पहली बार कांग्रेस मुक्त भारत की मुहिम छेड़ने वाले गुजराती मोरारजी…

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पहली बार कांग्रेस मुक्त भारत की मुहिम छेड़ने वाले गुजराती मोरारजी…

आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कांग्रेस मुक्त भारत करने का प्रयास करते देखा जा सकता है। मोदी प्रधानमंत्री बनने से पहले गुजरात के मुख्यमंत्री भी रहे हैं। और गुजराती भाई हैं। पर असल तौर पर देखा जाए तो मोदी से पहले गुजरात का एक नेता कांग्रेस मुक्त भारत की मुहिम छेड़ चुका था। और यह संयोग ही है कि वह नेता भी देश के चौथे प्रधानमंत्री बने थे और उसके पहले बंबई प्रोविंस के मुख्यमंत्री भी बने थे। तब गुजरात और महाराष्ट्र बंबई प्रोविंस में आते थे। 1952 में तब गुजरात अलग राज्य नहीं बना था। जी हां वह नेता थे मोरारजी देसाई। कांग्रेस मुक्त भारत की सोच रखने वाले मोदी और मोरार जी देसाई में खास अंतर यह है कि मोदी कभी कांग्रेस में नहीं रहे और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पृष्ठभूमि से रहे हैं। वहीं मोरारजी देसाई की राजनीति कांग्रेस से शुरू होकर उप प्रधानमंत्री पद तक पहुंची थी। पर प्रधानमंत्री न बन पाने के कारण वह इंदिरा गांधी के समय कांग्रेस के धुर-विरोधी साबित हुए। और फिर जनता पार्टी शासन में प्रधानमंत्री बनकर वह कांग्रेस के कट्टर विरोधी साबित हुए। मोरार जी देसाई का जिक्र खास तौर पर आज इसलिए, क्योंकि 29 फरवरी को उनका जन्मदिन है।

मोरारजी देसाई का जन्म 29 फरवरी 1896 को गुजरात के भदेली नामक स्थान पर हुआ था। उनका संबंध एक ब्राह्मण परिवार से था। उनके पिता रणछोड़जी देसाई भावनगर (सौराष्ट्र) में एक स्कूल अध्यापक थे। मोरारजी देसाई पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने थे। खास बात यह कि वह 81 वर्ष की उम्र में इस पद पर पहुंचे थे।

वह प्रथम प्रधानमंत्री थे जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बजाय अन्य दल से थे। वही एकमात्र व्यक्ति हैं जिन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न एवं पाकिस्तान के सर्वोच्च सम्मान निशान-ए-पाकिस्तान से सम्मानित किया गया था।

मोरारजी देसाई ने मुंबई प्रोविंशल सिविल सर्विस हेतु आवेदन करने का मन बनाया जहाँ सरकार द्वारा सीधी भर्ती की जाती थी। जुलाई 1917 में उन्होंने यूनिवर्सिटी ट्रेनिंग कोर्स में प्रविष्टि पाई। यहाँ इन्हें ब्रिटिश व्यक्तियों की भाँति समान अधिकार एवं सुविधाएं प्राप्त होती रहीं। यहाँ रहते हुए मोरारजी अफसर बन गए। मई 1918 में वह परिवीक्षा पर बतौर उप ज़िलाधीश अहमदाबाद पहुंचे। उन्होंने चेटफील्ड नामक ब्रिटिश कलेक्टर के अधीन कार्य किया। मोरारजी 11 वर्षों तक अपने रूखे स्वभाव के कारण विशेष उन्नति नहीं प्राप्त कर सके और कलेक्टर के निजी सहायक पद तक ही पहुँच पाए।मोरारजी देसाई ने 1930 में ब्रिटिश सरकार की नौकरी छोड़ दी और स्वतंत्रता संग्राम के सिपाही बन गए। 1931 में वह गुजरात प्रदेश की कांग्रेस कमेटी के सचिव बन गए। उन्होंने अखिल भारतीय युवा कांग्रेस की शाखा स्थापित की और सरदार पटेल के निर्देश पर उसके अध्यक्ष बन गए। 1932 में मोरारजी को 2 वर्ष की जेल भुगतनी पड़ी। मोरारजी 1937 तक गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव रहे। इसके बाद वह बंबई राज्य के कांग्रेस मंत्रिमंडल में सम्मिलित हुए। 1952 में इन्हें बंबई का मुख्यमंत्री बनाया गया। इस समय तक गुजरात तथा महाराष्ट्र बंबई प्रोविंस के नाम से जाने जाते थे और दोनों राज्यों का पृथक गठन नहीं हुआ था। 1967 में इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने पर मोरारजी को उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री बनाया गया। लेकिन वह इस बात को लेकर कुंठित थे कि वरिष्ठ कांग्रेस नेता होने पर भी उनके बजाय इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाया गया। यही कारण है कि इंदिरा गांधी द्वारा किए जाने वाले क्रांतिकारी उपायों में मोरारजी निरंतर बाधा डालते रहे। दरअसल जिस समय श्री कामराज ने सिंडीकेट की सलाह पर इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाए जाने की घोषणा की थी तब मोरारजी भी प्रधानमंत्री की दौड़ में शामिल थे। जब वह किसी भी तरह नहीं माने तो पार्टी ने इस मुद्दे पर चुनाव कराया और इंदिरा गांधी ने भारी मतांतर से बाज़ी मार ली। इंदिरा गांधी ने मोरारजी के अहं की तुष्टि के लिए इन्हें उप प्रधानमंत्री का पद दिया।

पण्डित जवाहर लाल नेहरू के समय कांग्रेस में जो अनुशासन था, वह उनकी मृत्यु के बाद बिखरने लगा था। कई सदस्य स्वयं को पार्टी से बड़ा समझते थे। मोरारजी देसाई भी उनमें से एक थे। लालबहादुर शास्त्री ने कांग्रेस पार्टी के वफादार सिपाही की भाँति कार्य किया था। उन्होंने पार्टी से कभी भी किसी पद की मांग नहीं की थी। लेकिन इस मामले में मोरारजी देसाई अपवाद में रहे। कांग्रेस संगठन के साथ उनके मतभेद जगजाहिर थे और देश का प्रधानमंत्री बनना इनकी प्राथमिकताओं में शामिल था। इंदिरा गांधी ने जब यह समझ लिया कि मोरारजी देसाई उनके लिए कठिनाइयाँ पैदा कर रहे हैं तो उन्होंने मोरारजी के पर कतरना आरम्भ कर दिया। इस कारण उनका क्षुब्ध होना स्वाभाविक था। नवम्बर 1969 में जब कांग्रेस का विभाजन कांग्रेस-आई और कांग्रेस-ओ के रूप में हुआ तो मोरारजी देसाई इंदिरा गांधी की कांग्रेस-आई के बजाए सिंडीकेट के कांग्रेस-ओ में चले गए। फिर 1975 में वह जनता पार्टी में शामिल हो गए। मार्च 1977 में जब लोकसभा के चुनाव हुए तो जनता पार्टी को स्पष्ट बहुमत प्राप्त हो गया। परन्तु यहाँ पर भी प्रधानमंत्री पद के दो अन्य दावेदार उपस्थित थे-चौधरी चरण सिंह और जगजीवन राम। लेकिन जयप्रकाश नारायण जो स्वयं कभी कांग्रेसी हुआ करते थे, उन्होंने किंग मेकर की अपनी स्थिति का लाभ उठाते हुए मोरारजी देसाई का समर्थन किया।

इसके बाद 23 मार्च 1977 को 81 वर्ष की अवस्था में मोरारजी देसाई ने भारतीय प्रधानमंत्री का दायित्व ग्रहण किया। इनके प्रधानमंत्रित्व के आरम्भिक काल में, देश के जिन नौ राज्यों में कांग्रेस का शासन था, वहाँ की सरकारों को भंग कर दिया गया और राज्यों में नए चुनाव कराये जाने की घोषणा भी करा दी गई। यह अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक कार्य था। जनता पार्टी, इंदिरा गांधी और उनकी समर्थित कांग्रेस का देश से सफाया करने को कृतसंकल्पित नजर आई। तो यह था जीवन भर कांग्रेसी नेता रहे और पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने मोरारजी देसाई का देश को कांग्रेस मुक्त करने का पहला प्रयास। हालांकि प्रधानमंत्री के रूप में इनका कार्यकाल पूर्ण नहीं हो पाया। चौधरी चरण सिंह से मतभेदों के चलते उन्हें प्रधानमंत्री पद छोड़ना पड़ा था। और उसके बाद 1980 में एक बार फिर इंदिरा गांधी की शानदार वापसी हुई थी। कांग्रेस मुक्त भारत की कल्पना तब भी साकार नहीं हो पाई थी और अभी भी कांग्रेस मुक्त भारत की सोच पूरी नहीं हो पा रही है। पर यह बात सच है कि गुजरात के नेता मोहनदास करमचंद गांधी और सरदार वल्लभ भाई पटेल जैसे नेताओं के योगदान से कांग्रेस फली-फूली और लहलहाई थी, तो गुजरात के नेता मोरारजी देसाई की कांग्रेस मुक्त भारत की मुहिम को नरेंद्र मोदी और अमित शाह आगे बढ़ा रहे हैं…।