसे मंत्री बने अधिकांश सदस्य लो-प्रोफाइल रह कर ही काम कर रहे हैं। यह उनकी समझदारी का परिचायक भी है। मुख्यमंत्री का सबसे खास मंत्री कौन बनता है, राजनीतिक हलकों में उस चेहरे का इंतजार है।
गोपाल- भूपेंद्र का उपयोग करने की तैयारी में भाजपा….!
– बुंदेलखंड के सागर जिले के दो दिग्गज गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह इस बार राज्य मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किए गए, लेकिन भाजपा नेतृत्व इन्हें महत्वपूर्ण भूमिका में लाने की तैयारी में है। गोपाल की अपनी पहचान है जबकि भूपेंद्र को पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का खास माना जाता है।
लोकसभा चुनाव की दृष्ट से देखें तो दमोह सीट से सांसद रहे प्रहलाद पटेल अब नरसिंहपुर से विधायक हैं और सरकार में मंत्री। टीकमगढ़ से सांसद और केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र कुमार का टिकट इस बार कट सकता है। खजुराहो से सांसद प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा भोपाल सीट से लड़ने के इच्छुक बताए जाते हैं। सागर सांसद राजबहादुर सिंह को भी शायद ही फिर टिकट मिले। ऐसे में पार्टी नेतृत्व गोपाल और भूपेंद्र का उपयोग कर सकता है। खबर है कि भूपेंद्र को दिल्ली बुलाया गया है। वे दिल्ली पहुंच रहे हैं। भूपेंद्र के अचानक दिल्ली दौरे के कारण मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव का खुरई दौरा फिलहाल स्थगित हो गया है। वे 15 जनवरी को खुरई जने वाले थे। इधर केंद्रीय नेतृत्व द्वारा भूपेंद्र को बुंदेलखंड की चारों लोकसभा सीटों के लिए प्रभारी बनाया जा सकता है। दूसरी तैयारी गोपाल भार्गव को लोकसभा का चुनाव लड़ाने की है। यदि योजना ठीक रही तो लोकसभा चुनाव के बाद भूपेंद्र राज्य मंत्रिमंडल और गोपाल सांसद बनने के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किए जा सकते हैं।
मंत्रियों के स्टाॅफ पर आरएसएस-भाजपा की पैनी नजर….
– आमतौर पर मंत्रिमंडल के सदस्य अपना स्टॉफ खुद चुनते हैं। वे जिसकी सिफारिश करते हैं, स्टॉफ में उनकी पदस्थापना का आदेश जारी हो जाता है। लेकिन प्रहलाद पटेल के मामले से पहली बार पता चला कि मंत्री की जानकारी के बिना भी स्टॉफ की नियुक्ति हो जाती है।
यदि यह पता न चलता कि ओएसडी के तौर पर जिस अफसर की नियुक्ति हुई है, उस पर भ्रष्टाचार का आरोप सिद्ध हो चुका है और इसकी जानकारी मिलने के बाद प्रहलाद ने इस नियुक्ति को रद्द किया है तो यह तथ्य सामने ही न आता कि अफसर खुद अपनी तरफ से मंत्रियों के यहां स्टॉफ तैनात कर देते हैं। इस एक मामले की वजह से मंत्री खुद अपने स्टॉफ को लेकर सतर्क हो गए हैं। स्टॉफ की सिफारिश में वे फूंक फूंक कर कदम रखने लगे हैं। सबसे ज्यादा चौकन्ना हुआ है आरएसएस और भाजपा संगठन। तय हुआ है कि मंत्री स्टॉफ में नियुक्त पाने वाले अधिकारी-कर्मचारी की कुंडली पहले संघ देखेगा। उसकी हरी झंडी के बाद ही संबंधित को मंत्री के स्टॉफ में पदस्थ किया जाएगा। खबर यह भी है कि संघ भाजपा में काम करने वाला एक स्वयंसेवक हर मंत्री के स्टॉफ में पदस्थ करने की तैयारी में है, ताकि उसके पास हर मंत्री के कामकाज का फीडबैक रहे। मंत्रियों के स्टॉफ को लेकर सीहोर की समन्वय बैठक में भी चर्चा हुई थी। भाजपा ने इस दिशा में काम शुरू कर दिया है।
यह कांग्रेस का डैमेज कंट्रोल की दिशा में एक कदम….
कांग्रेस नेतृत्व द्वारा भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम का आमंत्रण ठुकरा देने के बाद जब समूचा संघ परिवार और भाजपा पार्टी को राम द्रोही और हिंदू विरोधी ठहराने पर आमादा है, ऐसे में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के बयान डैमेज कंट्रोल की दिशा में कदम माने जा रहे हैं। हालांकि चारों शंकराचार्यों के कार्यक्रम में जाने से इंकार के कारण कांग्रेस को अपने निर्णय का बचाव करने में ताकत मिली है।
हर कांग्रेसी सवाल उठा रहा है कि क्या अयोध्या कार्यक्रम में न जाने के कारण सभी शंकराचार्य भी राम और हिंदू विरोधी हैं? इसका संतोषजनक जवाब न भाजपा के पास है, न ही संघ परिवार के किसी अन्य नेता के पास। कमलनाथ ने पहले ही कह दिया था कि भगवान राम और अयोध्या पर भाजपा का पट्टा नहीं है। वे बाद में भगवान राम के दर्शन करने जाएंगे। इसके बाद जीतू पटवारी ने कहा है कि अधूरे मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के कारण शंकराचार्य कार्यक्रम में नहीं जा रहे हैं लेकिन जैसे ही मंदिर का पूर्ण निर्माण हो जाएगा, हम लाखों कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ जाकर भगवान राम के दर्शन करेंगे। कांग्रेस नेतृत्व भी अयोध्या और भगवान राम के मसले पर पार्टी लाइन से अलग हटकर बोलने वाले किसी नेता के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है। पार्टी इस मसले पर हर कदम सतर्कता से आगे बढ़ाती दिख रही है।