Literary Discussion : मोबाइल ने आज पढ़ने की संस्कृति ही खत्म कर दी, साहित्यिक कार्यक्रम जरूरी!

आयोजन में केवल सूद पर केंद्रित विशेषांक' का लोकार्पण किया गया!

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मोबाइल ने आज पढ़ने की संस्कृति ही खत्म कर दी, साहित्यिक कार्यक्रम जरूरी!

Mumbai : आज मैं बहुत भावुक हूँ। मेरी भावुकता का कारण यह आयोजन है, जो यहां मुंबई में हो रहा है जो मुझे कभी रास नहीं आई। मैं बनना तो फिल्म निर्देशक चाहता था पर बन गया लेखक। ‘मुर्गीखाना’ ही मेरी पहचान है।’ ये विचार वरिष्ठ कथाकार, उपन्यासकार केवल सूद ने ‘शोधावरी’ व ‘श्रुति संवाद साहित्य कला अकादमी’ द्वारा आयोजित कार्यक्रम में व्यक्त किए।

मुंबई यूनिवर्सिटी के जेपी नायक भवन में ‘केवल सूद की चर्चित कहानियां’ (इंडिया नेटबुक्स,संचयन एवम संपादन: डॉ लालित्य ललित व डॉ संजीव कुमार) व ‘कालका मेल’ के केवल सूद विशेषांक का लोकार्पण समारोह आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ रचनाकार डॉ रंजन जैदी ने की और संचालन कथाकार डॉ रमेश यादव ने किया। प्रारंभ में सरस्वती वंदना कुसुम तिवारी ने प्रस्तुत की।

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इस मौके पर डॉ हूबनाथ पांडेय ने कहा,’ आज हम केवल सूद पर कार्यक्रम नहीं कर रहे बल्कि उनकी दीर्घ रचनायात्रा के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित कर रहे हैं। मोबाइल ने आज पढ़ने की संस्कृति ही खत्म कर दी है। हम अंधेरे की और न जाएं इसलिए जरूरी है ऐसे कार्यक्रम होते रहें।’

कथाकार,पत्रकार हरीश पाठक ने कहा कि आज हम उस लेखक के साथ हैं जिसकी कृति ‘मुर्गीखाना’ से उन्हें अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली। इसका कई भाषाओं में अनुवाद हुआ है।यह उपन्यास उस दौर में लिखा गया था जब समलैंगिकता पर सोचना तक अपराध था।इसके कुछ अंश सबसे पहले कालजयी लेखिका अमृता प्रीतम ने पंजाबी की मशहूर पत्रिका ‘नागमणि’ में छापे थे। उसके बाद यह उपन्यास चर्चा के केंद्र में आ गया।केवल सूद जीवन से उठाते हैं कथ्य,कल्पना से नहीं।यही उनकी ताकत है।’

इस अवसर पर आभा दवे, शोभा स्वप्निल, ऊषा साहू, डॉ नीलिमा पांडेय, कुसुम तिवारी, प्रतिमा चौहान व रोहित ने ‘कालका मेल’ में केवल सूद पर छपे लेखों का पाठ किया। डॉ अवधेश राय व डॉ कृष्णकुमार मिश्र,भट्टी ने अपने विचार रखे। इस मौके पर विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं सहित लीना जैदी, प्रणया सुर्वे सहित तमाम साहित्य प्रेमी उपस्थित थे।