पांच सौ साल बाद अवध में होली खेलेंगे रघुवीर…
इस साल होली का यह त्यौहार बहुत ही खास है। खास इस मायने में कि पांच सौ साल बाद अवध में बाल रूप में भगवान राम अपने भव्य निवास में इसी वर्ष 22 जनवरी 2024 को विराजे हैं। और पांच सौ साल तक टेंट में विराजे राम क्या होली खेलते और क्या कोई दूसरा त्यौहार मनाते? पर यह साल अवध में होली वाला है। भगवान राम के बाल स्वरूप में प्राण प्रतिष्ठा के बाद यह पहला त्यौहार भी है। तो यह गीत जुबां पर खुद ब खुद आ ही रहा है। बागवान फिल्म का गीत है, समीर के बोल हैं और आदेश श्रीवास्तव का संगीत है। गीत है
ताल से ताल मिले मोरे बबुआ.. बाजे ढोल मृदंग.. मन से मन का मेल जो हो तो.. रंग से मिल जाए रंग हो..
होरी खेले रघुवीरा होरी खेले रघुवीरा अवध में होरी खेले रघुवीरा होरी खेले रघुवीरा अवध में होरी खेले रघुवीरा अरे होरी खेले रघुवीरा अवध में होरी खेले रघुवीरा होरी खेले रघुवीरा अवध में होरी खेले रघुवीरा
हाँ हिलमिल आवे लोग लुगाई हिलमिल आवे लोग लुगाई हिलमिल आवे लोग लुगाई भाई महलन में भीरा अवध में होरी खेले रघुवीरा…
तो अवध में होली पर यह बोल भी खास हैं –
अवध मां होली खेलैं रघुवीरा।
ओ केकरे हाथ ढोलक भल सोहै, केकरे हाथे मंजीरा।
राम के हाथ ढोलक भल सोहै, लछिमन हाथे मंजीरा।
ए केकरे हाथ कनक पिचकारी ए केकरे हाथे अबीरा।
ए भरत के हाथ कनक पिचकारी शत्रुघन हाथे अबीरा।
केकरे हाथे कनक पिचकारी, केकरे हाथ अबीरा,
अवध मां होली खेलैं रघुवीरा। होली खेले रधुवीरा अवध मे होली खेले रघुवीरा!
अब राम भले ही अकेले विराजे हों, लेकिन भाई भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न के बिना तो वह सांस भी नहीं ले सकते। इसलिए यह बोल भी सच्चे हैं। और फिर हनुमान के बिना अवध में राम की होली कैसे खेली जा सकती है। जबकि भगवान राम खुद जानकी सहित हनुमान के ह्रदय में विराजे हों। तो मान्यता है कि अयोध्या में हनुमान जी खुद न्योता देने जाते हैं होली का। अयोध्या में रंग भरी एकादशी के साथ मंदिरों में होली शुरू हो जाती है, जिसमें होली तक पूरी अयोध्या फागुनी रंग में सराबोर हो जाती है। अयोध्या में इसी खास अवसर पर निकलने वाले हनुमान गढ़ी के पवित्र निशान के साथ नागा साधु सड़कों पर और मंदिर-मंदिर रंग गुलाल के साथ होली खेलते हैं।
होली खेले रघुवीरा, अवध में होली खेले रघुबीरा… भगवान राम के बारे में होली के ख़ास अवसर पर गाए जाने वाले इस ख़ास गीत को सुनकर अवध में खेली जाने वाली होली के स्वरूप और परंपरा का भान हो जाता है। इस बार अयोध्या में रंग भरी एकादशी अयोध्या के लिए राम वाली होली थी क्योंकि रामलला के भव्य और दिव्य मंदिर में विराजमान होने के बाद की यह पहली रंग भरी एकादशी थी। वैसे अयोध्या में होली के कई रंग दिखते हैं इसमें साधु संतों की मानें तो इस दिन वे किसी और के साथ नहीं बल्कि साक्षात भगवान राम के साथ ही होली खेलते हैं।चाहे वह सड़कों पर रंग गुलाल खेलते साधु संत हों, करतब दिखाते साधु संत हों या फिर अवधी लोकगीत पर झूमते मंदिरों के साधु संत। साधु संत हों या आम नागरिक, सभी इस दिन अपनी सुध-बुध खोकर होली के रंग में डूब जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि अयोध्या में हनुमान जी सभी देवी देवताओं को निमंत्रण देने खुद जाते हैं। इसलिए उनका पवित्र निशान वर्ष में केवल एक बार इसी ख़ास अवसर पर निकाला जाता है। साधु संत ‘होली खेले रघुवीरा अवध में’ गाते हुए अलग-अलग मंदिरों में पूजा अर्चना करते हुए हनुमान जी को सरयू स्नान कराने के बाद हनुमानगढ़ी में उनको स्थापित करते हैं।
इस साल अवध में रंगभरी एकादशी 20 मार्च को मनाई गई। इसे आमलकी एकादशी और होली एकादशी भी कहा जाता है। यह एकादशी भगवान विष्णु और शिव जी को समर्पित होती है। रंगभरी एकादशी फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इस विशेष तिथि को अयोध्या में होली खेली जाती है। और इस वर्ष यह बहुत ही खास रही। बाल स्वरूप राम संग होली खेलने का अहसास जो सबके मन में था। फाल्गुन पूर्णिमा तक होली का उत्साह चरम पर रहने वाला है। क्योंकि पांच सौ साल बाद अवध में रघुवीर होली जो खेल रहे हैं।
अब जानकी की चर्चा के बिना राम की होली को कैसे पूरा मानें तो कहते हैं कि श्रीराम विवाह के बाद माता सीता के साथ मिथिला दर्शन के लिए निकले थे। इस 15 दिन की परिक्रमा के 7वें दिन जब वे कंचनवन पहुंचे तो वह होली का दिन था। इसी कंचनवन में ही नवदंपती ने पहली होली खेली थी। इस फागोत्सव में राम-जानकी के साथ मिथिला के आम लोग भी शामिल हुए थे।
और अवध में इस बार रामलला कचनार के फूलों से बने गुलाल से होली खेलेंगे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से प्रेरणा लेकर सीएसआईआर – एनबीआरआई के वैज्ञानिकों ने 2 खास हर्बल गुलाल तैयार किए हैं। गुरु गोरखनाथ को अर्पित फूलों से भी हर्बल गुलाल बनाया गया है, जो औषधीय गुणों से भी परिपूर्ण है। संस्थान के निदेशक ने मुख्यमंत्री योगी को दोनों हर्बल गुलाल भेंट किए हैं, जिसके बाद उन्हें सराहना भी मिली। त्रेतायुग में कचनार अयोध्या का राज्य वृक्ष था, अब विरासत को सम्मान मिल रहा है। वैसे उत्तर प्रदेश के मथुरा, वृन्दावन क्षेत्रों की होली विश्वप्रसिद्ध है। मथुरा में बरसाने की होली प्रसिद्ध है। बरसाना राधा जी का गाँव है। और इस साल भी मथुरा वृन्दावन में होली मन रही है। पर इस बार अवध की कचनार वाली होली और रंगों में रंगे रघुवीर लोगों के दिल में बसे रहेंगे…।