Politico Web: सच कहा था, मुझे मां गंगा ने बुलाया है
2014 के लोकसभा चुनाव में सोमनाथ क्षेत्र से आए काशी विश्वनाथ की वाराणसी से पहली बार नामांकन पत्र भरते समय नरेंद्र मोदी ने जब कहा था कि पहले मैं सोच रहा था कि भारतीय जनता पार्टी ने मुझे यहां भेजा, फिर लगता था कि शायद मैं काशी जा रहा हूं, पर आज यहां आने के बाद लगता है न मुझे किसी ने भेजा है, न मैं यहां आया हूं, मुझे तो मां गंगा ने बुलाया है। मोदी के इस बयान को लेकर लोगों ने काफी मजाक बनाया व उनका मखौल उड़ाया पर विक्रम संवत् 2078, मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष, दशमी तिथि यानी 13 दिसंबर 2021 को 800 करोड़ की लागत से बने नव्य एवं भव्य काशी विश्वनाथ धाम का लोकार्पण करके लगभग 8 वर्ष पहले कही गई अपनी बात को सही सिद्ध कर दिया।
400 घरों के विस्थापन के बाद 43 प्राचीन मंदिरों के मिलने से चिर चैतन्य काशी की चेतना में अब एक अलग ही स्पंदन है। यहां आसपास जो अनेक प्राचीन मंदिर थे, जिन्हें म्लेच्छ विधर्मी विनष्ट करने में असफल रहे थे, उन्हें सायास अन्य भवन बना कर आच्छादित कर दिया गया था ताकि कोई भारत की इस गौरवशाली सांस्कृतिक धरोहरों के बारे में जान ही न सके। मोदी-योगी की जोड़ी ने उन्हें भी पुनः स्थापित कर के उनकी कुत्सित चालों को बेनकाब कर दिया है।
अब आदि काशी की अलौकिकता में एक अलग ही आभा है। अब शाश्वत बनारस के संकल्पों में एक अलग ही सामर्थ्य दिख रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने देर रात काशी की मशहूर गलियों में घूमकर लोगों से सांसद के तौर पर मुलाकात कर संदेश दिया कि वे आज भी जमीन से जुड़े नेता ही है। इसी कारण आज काशी विश्वनाथ धाम अकल्पनीय-अनंत ऊर्जा से भरा हुआ है। इसका वैभव शनै शनै विस्तार ले रहा है।
विश्वनाथ धाम के लोकार्पण से हिन्दु विरोधी सभी दलों के कलेजों पर सांप लोटने लग गए हैं। तभी तो सपा के अखिलेश यादव ने तल्खी भरे अंदाज में कहा है कि आखिरी समय में बनारस में रहने की परंपरा है, मोदी को भी वहीं रहना चाहिए। उप्र भाजपा के अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह ने भी अखिलेश यादव को औरंगजेब की विचारधारा व विकृत मानसिकता वाला बता कर हिसाब बराबर कर दिया।
विश्वनाथ धाम के नए कारिडोर में 4 भव्य द्वार बनाए गए हैं पर ये पूरा नया परिसर एक भव्य भवन भर नहीं है, ये हमारी भारतीय सनातन संस्कृति और आध्यात्मिक आत्मा का प्रतीक है। यह भारत की प्राचीन परम्पराओं का प्रतीक है। भारत की ऊर्जा, गतिशीलता के साथ यहाँ अपने अतीत के गौरव का अहसास भी सदृश्य होता है। यहां प्राचीनता और नवीनता एक साथ सजीव होती हैं और बताती हैं कि कैसे पुरातन की प्रेरणाएं भविष्य को दिशा दे रही हैं। मंदिर चौक से गंगधार व बाबाधाम के शिखर के एक साथ अद्भुत दर्शन संभव हो सकेंगे।
प्रधानमंत्री मोदी के ही शब्दों में जो माँ गंगा, उत्तरवाहिनी होकर बाबा विश्वनाथ के पाँव पखारने काशी आती हैं, वो मां गंगा भी आज बहुत प्रसन्न होंगी। अब जब हम भगवान विश्वनाथ के चरणों में प्रणाम करेंगे, ध्यान लगाएंगे, तो माँ गंगा को स्पर्श करती हुई हवा हमें स्नेह देगी, आशीर्वाद देगी। बाबा विश्वनाथ सबके हैं, माँ गंगा सबकी हैं। उनका आशीर्वाद सबके लिए हैं। लेकिन समय और परिस्थितियों के चलते बाबा और माँ गंगा की सेवा की ये सुलभता मुश्किल हो चली थी, यहाँ हर कोई आना चाहता था, लेकिन संकरे रास्तों और जगह की कमी हो गई थी। बुजुर्गों व दिव्यांगों को यहाँ आने में बहुत कठिनाई होती थी। लेकिन अब यहाँ हर किसी के लिए पहुँचना सुगम हो गया है। दिव्यांग भाई-बहन, बुजुर्ग श्रद्धालु सीधे बोट से जेटी तक आएंगे। जेटी से घाट तक आने के लिए भी एस्कलेटर लगाए गए हैं। वहाँ से सीधे मंदिर तक आ सकेंगे।
पहले विश्वनाथ धाम मंदिर क्षेत्र केवल तीन हजार वर्ग फीट में था, वो अब 5,27,730 वर्ग फीट का हो गया है यानी लगभग 175 गुना आलौकिक विस्तार।
इतिहास के पन्ने टटोले तो पता चलेगा कि ताजमहल बनानेवालों के हाथ काट दिए गए थे ताकि वे दोबारा ऐसी कृति न बना सकें। इसके विपरीत काशी मंदिर का विस्तार करने वाले श्रम साधकों पर पुष्प वर्षा ही नहीं की गई बल्कि उनका आभार जताने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके साथ बैठ कर भोजन भी किया। बस यही हिंदुत्व है।
प्रधानमंत्री ने भी माना कि मैं आज अपने हर उस श्रमिक भाई-बहनों का भी आभार व्यक्त करना चाहता हूं जिसका पसीना इस भव्य परिसर के निर्माण में बहा है। कोरोना के इस विपरीत काल में भी, उन्होंने यहां पर काम रुकने नहीं दिया।
इस वाराणसी ने इतिहास को बनते बिगड़ते देखा है। कितनी ही सल्तनतें उठीं और मिट्टी में मिल गईं। आतातायियों ने इस नगरी पर आक्रमण किए, इसे ध्वस्त करने के प्रयास किए। औरंगजेब के अत्याचार, उसके आतंक का इतिहास साक्षी है, जिसने सभ्यता को तलवार के बल पर बदलने की कोशिश की, जिसने संस्कृति को कट्टरता से कुचलने की कोशिश की। लेकिन इस देश की मिट्टी बाकी दुनिया से कुछ अलग है। यहाँ अगर औरंगजेब आता है तो शिवाजी भी उठ खड़े होते हैं! अगर कोई सालार मसूद इधर बढ़ता है तो राजा सुहेलदेव जैसे वीर योद्धा उसे हमारी एकता की ताकत का अहसास करा देते हैं।
समय चक्र में दबकर आतंक के वो पर्याय इतिहास के काले पन्नों तक सिमटकर रह गए हैं और काशी आगे बढ़ रही है,अपने गौरव को फिर से नई भव्यता दे रही है।
काशी को सिर्फ हिन्दुत्व से जोड़कर नहीं देखा जा सकता है, यह सर्वधर्म सम्भाव का भी प्रतीक है। यह भारत की सांस्कृतिक आध्यात्मिक राजधानी तो है ही, ये भारत की आत्मा का एक जीवंत अवतार भी है। यहाँ विश्वनाथ मंदिर को तोड़ा गया तो मंदिर का पुनर्निर्माण भी हुआ। महाराष्ट्र में जन्मी माता अहिल्याबाई होल्कर 1775 से 1780 के बीच मंदिर का पुनर्निर्माण ने करवाया था। उनका काशी से विशेष लगाव रहा था। उन्होंने कई घाट, महल व चबूतरे बनवाए थे। 1962 में किए गए मूल्यांकन के हिसाब से इन 21 संपत्तियों का मूल्य करीब चार लाख रुपए आंका गया था जो अब अरबों में हो गया होगा। माता अहिल्याबाई के लगाव के चलते ही मंदिर कारिडोर में उनकी प्रतिमा भी लगाई जाएगी।
बाबा विश्वनाथ मंदिर की आभा बढ़ाने के लिए पंजाब से महाराजा रणजीत सिंह ने मंदिर के शिखर पर 23 मन सोना मढ़वाया था। पंजाब से पूज्य गुरुनानक देव जी भी काशी आए थे, यहाँ सत्संग किया था। दूसरे सिख गुरुओं का भी काशी से विशेष रिश्ता रहा था। पूरब में बंगाल की रानी भवानी ने बनारस के विकास के लिए अपना सब कुछ अर्पण किया। मैसूर और दूसरे दक्षिण भारतीय राजाओं का भी बनारस के लिए बहुत बड़ा योगदान रहा है। इस शहर में आपको उत्तर, दक्षिण, नेपाली, लगभग हर तरह की शैली के मंदिर दिख जाएंगे। विश्वनाथ मंदिर इसी आध्यात्मिक चेतना का केंद्र रहा है।
दक्षिण भारत के लोगों की काशी के प्रति आस्था, दक्षिण भारत का काशी पर और काशी का दक्षिण पर प्रभाव भी सर्वविदित है। जगद्गुरु माध्वाचार्य जी ने अपने शिष्यों कहा था कि काशी के विश्वनाथ, पाप का निवारण करते हैं। उन्होंने अपने शिष्यों को काशी के वैभव और उसकी महिमा के बारे में भी समझाया था।
नए भारत में अपनी संस्कृति का गर्व भी है और अपने सामर्थ्य पर उतना ही भरोसा भी है। नए भारत में विरासत भी है और विकास भी है। अयोध्या से जनकपुर आना-जाना आसान बनाने के लिए राम-जानकी मार्ग का निर्माण हो रहा है। आज भगवान राम से जुड़े स्थानों को रामायण सर्किट से जोड़ा जा रहा है और साथ ही रामायण ट्रेन चलाई जा रही है। बुद्ध सर्किट पर काम हो रहा है तो साथ ही कुशीनगर में इंटरनेशनल एयरपोर्ट भी बनाया गया है। करतारपुर साहिब कॉरिडोर का निर्माण किया गया है तो वहीं हेमकुंड साहिब जी के दर्शन आसान बनाने के लिए रोप-वे बनाने की भी तैयारी है। उत्तराखंड में चारधाम सड़क महापरियोजना पर भी तेजी से काम जारी है। भगवान विठ्ठल के करोड़ों भक्तों के आशीर्वाद से श्रीसंत ज्ञानेश्वर महाराज पालखी मार्ग और संत तुकाराम महाराज पालखी मार्ग का भी काम अभी कुछ हफ्ते पहले ही शुरू हो चुका है।
केरला में गुरुवायूर मंदिर हो या फिर तमिलनाडु में कांचीपुरम-वेलन्कानी, तेलंगाना का जोगूलांबा देवी मंदिर हो या फिर बंगाल का बेलूर मठ, गुजरात में द्वारका जी हों या फिर अरुणाचल प्रदेश का परशुराम कुंड, देश के अलग-अलग राज्यों में हमारी आस्था और संस्कृति से जुड़े ऐसे अनेकों पवित्र स्थानों पर पूरे भक्ति भाव से काम किया गया है, काम चल रहा है।
आज का भारत अपनी खोई हुई विरासत को फिर से संजो रहा है। यहां काशी में तो माता अन्नपूर्णा खुद विराजती हैं। काशी से चुराई गई मां अन्नपूर्णा की प्रतिमा, एक शताब्दी के इंतजार के बाद, सौ साल के बाद अब फिर से काशी में स्थापित की जा चुकी है। माता अन्नपूर्णा की कृपा से कोरोना के कठिन समय में देश ने अपने अन्न भंडार खोल दिए, कोई गरीब भूखा ना सोए।
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देश सांस्कृतिक उत्थान के साथ विकास के सोपान भी चढ़ रहा है। देश सिर्फ बाबा केदारनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार ही नहीं कर रहा बल्कि अपने दम-खम पर अंतरिक्ष में भारतीयों को भेजने की तैयारी में जुटा है। देश सिर्फ अयोध्या में प्रभु श्रीराम का मंदिर ही नहीं बना रहा बल्कि देश के हर जिले में मेडिकल कॉलेज भी खोल रहा है। देश सिर्फ बाबा विश्वनाथ धाम को भव्य रूप ही नहीं दे रहा बल्कि गरीब के लिए करोड़ों पक्के घर भी बना रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के विकास के साथ ही सनातन सांस्कृतिक मूल्यों की स्थापना का संकल्प लेकर ही काशी विश्वनाथ की शरण में आए थे और निडरता के साथ उस मार्ग पर प्रशस्त हो रहे हैं। काशी विश्वनाथ धाम में माता अहिल्या बाई होल्कर, भारत माता, कार्तिकेय और आदि शंकराचार्य की मूर्तियां भी स्थापित होंगी। श्री काशी विश्वनाथ धाम राष्ट्रीयता का प्रतीक बनने जा रहा है। गंगा और बाबा विश्वनाथ के मध्य राष्ट्रीयता भी दिखाई देगी जो दुनिया में काशी को नई पहचान देगी।