Loksabha Election 2024:400 पार एक आंकड़ा नहीं,संविधान संशोधनों पर मुहर है
वरिष्ठ पत्रकार रमण रावल का विश्लेषण
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जबसे लोकसभा चुनाव में इस बार 400 पार का नारा दिया है, तब से जहां भाजपा में इसे लेकर जोश और उत्साह है,वहीं विरोधियों के बीच चिंता है । वे आश्वस्त हैं या नहीं , यह तो नहीं पता, किंतु आशंकित जरूर हैं कि यदि इस लक्ष्य को पार कर लिया गया तो मोदीजी वो सब करेंगे, जो इस जादुई आंकड़े को उलांघ जाने वाला कर सकता है। यह आंकड़ा सरकार को संविधान में वे सारे संशोधन और बदलाव के अधिकार देता है, जिसे वो करना चाहता है।और भाजपा क्या-क्या करना चाहती है, यह कोई गुप्त एजेंडा नहीं है। भारतीय जनसंघ से लेकर तो भारतीय जनता पार्टी तक का जो सफर है,उसमें समय-समय पर देश जानता रहा है कि भाजपा सत्ता में आई तो क्या कुछ कर सकती है। 2014 से 2023 तक भाजपा ने ट्रेलर दिखाया है और अब तैयारी है पूरा चलचित्र दिखाने की। 2024 के लोकसभा चुनाव के अनुकूल परिणाम उसे वो ताकत प्रदान करने में सहायक होंगे, जिसकी लड़ाई वह मात्र दो सीटों की ताकत के समय से लड़ती आ रही है।
दरअसल, नरेंद्र मोदी के प्रभुत्व वाली भाजपा को जानने-पहचानने में अभी-भी विरोधी न तो दक्ष हैं, न योग्य, न तत्पर,न तैयार। वे केवल बयानों के फिजूल तीर चलाते रहते हैं और मोदीजी लक्ष्यभेदी मिसाइल दागकर एक ही वार में काम तमाम कर देते हैं। इस नई सदी और नये भारत की भाजपा बेहद फुर्तीली,रणनीति कुशल,बाहुबल से भरपूर,चेतना से परिपूर्ण और उद्देश्यों के प्रति समर्पित है।उसका स्पष्ट तौर पर मानना है कि यदि देश को गुलामी के विभिन्न प्रतीकों,प्रतिबंधों से मुक्त करना है तो संविधान बदलने जितनी सीटें पाना अनिवार्य है। यह संभव है लोकसभा में 400 से अधिक सीटें जीतकर।यह अकेला लक्ष्य नहीं है,जिसके बूते वह मनचाहा परिवर्तन कर सकें। इसके लिये उच्च सदन में भी आवश्यक दो तिहाई बहुमत चाहिये। यह जादूई आंकड़ा होता है 121 सीट। अभी उच्च सदन में भाजपा के पास 97 और राजग के साथ मिलकर 117 सीट ही है। याने चार कम। यह पूर्ति हो सकती है,लोकसभा में 404 सीटें लाकर। तब दोनों सदनों का संयुक्त सत्र बुलाकर संयुक्त सदनों की दो तिहाई 521 सीटों से वे संविधान में जरूरी बदलाव कर सकते हैं।
भाजपा और मोदीजी की इस मंशा और दृढ़ इरादे को बल प्रदान कर रहे हैं सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता व जनहित याचिकाओं के लिये प्रख्यात अश्विनी उपाध्याय। वे सोशल मीडिया ते माध्यम से उन मुद्दों को प्रचारित-प्रसारित कर रहे हैं, जो देश के लिये नासूर साबित हो रहे हैं और जिन्हें बदलने के लिये दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत पाना जरूरी है । भाजपा या देश इस स्थिति को पाने के बिल्कुल करीब है। एक जोर का धक्का यदि जनता लगा देती है तो स्वतंत्र भारत में जो कानून दीमक बनकर उसके तामाजिक ताने-बाने,शिक्षा व्यवस्था, कानून व्यवस्था और आम भारतीय के मान-सम्मान को कम किये हुए हैं, वे एक झटके में दुरुस्त किये जा सकेंगे।यह एक ऐसी शल्य क्रिया होगी, जिससे देश रूपी शरीर की तमाम लाइलाज बीमारियों का शर्तिया उपचार किया जा सकेगा। जड़ से उन्हें उखाड़ फेंका जा सकेगा।
आइये मोटे तौर पर जानते हैं कि वे कौन से बदलाव हैं, जो 521 की कुल संख्या से किये जा सकते हैं। भारत की सनातनी परंपरा और अस्मिता को दर्शाते हुए 22 चित्र मूल संविधान में थे, जो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कथित धर्म निरपेक्ष छवि को चमकाने और तुष्टिककरण के चलते हटा दिये थे। ये चित्र राम,कृष्ण,महावीर,गुरु गोविंद सिंह,नटराज,गौतम बुद्ध,छत्रपति शिवाजी,हनुमानजी आदि के थे। इसके लिये संविधान को संशोधित करना होगा। तभी जाकर विद्यालयों की प्रार्थना में हनुमान चालिसा,राम,कृष्ण के उपदेश,गीता,वाल्मिकी रामायण पढ़ाने की व्यवस्था की जा सकती है। इंदिरा गांधी ने आपातकाल के काले दौर में जबरदस्ती धर्म निरपेक्ष शब्द जोड़ दिया था, वह भी दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत से हट सकता है।
इसी तरह से तमाम तरह के नशे के व्यापार और फिल्मों-टीवी,ओटीटी प्लेटफॉर्म पर पसरी अश्लीलता को रोकने के लिये सरकार के पास कोई ठोस कानून नहीं है। इसके लिये अनुच्छेद 19 में संशोधन करना होगा, जो अभी किसी भी तरह के व्यापार की स्वतंत्रता देता है। ऐसे ही झूठी शिकायतें करना,मुकदमे लंबे चलना आम है,क्योंकि इसे मूलभूत अधिकार बताया गया है। झूठ बोलने को गंभीर अपराध नहीं माना गया, जिसका भरपूर दुरुपयोग होता है। इसे रोकने के लिये अनुच्छेद 20 को संशोधित कर झूठ बोलने पर 10 साल या इससे अधिक सजा का प्रवाधान किया जा सकता है। गुलामी काल की शिक्षा व्यवस्था जो मुगल और अंग्रेज इतिहास पढ़ाती है,उसे बदल कर वैदिक शिक्षा अनिवार्य करने के लिये अनुच्छेद 21 ए को बदलना होगा। याने एक राष्ट्र,एक शिक्षा।धर्मांतरण रुके और ऐसा करने वाले व्यक्ति या संस्था की संपत्ति जब्त हो और उसे कठोर सजा मिले,इसके लिये अनुच्छेद 25 में सुधार करना होगा।तुष्टिकरण खत्म करने के लिये अनुच्छेद 30 को संशोधित करना पड़ेगा। मूलभूत अधिकार बताने वाला संविधान मूलभूत दायित्व का निर्धारण नहीं करता,जिसे बाध्यकारी करने के लिये अनुच्छेद 51 ए को संशोधित करना होगा।
साथ ही भ्रष्टाचार की जड़ों पर प्रहार करने के लिये एक देश,एक कर प्रणाली अपनाने के लिये अनुच्छेद 12 में सुधार करना होगा। गुलामी काल की प्रशासनिक व पुलिस व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त करने के लिये भी संविधान में संशोधन जरूरी है। यह अभी राज्य का विषय है, जबकि इसमें केंद्र सरकार का भी दखल आवश्यक है, ताकि संदेशखाली जैसे हालात पैदा होने पर केंद्र सरकार पहल कर सके।
देश जिस मुगलकालीन और अंग्रेजकालीन कानूनों और नियमों से चल रहा है,उन्हें पूरी तरह खत्म किये बिना कोई भी सरकार देश को पूरी तरह से तंदरुस्त नहीं कर सकती। भारतीय जनता पार्टी का मौजूदा नेतृत्व यह माद्दा रखता है कि वह एक राष्ट्र के तौर पर भारत की मूल चेतना को जागृत करे,सनातनी मान-सम्मान की बहाली करे और लोकतंत्र के वास्तविक स्वरूप को पूर्णता प्रदान करे। इसलिये मोदीजी ने 400 पार का नारा दिया है और उसे पाने के लिये समूची पार्टी देश में सक्रिय हो चुकी है। वह जानती है कि इस अवसर को पूरी तरह से नहीं भुनाया गया तो 2029 तक प्रतीक्षा करना भारी पड़ सकता है। एक संप्रभु राष्ट्र के लिये गुलामी के प्रतीक कानूनों को रद्द करने का सही समय आ गया है। अब बागडोर जनता के हाथ है।