Courts Cannot Give Instructions : सुप्रीम कोर्ट ने कहा ‘अदालतें राज्यों को निर्देश नहीं दे सकतीं!’

नीतियां लागू करना कार्यपालिका का अधिकार, अदालतें कार्यपालिका की सलाहकार भी नहीं!

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Courts Cannot Give Instructions : सुप्रीम कोर्ट ने कहा ‘अदालतें राज्यों को निर्देश नहीं दे सकतीं!’

New Delhi : अदालतें सरकार को कोई नीति या योजना लागू करने का निर्देश नहीं दे सकती। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सरकार की नीतियों और योजनाओं की न्यायिक समीक्षा का दायरा बहुत सीमित होता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह अहम टिप्पणी एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान की।

सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर मांग की गई थी कि सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों को निर्देश दे कि देशभर में भुखमरी और कुपोषण की समस्या से निपटने के लिए जगह-जगह सामुदायिक रसोई बनाई जाएं। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश देने से इनकार किया है।

पांच साल से कम उम्र के कई बच्चों की याचिका में दावा किया गया है कि देश में हर भुखमरी और कुपोषण से मौत हो जाती है। यह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। साथ ही ये भोजन के अधिकार का भी उल्लंघन है। याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस पंकज मित्तल की पीठ ने ऐसा कोई भी निर्देश देने से इनकार कर दिया।

पीठ ने कहा कि भुखमरी और कुपोषण से निपटने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें पहले ही राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून और अन्य कल्याणकारी योजनाएं लागू कर चुकी हैं। पीठ ने कहा कि यह सर्वविदित है कि नीतिगत मामलों की न्यायिक समीक्षा का दायरा बहुत सीमित है। अदालतें किसी नीति या योजना की उपयुक्तता की जांच नहीं करती हैं और न ही कर सकती हैं। न अदालतें नीति के मामलों में कार्यपालिका की सलाहकार हैं। पीठ ने कहा कि नीतियां लागू करने का अधिकार कार्यपालिका के पास है।

जनहित याचिका पर टिप्पणी
जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस पंकज मिथल की पीठ ने एक जनहित याचिका का निस्तारण करते हुए यह टिप्पणी की। पीठ ने यह कहते हुए कोई भी निर्देश पारित करने से इनकार कर दिया कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) और अन्य कल्याणकारी योजनाएं केंद्र और राज्यों की और से लागू की जा रही हैं। याचिका में भूख और कुपोषण से निपटने को लेकर सामुदायिक रसोई के लिए एक योजना तैयार करने के उद्देश्य से सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश देने की अपील की गई थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि नीति की विवेकशीलता या सुदृढ़ता के बजाय नीति की वैधता न्यायिक समीक्षा का विषय होगी।