धार गौरव दिवस की सार्थकता :’ नई पीढ़ी को गौरव बताना और गौरव बचाना जरूरी’
– डॉ. श्रीकांत द्विवेदी की ख़ास रिपोर्ट
किसी भी नगर के साथ कुछ विशिष्टताएं जुड़ी होती हैं , जो उस नगर को एक विशेष पहचान प्रदान करती है । इस मान से यदि हम बात करें अपने धार नगर की विशिष्टता की तो मानना होगा कि धार की विशिष्टता शस्त्र और शास्त्र के उपासक महाराजा भोज का पर्याय बन कर रह गई । एक ओर जहां अपने पराक्रम द्वारा राजा भोज ने उत्तर में चित्तौड़ , दक्षिण में कोकण , तेलंगाना , पश्चिम में साबरमती नदी तथा पूर्व में विदिशा तक अपने राज्य का विस्तार कर धारा नगरी को प्रभुत्व प्रदान किया । वहीं दूसरी ओर विद्यानुरागी महाराजा भोज ने राजधानी धारा नगरी में संस्कृत , संस्कृति तथा और विषयों के प्रचार – प्रसार हेतु 1035 ई . में सरस्वती सदन का निर्माण एवं मां वाग्देवी की प्रतिमा स्थापित की । इस तरह से राजा भोज का शासनकाल श्री , सरस्वती तथा शौर्य के रूप में धारा नगरी का स्वर्ण युग रहा है । पिछले कई दशकों से धार में बसंत पंचमी पर महाराजा भोज का स्मरण , सरस्वती पूजन एवं भोजशाला दर्शन कर भोज महोत्सव मनाने की एक नियमित परम्परा रही है । इसी बात को ध्यान में रखते हुए नगर पालिका परिषद , धार द्वारा भी इस वर्ष से बसंत पंचमी पर धार गौरव दिवस मनाने का निर्णय लिया गया । जो कि उचित भी है ।
चूंकि धारा नगरी कला , संस्कृति , धर्म , दर्शनऔर अध्यात्म की साधना स्थली रही है । नगर के पश्चिम छोर पर ऊंची पहाड़ी पर स्थित लगभग एक हजार साल प्राचीन गढ़ कालिका मंदिर मालवा क्षेत्र के अलावा गुजरात एवं महाराष्ट्र तक भक्तों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है ।7 वीं शताब्दी में जैन संत आचार्य मानतुंग सुरि द्वारा ‘ भक्तामर स्रोत ‘ की रचना का श्रेय इसी भूमि को जाता है । अध्यात्मिक चेतना से समृद्ध समर्थ श्री नित्यानंद आश्रम , परमार कालीन भगवान धारनाथ का मंदिर , चमत्कारिक बड़ा गणपति मंदिर , नाथ परम्परा का सिद्ध क्षेत्र काल भैरव परिसर , निष्प्राण पत्थरों को तराश कर मनमोहक मूर्तियों का कला साधना केन्द्र फड़के स्टूडियो और शिल्पकार पद्मश्री फड़के साहब , परमार कालीन अजेय दुर्ग , लालबाग स्थित विक्रम झान मंदिर और कभी यहां संचालित भव्य ग्रंथालय , अति प्राचीन शासकीय ललित महाविद्यालय तथा शास . संगीत महाविद्यालय ने इस नगर को राष्ट्रीय स्तर के कलाकार प्रदान किए हैं ।
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विलुप्त सरस्वती के उद्गम स्थल से लेकर समस्त मार्गो की खोज , भीमबेटका के शैल चित्रों के अन्वेषक पुरातत्ववेत्ता डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर , प्राचीन भारतीय इतिहास , तथा साहित्य के विद्वान पद्मश्री डॉ . भगवतीलालजी राजपुरोहित ,चिकित्सा सेवा के सुयोग्य चिकित्सक डॉ सरयू प्रसाद निगम , कार्यकर्ताओं को घड़ कर संगठन खड़ा करने वाले कुशल संगठक कुशाभाऊ ठाकरे , पारदर्शी पत्रकारिता के पुरोधा कृष्णलालजी शर्मा तथा सच्चे अर्थों में जननेता के हकदार केशरीमलजी ‘ सेनापति ‘ जैसे व्यक्तित्वों ने धारा नगरी को गौरवान्वित किया है ।
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इस तरह से नई पीढ़ी को धारा नगरी के वास्तविक गौरव से परिचित कराना जरूरी है । विलुप्त होते गौरव को बचाना तथा सहेजकर रखना जरूरी है । साढ़े बारह तालाबों की इस नगरी के शेष बचे तालाब सुरक्षित रहे । प्रदूषण रहित रहे हमारा धार नगर । शांति तथा सद्भाव बना रहे । इसी में धार गौरव दिवस की सार्थकता निहित है ।
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