आया मौसम ईवीएम का…

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आया मौसम ईवीएम का…

जब-जब चुनाव आता है, तब-तब ईवीएम के अच्छे दिन आ जाते हैं। वैसे तो ईवीएम को राष्ट्रभक्त माना जाना चाहिए। लोकतंत्र के महापर्व को संपन्न कराकर देश में और राज्यों में सरकारों का गठन कराने के महान कार्य का माध्यम आखिरकार ईवीएम ही है। पर ईवीएम को वाहवाही मिलने की जगह, विपक्षी दलों के आरोपों का सामना करना पड़ता है। अब भारत जोड़ो न्याय यात्रा के समापन समारोह में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ईवीएम पर सवाल खड़े कर दिए। उन्होंने कहा कि “हिंदू धर्म में एक शब्द है ‘शक्ति’। हम एक शक्ति के खिलाफ लड़ रहे हैं। सवाल यह है कि वह शक्ति क्या है। राहुल गांधी ने कहा- राजा की आत्मा ईवीएम, सीबीआई, ईडी, इनकम टैक्स में है। इसी के दम पर वो नेताओं को डराकर भाजपा में शामिल करा रहे हैं। कांग्रेस, शिवसेना, एनसीपी के लोग यूं ही चले गए? वे सब डरकर बीजेपी में गए हैं। दूसरे नेताओं ने भी ईवीएम पर सवाल उठाए।

हालांकि एक दिन पहले ही ईवीएम पर दलों की ओर से उठाए जाने वाले सवालों पर मुख्य चुनाव आयुक्त ने नाराजगी जाहिर की थी। उन्होंने ब्यौरा दिया था कि अब तक 40 बार सुप्रीम कोर्ट सहित दूसरे न्यायालय ईवीएम जुड़ी ऐसी याचिकाओं को खारिज कर चुके हैं। बावजूद इसके हर चुनाव के बाद ईवीएम पर सवाल खड़े किए जाने लगते हैं। राजीव कुमार ने ईवीएम पर सवाल उठाने वालों को शायराना अंदाज में जवाब दिया था। एक शेर कहा था,”अधूरी हसरतों का इल्जाम हर बार हम पर लगाना ठीक नहीं, वफा खुद से नहीं होती खता ईवीएम की कहते हो,। और बाद में जब परिणाम आता है तो उसपे कायम भी नहीं रहते हो। इनमें वह दल भी है, जो ईवीएम के जरिये चुनाव जीतकर आते हैं। आयोग ने ईवीएम के तथाकथित हैकरों को चेताया। कहा, वह चुनाव आयोग की ईवीएम पर लिखी गई नई किताब जरूर पढ़ लें। मुख्य चुनाव आयुक्त ने दलों और नेताओं से अपने प्रतिद्वंदियों को बदनाम न करने की नसीहत दी है। उन्होंने चुटकी ली थी कि दुश्मनों के दोबारा दोस्त बनने के मामले आ रहे हैं, लेकिन दोस्त बनने पर शर्मिंदा न होने की गुंजाइश होनी चाहिए। उन्होंने रहीम का दोहा सुनाया था, ‘रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय, टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गांठ परि जाए’।

हालांकि राजीव कुमार की सलाह नेताओं पर लागू नहीं होती। यहां तो एक ही पंचवर्षीय में नीतीश कुमार जैसे जिम्मेदार मुख्यमंत्री के पद पर बैठे नेता कभी भाजपा तो कभी राजद गठबंधन में शामिल होकर सरकार बनाते हैं। राजनीति में बिना गांठ‌ पड़े ही प्रेम के धागे को चटका-चटकाकर ही तोड़ा जाता है, पर मजाल है कि गांठ पड़ने का दुस्साहस कर सके। अब तो जब-जब चुनाव आते हैं, तब-तब ईवीएम भी खुश होकर इठला-इठलाकर उछलती कूदती होगी कि कम से कम अब तो लोगों की जुबां पर उसका नाम बार-बार आएगा। आखिर ईवीएम का मौसम चुनावी ही तो होता है। बाद में तो उसका कोई नामलेवा नहीं रहता है…