राज- काज : एक दर्जन सांसदों को घर बैठा सकती है भाजपा….!
– विधानसभा, राज्यसभा के बाद अब बारी लोकसभा चुनाव की है। टिकट को लेकर पहले विधायकों, राज्यसभा सदस्यों की सांसें अटकी थीं, अब लोकसभा सदस्यों की नींद उड़ी हुई है। भाजपा के अंदर खबर चल रही है कि पार्टी इस बार एक दर्जन से ज्यादा सांसदों को घर बैठा सकती है। इनके स्थान पर नए चेहरों को मौका दिया जा सकता है। यह खबर खतरे में डालने वाली है। पार्टी अपने सात सांसदों को पहले ही विधानसभा का चुनाव लड़ा चुकी है।
इनमें 5 जीते और दो को हार का सामना करना पड़ा। इन सातों सीटों मुरैना, जबलपुर, सीधी, नर्मदापुरम, सागर, सतना और मंडला से नए प्रत्याशी मैदान में दिख सकते हैं। सतना के सांसद गणेश सिंह और मंडला सांसद केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते विधानसभा का चुनाव हार चुके हैं। इस कारण भी उनके टिकट कटने तय हैं। इनके अलावा 9 सांसदों का परफारमेंस केंद्रीय नेतृत्व की नजर में अच्छा नहीं है, इनमें कुछ कई चुनाव जीत चुके हैं। इनके स्थान पर नए चेहरों को मौका दिया जा सकता है। राज्यसभा चुनाव में भाजपा ने इस बार प्रदेश के किसी सदस्य को रिपीट नहीं किया। यह फार्मूला लोकसभा चुनाव में भी लागू हो सकता है। कुछ राज्यसभा सदस्य भी लोकसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं और टिकट के लिए कोशिश कर रहे हैं।
*0 कांग्रेस को हताशा के भंवर से नहीं उबार पा रहे जीतू….!*
– कमलनाथ के कांग्रेस छोड़ने की खबरों के बीच प्रदेश संगठन के मुखिया बने जीतू पटवारी की कार्यक्षमता पर सवाल उठने लगे हैं। कहा जा रहा है कि विधानसभा चुनाव में बड़ी पराजय के कारण जीतू खुद अवसाद में थे और उन्हें ही कांग्रेस को हताशा के भंवर से उबारने की जवाबदारी दे दी गई। वे ऐसा नहीं कर सके, यही कारण है कि नेताओं के कांग्रेस छोड़कर जाने की झड़ी जैसी लग गई है।
जिस तरह ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में जाने के लिए कमलनाथ जवाबदार थे, उसी तरह कमलनाथ के कांग्रेस छोड़ने का कलंक जीतू पटवारी के माथे पर रहेगा। इसलिए भी क्योंकि उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद से ही कमलनाथ नेतृत्व से नाराज हुए थे। आरोप था की नियुक्तियों में उनकी राय नहीं ली गई। बहरहाल, कमलनाथ सत्ता में आने के बावजूद पार्टी नहीं संभाल सके थे और जीतू कांग्रेस का मुखिया बनने के बाद संगठन दुरुस्त नहीं कर पा रहे। हालात ये हैं कि जीतू को प्रदेश अध्यक्ष बने लगभग दो माह हो गए हैं। प्रदेश कार्यकारिणी भंग की जा चुकी है, लेकिन अब तक वे अपनी टीम तक गठित नहीं कर सके। कमलनाथ की टीम के कुछ पदाधिकारियों से संगठन का काम चलाना पड़ रहा है। लोकसभा की एक सीट छिंदवाड़ा ही कांग्रेस के पास थी, कमलनाथ के कांग्रेस छोड़ने पर वह भी खतरे में पड़ सकती है।
*0 कमलनाथ भाजपा में आए तो क्या करेंगे ज्योतिरादित्य…?*
– वरिष्ठ नेता कमलनाथ के भाजपा में आने की खबर से केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की नींद उड़ गई है। वे उनसे नाराज होकर ही कांग्रेस छोड़ भाजपा में आए थे। आज कांग्रेस में जो स्थित कमलनाथ की है, तब ज्योतिरादित्य की थी। पहले वे मुख्यमंत्री नहीं बन सके थे। इसके बाद प्रदेश अध्यक्ष भी नहीं बने और बाद में राज्यसभा के लिए दिग्विजय सिंह के नाम पर मुहर लगी। सरकार में भी उन्हें ज्यादा तवज्जों नहीं मिल रही थी। कमलनाथ उन्हें उकसाने वाले बयान भी दे रहे थे।
नतीजा, सिंधिया ने समर्थकों के साथ भाजपा का दामन थाम लिया। अब लगभग वैसी ही पीड़ा से कमलनाथ गुजर रहे हैं। केंद्रीय नेतृत्व उनसे नाराज है। बिना पूछे प्रदेश अध्यक्ष पद से उन्हें हटा दिया गया। जीतू पटवारी, उमंग सिंघार की नियुक्ति से पहले उनकी राय तक नहीं ली गई। राज्यसभा के लिए भी उनके नाम पर विचार नहीं हुआ। जैसे, राज्यसभा के कारण सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ी थी, उसी तरह राज्यसभा के लिए अशोक सिंह का नाम तय होने के बाद कमलनाथ के कांग्रेस छोड़ने की अटकलें शुरू हुईं। समस्या यह है कि कमलनाथ भाजपा में आ गए ताे सिंधिया क्या करेंगे? पहले ही उनके साथ आए 19 विधायकों में से सिर्फ 6 बचे हैं। कमलनाथ के आने पर और समस्या पैदा हो सकती है। इसलिए सिंधिया की कोशिश है कि कमलनाथ भाजपा में न आ पाएं।
*0 राज्यसभा के लिए अशोक के नाम पर मुहर के कई कारण….*
– कांग्रेस में राज्यसभा के लिए कमलनाथ, जीतू पटवारी, अरुण यादव, मीनाक्षी नटराजन, कमलेश्वर पटेल जैसे दिग्गज दावेदार थे लेकिन पार्टी नेतृत्व ने मुहर लगाई अशोक सिंह के नाम पर। इसके कई कारण हैं। पहला यह कि अशोक सिंह केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभाव वाले ग्वालियर-चंबल अंचल से आते हैं। दूसरा, वे खालिस कांग्रेस परिवार से हैं और प्रारंभ से महल विरोध की राजनीति करते आ रहे हैं। तीसरा, वे यादव समाज से हैं जो प्रदेश के साथ चंबल-ग्वालियर अंचल में बड़ी तादाद में हैं। चौथा, अशोक इतने विनम्र हैं कि उनकी पार्टी के हर नेता के साथ कैमेस्ट्री अच्छी है। एक बड़ी वजह यह भी कि केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया एक बार फिर गुना- शिवपुरी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। वर्तमान में यहां से भाजपा के केपी सिंह यादव सांसद हैं। सिंधिया लड़े तो केपी का पत्ता कटना तय है। ऐसे हालात में केपी भाजपा छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम सकते हैं। कांग्रेस उन्हें सिंधिया के खिलाफ मैदान में उतार सकती है। ऐसा हुआ तो गुना-शिवपुरी का चुनाव रोचक हो जाएगा। केपी यादव से सिंधिया को कड़ी चुनौती मिल सकती है। राज्यसभा सदस्य बनने के बाद अशोक सिंह चुनाव में मुख्य भूमिका निभा सकते हैं। आर्थिक मदद भी कर सकते हैं और कांग्रेस यही चाहती है।
*0 लीजिए, ये भी देख रहे लोकसभा चुनाव लड़ने का सपना….*
– लोकसभा के पिछले चुनाव में सागर सीट से भाजपा ने पार्षद का चुनाव जीतने वाले राजबहादुर सिंह को मैदान में उतार दिया था। उन्होंने कांग्रेस के पूर्व मंत्री प्रभु सिंह ठाकुर को साढ़े तीन लाख से भी ज्यादा वोटों के अंतर से हरा दिया था। इस बार भाजपा के पक्ष में पिछली बार से भी अच्छा माहौल दिख रहा है। लिहाजा बड़ों के साथ छोटे नेता भी उत्साहित हैं। हालात ये हैं कि अब पार्षदों के साथ हर छोटा नेता लोकसभा चुनाव लड़ने का सपना देख रहा है। भाजपा के अधिकांश पार्षद, पूर्व पार्षद और ब्लॉक एवं जिलों के पदाधिकारी बायोडाटा तैयार कर भोपाल से लेकर दिल्ली तक की दौड़ लगा रहे हैं। यह स्थित अकेले सागर की नहीं है, बुंदेलखंड की सभी सीटों में ऐसे दावेदारों की बाढ़ जैसी आ गई है। इस उत्साह की वजह पिछले चुनाव में एक पार्षद का सांसद बन जाना है। मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनने और भाजपा नेताओं के बयानों से भी छोटे नेताओं का हौसला बढ़ा है। अधिकांश नेता कहते हैं कि भाजपा में छोटा से छोटा कार्यकर्ता कभी भी शीर्ष पद तक पहुंच सकता है। जैसे, पार्टी के दिग्गज बैठे रहे और मोहन यादव मुख्यमंत्री बना दिए गए। भाजपा में ऐसे एक नहीं कई उदाहरण हैं, जिनमें छोटे कार्यकर्ताओं को अचानक बड़े पद मिल गए। उम्मीद भी है कि भाजपा नेतृत्व लोकसभा चुनाव के टिकट वितरण में फिर चौंका सकता है।